गुरुवार, 5 नवंबर 2015

सुर-३०९ : "साइकिल की तरह चलती जाये जिंदगानी...!!!"

हर पल
हर एक घड़ी
देती कोई नई सीख
अलबेली जिंदगी  
गर, हो नजर खुली
तो दिख ही जाती
देती कोई प्रेरक संदेश
अलबेली जिंदगी
चाहते समझना इसको  
तो करो सदा इसकी बंदगी
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मित्रों...,

जरूरी नहीं कि सिर्फ ‘पाठशाला’ या किसी ‘गुरु’ के सानिध्य में रहकर ही हम कोई सबक हासिल करें ये तो कोई भी किसी भी जगह रहकर और किसी भी वस्तु से प्राप्त कर सकता हैं अगर उसके अंदर किसी नूतन ज्ञान को जानने की जिज्ञासा हैं जिस तरह बालपन में कोई बच्चा अपने खिलोनों को तोड़-जोड़कर कुछ न कुछ जानता ही हैं उसी तरह यदि हम अपने आपको सजग रखें तो फिर हर एक वस्तु हमारी शिक्षक बन जाती क्योंकि ये लगन हमारे अंदर ही विद्यमान होती जो हमको कुछ नवीन सीखने को प्रेरित करती तभी तो कोई होता जो जीवन के हर पड़ाव पर अपनी समस्त ज्ञानेन्द्रियों को जागृत रख अंतिम क्षणों तक उतनी ही ऊर्जा से सक्रिय रहता जबकि कोई तो पूर्ण ऊर्जा से भरा होने पर और सब तरह के साधनों से संपन्न होने पर भी कोई शिक्षा हासिल नहीं कर पाता कि उसके भीतर वो जज्बा ही नहीं होता जो उसके दिलों-दिमाग में किसी नई विद्या को सीखने के प्रति उत्साह पैदा कर सके और इस तरह से यत्र-तत्र सर्वत्र अनमोल मोतियों सा बिखरा ये ज्ञान का खज़ाना यूँ ही अनदेखा रह जाता

हम एक लीक पर चलना ही पसंद करते तो उससे हमारी इन्द्रियां भी उस एकरसता की अभ्यस्त हो जाती लेकिन यदि हम उनका उपयोग करते तो फिर वो हमें सदैव कुछ करने को उकसाती रहती और यही मन की बेचैनी जिसके अंतर में होती वो कभी कभी शांत नही बैठता हर पल, हर एक क्षण कुछ न कुछ सोचता रहता और फिर उसे अंजाम देने की जुगाड़ में लग रहता और यदि आप भी ऐसा बनना चाहते हैं तो याद रखें कि अपने आपको कभी भी ‘संतुष्टि’ का जाम न पिलाये कि जिसे पीकर आपका अंतर्मन एकदम सुस्त हो जाये और फिर कुछ भी करना न चाहे बल्कि उसे तो बीच-बीच में ‘असंतुष्टि’ के कडवे घूंट पिलाते रहे जिससे कि परिवर्तन की लहर कर्मेन्द्रियों को सतत कर्म करने के लिये धक्का लगाती रहे सनद रहे कि यही तो वो धक्के होते जो हमें आगे बढ़ाते लेकिन साथ ही ये भी ध्यान रखना कि ये धक्के उस थपकी की तरह हो जो कुम्हार अपने मटके को अंदर से देता जिससे कि वो एक निश्चित आकार ले सके यदि इसका वेग अधिक हुआ तो फिर आपको गिरने से कोई भी नहीं रोक सकता मतलब जीवन में सब कुछ संतुलित हो तो फिर वो साइकिल की तरह सधी हुई गति से हर तरह के रास्तों पर आगे ही आगे बढती जाती और यदि आँखें खुली हो तो गलती से कोई बाधा आने पर ब्रेक की सावधानी हमें बचा लेती

ईश्वर ने हमें ‘ज्ञानेन्द्रियाँ’ और ‘कर्मेन्द्रियाँ’ इस लिये तो प्रदान की कि हम उनका सदुपयोग करते हुये उनके तालमेल से अपना जीवन सफ़ल बनाये न कि उनका उपयोग किये बिना उनको जंग लगने दे जिस तरह खड़े-खड़े साइकिल भी जाम हो जाती उसी तरह हमारी देह को भी आलस का रोग लग जाता जिससे वो कुछ भी न करना चाहता साथ ही आपने ये भी देखा होगा कि यदि उसके पुर्जों की नियमित देखभाल करें तो वो लंबे समय तक साथ देती तो हम भी अपने सभी अंगों का ध्यान रखे तो वे हमारे सहयोगी बन आजीवन हमारा साथ देते... यहाँ तक कि जब वो स्टैंड पर खड़ी होती तो उसका वो स्टैंड हमें अपने घर की याद दिलाता जहाँ हम भी शांतचित होकर सुकून के पल बिताते तो देखा आपने एक खड़ी हुई साइकिल से भी कितनी सारी ज्ञानवर्धक जानकारियां मिल सकती हैं... हैं न... :) :) :) !!!             
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०५ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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