शनिवार, 28 नवंबर 2015

सुर-३३२ : "एक अंतराल जरूरी हैं... रिश्तों के लिये...!!!"


पढ़ते रहे ताउम्र
लगा आँखों से अपनी
रोज-रोज अखबार 
और ये शिकायत कि
लफ्ज़ ही धुंधले लिखे हुये
पर, राज़ ये खुला जब
गलती से दूर हुआ अखबार
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मित्रों...,

‘रिश्ता’ चाहे कोई भी हो लेकिन उसमें बीच में कुछ अंतराल जरूरी हैं ताकि वो लंबे समय तक उसी ताज़गी से निभ सके पर, अगले की मंशा तो अधिक से अधिक से नजदीक आने की होती कि सामने वाले को जल्द-से-जल्द पूरी तरह से जान ले जिससे कि उनके मध्य किसी भी तरह का कोई पर्दा न रहे जबकि इस फासले की भी अपनी एक अलग ही अहमियत होती क्योंकि इसकी वजह से ही तो वो ‘रिलेशन’ कायम रह पाता टकराव से बचा रहता जिस तरह शीशे के दो गिलास या किसी भी पात्र को टकराकर टूटने से बचाने के लिये उनके बीच कोई कागज़ का टुकड़ा या गत्ता रख दिया जाता उसी तरह दो-लोगों के कांच से नाज़ुक रिश्ते को बचाने के लिये भी दोनों के दरम्यां कुछ तो भले ही जरा-सा ही क्यों न हो एक ‘स्पेस’ निहायत जरूरी हैं वरना अंजाम वही होगा जो उन ‘ग्लास’ के टकराने का होता लेकिन आजकल तो ये सबसे ज्यादा देखने में आता हैं कि दो लोग अचानक ही कभी भी, कहीं भी मिलते हैं और इतने घनिष्ठ बन जाते कि उनके बीच किसी भी तरह का कोई भी फ़ासला नहीं होता पर, जितनी तेजी से वो एक-दूसरे के जितने करीब आते हैं उतनी ही तेजी से फिर उनके मध्य उतनी ही दूरियां भी बढ़ जाती हैं जिसे समझने की बजाय अक्सर वो किसी और रिश्ते में अपने आपको जोड़कर अपने दर्द को कम करना चाहते मगर, जो इनमें गहराई तक बंधे होते वे इसे बर्दाश्त न कर पाते और सोचने पर मजबूर हो जाते कि आखिर ऐसा हुआ क्यों ?

जब वे एक-दूजे के बिना जी नहीं सकते तो फिर जुदाई का ये ज़हर उनको किसलिये पीना पड़ा ?

तब गहन चिंतन करने पर उनको ये पता चलता कि उन्होंने संबंध बनाते समय ये सोचा ही नहीं कि ‘रिश्ते’ भी तो सांस लेते और उनको भी अपने आपको जीवंत बनाये रखने के लिये ताज़ा हवा की जरूरत पड़ती और ये नजदीकियां जितनी अधिक बढ़ती उतनी ही ज्यादा उन्हें सांस लेने में दिक्कत होती जिसके कारण उनका भी दम घुंटने लगता और वे पहले तो मुरझाते अगर फिर भी उनकी तरफ ध्यान न दिया गया तो फिर वे पूरी तरह से बेजान होकर रिश्तों की उस ठूंठ से विलग हो जाते अगर, उनमें जीवन का कुछ अवशेष बाकी होता तो वे फिर से अनुकूल माहौल पाकर जी उठते वहीँ कुछ ऐसा भी होते कि इंतजार में यूँ ही अपनी जगह पर सुप्त-से पड़े रहते और कुछ तो प्रतिकूलता को सहन न कर पाने के कारण मर ही जाते याने कि सब कुछ उस फ़ासले पर निर्भर करता जो न हो तो फिर परिणाम कुछ भी हो सकता हैं लेकिन उसका खामियाजा हमें बहुत बुरी तरह से उठाना पड़ता तो बेहतर कि हम अपने सभी ‘रिश्तों’ में चाहे वो किसी भी तरह का क्यों न हो एक ‘गैप’ बनाकर रखे उनको भी अपनी तरह जीने की आज़ादी दे एक पतंग की तरह खुले आकाश में जितनी ऊँचाई तक संभव हो उड़ने की ढील दे जब लगे कि वो हमारे दायरे से बाहर हो सकता तो डोरी खिंच ले मतलब उसका नियंत्रण पूरी तरह से आपके हाथ में हो मगर, ध्यान रहे कि कोई तीसरा भी बीच में आकर उस डोर को काटने की कोशिश न करें उस स्थिति में उस पर से आपका अधिकार खत्म हो जाता हैं सच.. रिश्तों की मिसाल किसी से भी दी जाये मगर, फिर भी उनको न तो सही तरीके से परिभाषित किया जा सकता हैं और न ही उनकी व्याख्या ही की जा सकती हैं कि वे तो हर शय से परे हैं हम केवल किसी चीज़ का उदाहरण देकर उसे समझाने का प्रयास कर सकते हैं पर, फिर भी वे तो अपनी ही तरह के सबसे अलग और सबसे अनमोल अहसास होते जिन्हें सिर्फ दिल से जिया जाता और दिल से ही महसूस किया जाता हैं आख़िरकार... दिल से जो जुड़े होते हैं

रिश्ते <3 के
जुड़े होते दिल से
जिये जाते
घुल-मिल के
मगर,
टूट जाते
किल-किल से...

तो फिर उनको बचाने जुट जाओ पूरे <3 से... :) :) :) !!!
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२८ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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