रविवार, 15 नवंबर 2015

सुर-३१९ : "लघुकथा --- प्रेम की ताबीर...!!!"

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मित्रों...,


‘राधा’ को
लागी लगन
‘श्याम’ से
‘सीता’ को ‘राम’ से
और...
मुझे आपसे

यही तो लिख गुलाबी कागज़ पर प्रेम का इज़हार किया था मैंने आज सोचती हूँ तो लगता हैं कि कितने खुबसूरत ख्याल से आगाज़ हुआ था हमारी प्रेम-कहानी का मगर, अंजाम वो हुआ कि मुझे उस इबारत को यूँ लिखना पड़ा---

‘राधा’ को
दिया वनवास
‘श्याम’ ने
‘सीता’ को ‘राम’ ने
और...
मुझे आपने

इसे लिखते हुये सोच रही थी, ‘इसका मतलब तो यही हुआ न कि हमने अपने ‘प्यार’ को जो मिसाल दी थी अनजाने में उसने ही हमारी चाहत का ये अनदेखा, नियति का ये अनलिखा हश्र उसी वक़्त तय कर दिया था’

उफ़... प्रेम की ताबीर भी उसके आदर्शों से नियत होती हैं... शायद... :( :( :( !!!        
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१५ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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