शनिवार, 7 नवंबर 2015

सुर-३११ : "अब ने रहे सन्देश... न सदेश वाहक...!!!"

कभी मेघ
तो कभी पवन
और कभी कपोत तो
कभी कोई हिरण
बन जाते संदेश वाहक
लाते ले जाते संदेश
सुदूर बसे प्रियजनों तक
पार कर हर बाधा
अब तो सब कुछ हैं
पल-पल की खबरें पहुँचती 
फिर भी उनमें वो बात नहीं
कि खो गयी दिल जोड़ने वाली
वो आत्मीयता कहीं
-----------------------●●●
              
___//\\___

मित्रों...,
महाकवि ‘कालिदास’ रचित ‘मेघदूत’ भले ही किसी ने पढ़ा न हो लेकिन इसके नाम से सभी परिचित होंगे जिसमें नायक ने अपनी नायिका तक अपना संदेश भेजने के लिये बादलों का सहारा लिया भले ही ये एक कल्पना लगे लेकिन आज के लोग समझ नहीं सकते कि किसी जमाने में कितना मुश्किल होता था नगर के समीप ही गये अपनों को कोई खत भेजना उसके हालचाल प्राप्त करना फिर भी जब घर से कोई प्रियजन परदेस जाता तो उस तक अपनी खबर पहुंचाने या उसकी पाने के लिये कई तरह के जतन किये जाते तब भी जरूरी नहीं कि वो मिल ही जाये लेकिन हर समय में इस काम को अंजाम देने के लिये विविध तरीके अपनाये गये और जो भी उपाय समझ में आया उसको आजमाया गया जिसके कारण उस काल का अध्ययन करें तो ज्ञात होता कि अपनों से बिछड़ने पर जब मन व्याकुल हो जाता तो फिर वो केवल दिल की धड़कनों से ही मन को तसल्ली नहीं होती शब्दों की भी जरूरत पडती तो ऐसे में व्यक्ति ने जो भी उस जमाने में उपलब्ध था उसको ही अपना संदेश वाहक बनाया चाहे फिर वो कोई पक्षी हो या जानवर या फिर प्रकृति की कोई शय जिसका हर कहीं गुज़र होता उसने उससे ही अपने अंतर की बात कह खुद का मन हल्का कर लिया और उसके इंतज़ार में घड़ियाँ गिनते हुये उस अवधि को व्यतीत किया जिसमें कभी-कभी महीनों का भी अंतराल आ जाता था ये आज का तकनीकी युग थोड़े न था जिसमें बटन दबाते ही लिखे हुये अल्फाज़ संसार के किसी भी कोने में बैठे किसी भी व्यक्ति तक एक पल में ही न सिर्फ़ पहुँच जाते बल्कि वहां से उसका जवाब भी तुरंत आ जाता हैं

चिठ्ठी आई हैं... आई हैं... चिट्ठी आई हैं... ये महज़ फ़िल्मी गीत नहीं इसमें जो दर्द छिपा हैं उसे केवल वहीँ महसूस कर सकता जिसने कभी अपनों से दूर रहने की पीड़ा सही हो और जब बात अपने वतन से दूर रहने की हो तो इसकी अहमियत और भी अधिक बढ़ जाती जिसे इस नगमे में दर्शाया गया हैं अब तो कोई दुनिया के किसी भी हिस्से में चला जाये किसी भी तरह की दूरी का अहसास नहीं होता क्योंकि केवल संदेशों के माध्यम से ही नहीं बल्कि वीडियो कालिंग की सहायता से भी उससे किसी भी समय संपर्क करना आसान होता जबकि कभी ऐसा सोचना भी मुमकिन नहीं था तब तो कागज़ में लिखे शब्दों में ही लिखने वाले की छवि की कल्पना कर अपन आपको बहलाया जाता था सच... अब भले ही खतों का सिलसिला न रहा लेकिन जिस किसी ने भी कभी भी किसी को भी अपने मनोंभावों को पत्रों के रूप में प्रेषित किया हैं वो जानता हैं कि एक छोटे से पन्ने में लिखे एक छोटे से शब्द उसके लिये कितनी कीमती होते हैं जिनको पाने के लिये वो एक-एक पल बड़ी बेताबी से काटता हैं पलकें बिछाये द्वार या खिड़की में बैठा रहता और जब डाकिये का स्वर सुनाई देता तो दौड़कर पहुँच जाता ऐसे में जब उसे पता चलता कि उसका कोई भी खत नहीं आया तो उस वक़्त उसका जो हाल होता उसे सिर्फ़ वही समझ सकता हैं और फिर वही पल... पल... पल... हर पल... कैसे कटेगा पल... हर पल... एक अंतहीन इंतज़ार की शक्ल में उसके दिलों-दिमाग में अनवरत गूंजने लगता जो कब खत्म होगा इस जाने पाने का कोई तरीका ही नहीं था उसके पास सिवाय राह तकने के जो हर बीतने वाले लम्हे के साथ उसकी बेचैनी का इम्तिहान लेता रहता हैं ।

कबूतर जा... जा... जा... कबूतर जा... जा... जा... याद आया... जी हाँ कभी ये नन्हा कपोत भी लोगों की पाती इधर से उधर लाने ले जाने का एक बेहतरीन जरिया था जो उड़ता-उड़ता न जाने कितने पड़ाव पूरा करता हुआ अपने गंतव्य तक पहुंच पाता और फिर वहां से प्रतिउत्तर पाकर उतनी ही दूरियों से गुजरकर पुनः भेजनेवाले के पास पहुँच जाता कभी-कभी नहीं भी पहुँच पाता आखिर पक्षी हो तो हैं लेकिन जब आपके पास अपनों की खैरियत जान पाने की कोई और तरकीब न हो तो फिर उसके भरोसे ही काम चलाना पड़ेगा और कभी तो कोई इंसान ही पैगाम को उसकी प्रतीक्षा करने वाले तक पहुँचाता था जिसे कभी ‘दूत’ तो कभी ‘कासिद’ तो कभी ‘डाकिया’ और कभी ‘पत्रवाहक’ या ‘संदेशवाहक’ कहा गया जिस काम को अब भी हवाओं में बिखरी तरंगे अंजाम दे रही याने कि बात अब तलक भी वही हैं जो सदियों से पहले थी कि हवा का गुज़र तो यत्र-तत्र-सर्वत्र हैं तो उससे बेहतर तरीके से इस काज को भला और कौन कर सकता हैं तो पहले भी ‘हवा’ ही ये काम करती थी अब भी करती हैं बस, तकनीक ने उसको अपने तरीके से प्रसारित करना शुरू कर दिया हैं तो बदलते ज़माने के साथ हम भले ही बदल गये लेकिन अहसास तो अब भी वही हैं तो कभी यंत्रों से पीछा छुड़ाकर प्रकृति के इन कासिदों को आजमाकर देखें इसमें जो लुत्फ़ आयेगा वो एक झटके में मिलने वाले इन झटपट मेसेज से अधि कारगर होगा... चलो हम भी किसी तितली... या परिंदे को अपने मन की बात बताते हैं... एक संदेश भेजते हैं... प्रतीक्षा की आग में जलते हैं... फिर से प्रकृति से जुड़ते हैं... आखिर... हवा से ही तो दोस्ती करनी हैं... :) :) :) !!!                 
__________________________________________________
०७ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: