सोमवार, 16 नवंबर 2015

सुर-३२० : "शब्द, विषय, कलम एक... पर, लेखन में लिंगभेद...!!!"


जो भी
लिखा मैंने
उसे मेरा
व्यक्तिगत अनुभव
माना गया
मेरे लेखन में 
मुझे ही खोजा गया
मेरे सृजन से
वजूद मेरा आँका गया
शब्दों की तुला पर
चरित्र मेरा तौला गया
ये भूलकर कि
मेरी कलम भी तो
विचार उगल सकती हैं
मुझ में भी तो
खुद से जुदा कुछ 
लिखने की काबिलियत
हो सकती हैं
-----------------●●●

___//\\___

मित्रों...,

‘लेखक’ और ‘लेखिका’ का भेद तो पता था लेकिन ‘लेखन’ में भी ‘लिंगभेद’ होता हैं ये कुछ लोगों की प्रतिक्रिया से पता चला गोया कि लिखने की महारत भले ही नर-नारी में एक समान हो सकती हैं लेकिन उनकी कलम से लिखे शब्द अलहदा होते हैं जो उनकी अंदरूनी हालत का बयान करते हैं एक ही मोज़ू पर लिखी गयी उनकी रचना को अलग-अलग चश्मे से देखा जाता हैं यदि पुरुष ‘प्रेम’ या ‘वासना’ पर अपने उदगार व्यक्त करें तो उसे बुद्धिमान या दूरदर्शी माना जाता पर, यदि स्त्री ‘प्यार’ या ‘संबंधों’ पर अपने बेबाक विचार लिखे तो उसे स्वछंद होने का ताना दे उसके सृजन को निजी अनुभव माना जाता कि उसका किसी पर दिल आ गया हैं या वो आंतरिक रूप से भी वैसा ही सोचती हैं और उसके ‘इनबॉक्स’ में भी उसी तरह के संदेशों की भरमार हो जाती याने कि औरत की जो पाक-साफ़ छवि निर्मित कर दी गयी हैं उससे इतर वो लेखन में भी अपने आपको दर्शा नहीं सकती यदि ऐसा किया तो पढ़ने वाला उसे उसी नजर से देखेगा ये विरोधाभास अक्सर देखने में आता हैं जिसका खामियाजा अनेकों स्त्री लेखिकायें भुगत रही हैं जिसकी वजह से कुछ तो लिखते समय सावधानी बरतती तो कुछ इन विषयों पर लिखने से बचती तो कुछ ऐसी भी होती कि घबरा लिखना ही छोड़ देती तो कुछ ‘तस्लीमा नसरीन’ की तरह हर तरह के लोगों और परिस्थितियों का सामना कर अपना काम करती रहती लिखने का तात्पर्य ये हैं कि ये भी एक वजह होती कुछ लेखिकाओं के सामने न आने की जो हर तरह के विषय पर खुलकर लिखना चाहती पर जब पाठकों की इस तरह की प्रतिक्रिया से गुजरती तो चुपचाप पीछे हट जाती क्योंकि उनके पास कलम की ताकत होती जिसे वो बेकार की बातों में पड़कर जाया नहीं करना चाहती या किसी-किसी में आक्रामकता की भी कमी होती जो किसी तरह के झमेले में नहीं पड़ना चाहती तो खामोश रहना पसंद करती जिसकी वजह से बहुत कुछ अनलिखा रह जाता ऐसे में जरूरी हैं कि सिर्फ़ सामग्री को पढ़ा जाया उसके आधार पर लिखने वाले का चरित्र न नापा जाये क्योंकि लिखने का हुनर तो ईश्वर प्रदत्त उपहार माना जाता जिसका किसी के व्यक्तित्व से कोई सरोकार नहीं और न ही ये जरूरी हैं कि हर बार जो उसने लिखा वो उसका अपना व्यक्तिगत अनुभव ही हो लिखने की ये प्रेरणा तो कहीं से भी प्राप्त हो सकती हैं जिसे अक्षरों में उभारने की कला की तारीफ़ करना चाहिये न कि उनमें उसका अक्स देखने का प्रयास करना चाहिये अक्सर यही गलती चंद पाठक कर देते जिससे उनका अपना स्तर ही झलकता कि उनमें न तो पढ़ने या समझने की ही कमी नहीं बल्कि किसी भी तरह की समझदारी एवं सूक्ष्म दृष्टि का नितांत अभाव हैं

आजकल तो वैसे भी लिखने के अनेक अवसर ही नहीं मंच भी उपलब्ध हैं जिन्होंने स्त्री को अपने घर की चारदीवारी लांघे बिना भी अपने मन की बात कहने के अनेक साधन उपलब्ध कराये हैं तो ऐसे में उसने भी अपनी बातें जो वो अब तक अपने सखियों या सिर्फ अपनी डायरी को ही बताती थी अब सबके सामने लाने लगी और अपने मनोभावों को तरह-तरह से अभिव्यक्त करने लगी जिसमें ताज़गी के साथ-साथ उसकी स्वतंत्र सोच एवं आधुनिक परिवेश का भी समावेश हैं लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं कि वो जैसा या जो कुछ भी लिख रही हैं उसमें उसका अपना आप या अंतर की दबी इच्छायें भी समाई हुई हैं जैसा कि सामान्यतः मान लिया जाता कि स्त्री विमर्श पर लिखने वाली तो पूर्णतया स्वतंत्र और अपने मन की करने वाली होगी तो उसको तो कुछ भी कहो दर्द न होगा या उससे तो किसी भी तरह की बात की जा सकती हैं तो बस... अगला उसकी बेलाग लिखावट को उसका आमंत्रण समझ खिंचा चला आता उसकी तपिश को महसूस ही नहीं करता जो उसको जलाने की कूवत रखती हैं तो अब सबको ये समझने की भी आवश्यकता हैं कि इश्क़-मुहब्बत की शायरी या जख्मी जिगर की गज़ल लिखने का अर्थ ये नहीं कि लिखने वाली भी उस अहसास से गुजर रही हैं और यदि उसने तन-मन की दमित कामनाओं को ज़ाहिर किया तो ये न माने कि ये उसकी अपनी ही अधूरी ख्वाहिश हैं जिसके माध्यम से वो उसे पूरा करने वाले को ढूंढ रही हैं और आप अपना प्रस्ताव लेकर उसके पास पहुँच जाये अब वक्त हैं कि ‘लेखन’ और ‘लेखिका’ को इस मायने में तो एक समझे कि ये उसकी अपनी दिमागी उपज हैं लेकिन ये न सोचे कि इससे उसका अपना कोई व्यक्तिगत लेना-देना भी हैं तभी निष्पक्ष होकर कोई राय बनाई जा सकती हैं ।

अब जब भी कुछ पढ़े तो उसमें ‘लिंगभेद’ न कर केवल उसके सार को ग्रहण करें साथ ही उस पर सवालिया निशान न लगाते हुये उसके सृजन की दाद दे यदि उसने आपको प्रभावित किया हैं अन्यथा बिना किसी तरह के निष्कर्ष निकाले चुप रह जाये यही पढ़ने का सर्वश्रेष्ठ तरीका होगा... ‘शब्द’, ‘विषय’ और ‘कलम’ जब एक तो लेखन क्यों अलग हो???        
__________________________________________________
१६ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: