मंगलवार, 3 नवंबर 2015

सुर-३०७ : "अंतर्यात्रा... तलाश... गुमशुदा इश्क़ की...!!!”


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मित्रों...,

अपनी बेटी ‘नितारा’ को बुलाने जैसे ही माँ ने उसके कमरे में कदम रखा तो उसे कहीं भी न पाया केवल सामने बिस्तर पर एक पेपर रखा था उन्होंने झट आगे बढ़कर उसे उठाया तो उस पर उन्हें ये इबारत नजर आई---

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जब से गुमशुदा हुये
‘तुम’ और तुम्हारा ‘इश्क़’
मेरी जिंदगी से
मैं हर पल
हर एक लम्हा
उसे ही ढूंढ रही हूँ
पुराने खतों
तुम्हारे दिये उपहारों
हमारी तस्वीरों
भेज गये प्रेम संदेशों
पहने हुये लिबासों
बिस्तर की सिलवटों
आलों, संदूकों, अलमारियों
घर के हर कोनों
घटाओं, फिजाओं, हवाओं
कार, रेल, गाड़ियों में
और उन सब स्थानों पर
जहाँ-जहाँ पर भी हम मिले थे
पर, अब तक न वो मिले
और, अब ये तलाश शायद
आसमां पर जाकर ही खत्म होगी
जहाँ हम दोनों एक डोर बंधे
मुझे यकीं हैं कि
जो रिश्ता इस दुनिया में आकर
टूटकर बिखर गया
वो वहाँ अब तलक भी
अपने खूंटे से बंधा होगा
सच...!!!
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वो घबराकर बाहर निकली तो वही खबर मिली जिसका उन्हें अंदेशा था... ‘नितारा’ उनकी इकलौती लाड़ली बिटिया अपनी अंतिम यात्रा पर निकल चुकी थी... सामने उसकी देह तो थी लेकिन उसमें से जान निकल चुकी थी... वो तो जाने किस तलाश में चली गयी थी... ये दृश्य देख वो जहाँ थी वहीं थमकर रह गयी... अपनी बच्ची को दिल और दुनिया का फर्क बताना जो भूल गयी थी... :( :( :( !!! __________________________________________________
०३ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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