बुधवार, 25 नवंबर 2015

सुर-३२९ : "गुरु नानक जयंती का संदेश... मिटे मन के क्लेश...!!!"


जब-जब भी
इस धरती पर
अधर्म बढ़ता और
धर्म कम होने लगता
तो फिर करने
उस पाप का विनाश
प्रभु लेते स्वयं अवतार
या भेजते कोई पुण्यात्मा
जो भूले-भटकों को
दिखाये सत्य का मार्ग
जगाये अंतर का परमात्मा  
तो आये ‘गुरु नानक’
दिया प्रभु का संदेश हमको
आज उनकी जयंती
करते हम सभी नमन उनको
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मित्रों...,


भारत की भूमि को यूँ ही तो परम पावन मोक्षदायिनी नहीं कहा जाता बल्कि इसके कण-कण में परमात्मा का निवास हैं और यही वो धरा हैं जिसमें आने भगवान् भी लालायित रहते तभी तो मानव देह धर अवतार लेते रहते लेकिन सदैव उनके आने का कारण अधर्म को इस भूमि से मिटा धर्म का परचम लहराना होता क्योंकि हम सभी मानव जो कि उस दिव्य शक्तिमान परम शक्तिशाली अदृश्य परमात्मा की संताने हैं वे सभी युग परिवर्तन के साथ ही अपने पवित्र संस्कारों को भूल इस मायावी दुनिया में न सिर्फ रम जाती जाती बल्कि कुछ तो अपने वास्तविक स्वरूप से एकदम विपरीत पापात्मा बन जाती और दूसरी पुण्यात्माओं को परेशान करती जिससे कि पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने लगता तो फिर ऐसी स्थिति में जरूरी होता कि ईश्वर आये और इन भटकी हुई संतानों को सद्मार्ग पर लगाये तो वे किसी न किसी रूप में जरुर आते और गिरते नैतिक मूल्यों के साथ ही धर्म की पुनः संस्थापना करते ऐसा ही हुआ था आज से करीब पांच सौ साल पहले जब भारत में पठानों का राज था और लोगों का धर्म के प्रति रुझान कम होने लगा था जिससे कि मनुष्यों का नैतिक पतन होने लगा था तो सबके अंदर की उस बुझती ईश्वरीय लौ को फिर से जलाने ‘गुरु नानक’ का अवतरण हुआ चूँकि वे प्रभु की वाणी का प्रचार करने आये थे तो बचपन से ही उनकी अध्यात्म के प्रति गहन रूचि थी और वे सबके भीतर छुपी उस सूक्ष्म आत्मा के दर्शन करते थे अतः किसी में भी भेदभाव नहीं करते थे जिसके कारण हिंदू एवं मुसलमान दोनों की ही उनके प्रति असीम श्रद्धा थी तो सभी उनके वचनों को ध्यान से सुन अपने आपको उसके अनुसार बदलने का प्रयास करते थे पूरे देश में इसका प्रचार करने हेतु उन्होंने पैदल ही एक छोर से दूसरे छोर तक यात्रायें की और अपनी इस धार्मिक चेतना की शुभ यात्रा में वे मक्का, मदीना, ईरान, काबुल सभी जगह गये और हर जगह उस परमात्मा के अलौकिक प्रवचन से लोगों को आत्मदर्शन के लिये प्रेरित किया जिससे कि वे स्वयं ही अपनी आँखें मूंद उस जगतपिता का साक्षात्कार कर सके

ईश्वर एक हैं, ईश्वर ही प्रेम हैं और वही सबके अंदर निवास करता हैं किसी मंदिर, मस्जिद या पूजास्थल में नहीं अतः हमें सबको एक नजर से देखना चाहिये क्योंकि बाहरी रूप में हम कुछ भी नजर आये लेकिन आंतरिक रूप से तो सभी एक दिव्य ज्योत जिसे कि ‘आत्मा’ कहते हैं होते हैं पर, हमारे भीतर देहाभिमान आ जाता तो हम खुद को ‘शरीर’ से समझते जबकि पंचतत्वों से निर्मित ये काया तो केवल कर्म करने के लिये दी गयी जिसमें हम इतने खो गये कि अपने आने का लक्ष्य ही भूल गये और उपरी भेष-भूषा के आधार पर हर मानवाकृति को अलग-अलग नाम, अलग-अलग पहचान और अलग-अलग सम्प्रदायों में बाँट उनके अलग-अलग धर्म भी निर्धारित कर दिये और फिर अपने आपको सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने आपस में ही लड़ने-झगड़ने लगे तो फिर ऐसी स्थिति में हमारी खिंची गयी उन बंटवारे की लकीरों को मिटाने किसी को तो आना ही था तो समय-समय पर अलग-अलग रूपरंग लेकर उस प्रभु को आना पड़ा तो कभी वो राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, हजरत मुहम्मद या ईसा मसीह बनकर आये और अपने हर तरह के स्वरूप में उन्होंने एक ही बात दोहरायी कि ‘ईश्वर एक हैं’ लेकिन हमने उन पवित्र संदेशों या वाणी को ग्रहण करने की जगह उस बाहरी आकृति को पकड़ लिया और यहीं से सारी समस्या शुरू हुई जिसने इंसान को इंसान से जुदा कर दिया कि हम अपने सच्चे स्वरूप दिव्य आत्मा को विस्मृत कर दैहिक ढांचे को ही अपनी वास्तविक पहचान मान लिया यदि गहराई से सभी धर्म ग्रंथो का अध्ययन कर उनमें लिखे सद्विचारों का चिंतन-मनन करें तो फिर उस अलौकिक तथ्य बड़ी आसानी से आत्मसात कर सकते जिसके बाद फिर किसी भी अन्य गूढ़ संकेतों को जानना शेष न रह जाता पर, ये अकेले करना संभव नहीं तभी तो ‘गुरु’ आते हैं हमें आत्मदर्शन कराने हमारी आत्मा का उस परमात्मा से मिलन कराने जैसा कि ‘गुरु नानक जी’ और सभी पुण्यात्माओं ने भी किया था पर, हमने तो किसी की भी वाणी के मर्म को समझने की बजाय उनको ग्रंथों में कैद कर अपने पूजा स्थलों में उन पैगम्बरों की भी मूर्ति स्थापित कर उनको पूजना शुरू कर दिया क्योंकि ये हमें अधिक आसान लगा बनिस्बत कर्म करने और सद्मार्ग पर चलने के तो फिर किस तरह से मुक्ति मिलती इसलिये जन्मों के चक्कर में पड़े हुए हैं ।

‘गुरु नानक’ के उपदेशों में भी वही सब समाया जो दूसरे किसी भी मत या पंथ के संस्थापकों के प्रवचन में भी नजर आता तो आज इस ‘प्रकाश पर्व’ की सार्थकता तभी होगी जब हम उनके संदेशों के मूल अर्थ को स्वीकार कर अपने जीवन में उतारेंगे... इसी के साथ आप सभी मित्रों को ‘गुरु नानक जयंती’ एवं ‘प्रकाश पर्व’ की लख-लख बधाइयाँ... :) :) :) !!!               
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२५ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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