शनिवार, 21 नवंबर 2015

सुर-३२५ : "काव्यकथा : ख़ुशी... दो पल की...!!!"

___//\\___

मित्रों...,



             
‘नित्या’ पार्टी में सबसे अलग-थलग हाथ में चाय का प्याला ले एक सुनसान कोना ढूंढ वहां अकेली बैठी थी उपर से वो जितनी शांत और खामोश नजर आ रही थी... अंदर से उतनी ही बैचेन और परेशां थी उसके दिलो-दिमाग में जद्दोजेहद जारी थी कि उसने यहाँ आकर सही किया या गलत... उसकी सबसे प्यारी सहेली ‘मीनल’ ने उसे मना भी किया था कि ‘नित्या, अब तुम्हारा ‘पुनीत’ से ब्रेकअप हो चुका हैं ऐसे में उसकी एक कॉल पर यूँ चले जाना ठीक नहीं’ पर वो न मानी उसे लगा कि उसकी तरह शायद वो भी उससे अलग हो पछता रहा हैं तभी तो इतने लंबे अन्तराल के बाद अपने घर होने वाले कार्यक्रम में उसे बुलाया... लेकिन यहाँ आकर उसकी वो सारी अंदरूनी ख़ुशी काफूर हो गयी जब उसने वहां ‘वेदिका’ को देखा तो बस... एकांत में बैठ सोचने लगी---

●●●------------------
कितनी खुश थी मैं
इतने दिनों बाद
तुम्हारी कॉल
अपने मोबाइल पर पाकर
उससे भी ज्यादा
इस बात से कि
तुमने मुझे बुलाया हैं
अपने घर पर
पर, मेरी ये नन्ही सी ख़ुशी
पल भर में ही
पानी के बुलबुले सी मिट गयी
जब वहां पहुंचकर देखा कि
मुझे न तो मेरी ख़ुशी के लिये
न ही अपने खुद के लिये
बल्कि किसी और की ही
उपस्थिति को
न्यायसंगत ठहराने के लिये
आमंत्रित किया गया हैं 

उफ्फ्फ...
तुमसे मेरी ये झूठी ख़ुशी भी
न देखी गयी ज़िंदगी
सचमुच...
बड़ी बेमुरव्वत हो तुम
----------------------------●●● 

सच... कभी-कभी हम अपने दिल की बात मान कितना धोखा खा जाते हैं न जाने इतने से कम समय में ही क्या-क्या नहीं सोच लिया था उसने कि शायद अब सब कुछ ठीक हो जायेगा और हो सकता हैं शायद उसने उसे अपने घरवालों से मिलने बुलाया हो कोई सरप्राइज देना चाहता हो लेकिन उसे तो केवल इसलिये बुलाया कि ‘वेदिका’ का अकेले आना कोई नोटिस न करें... उफ़... ये खुशफहमी भी न... कितने ख्वाब दिख देती दो पल में ही... और लम्बी साँस भर प्याला रख चल दी... :) :) :) !!!
__________________________________________________
२१ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: