बुधवार, 11 नवंबर 2015

सुर-३१५ : "दीपावली आई... सुख-समृद्धि लाई...!!!"


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मित्रों...,

त्रेतायुगमें जब आतातायियों ने इस धरा पर अपने आतंक और जुल्मों-सितम से जड़-चेतन सबको परेशान कर दिया था, अपनी राक्षसी गर्जन और निर्दोष लोगों पर किये अन्याय की  चीत्कार से हाहाकार मचा दिया था... तब पृथ्वी माता ने जगत के पालनहार भगवान विष्णुसे इस धरती और मासूमों की जान बचाने की गुहार की तो वो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामका अवतार लेकर इस भूमि पर चले आये... उनके हाथों अपने प्राण त्यागकर मुक्ति के मोह से त्रिलोकी विजेता असुरराज रावणख़ुद को रोक ना पाया और जगतजननी माता सीताको हरकर अशोक वाटिकामें रख दिया... तब श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर ना सिर्फ़ अपनी अर्धांगिनी जानकीकी रक्षा की बल्कि इस सम्पूर्ण धरती को भी उस असुर से मुक्त कराया... फिर वो अपनी पत्नी सहित लौटकर अपने घर अयोध्याआये, सब लोग ने घर-घर बंदनवार सजाये, हर द्वार पर दीप जलाये और इस तरह दीपावलीपर्व की शुरुआत कर मंगलगीत गाये... तब से हम सब भी इस परंपरा को युगों युगों से निभाते जाये... तो फिर चलो सब आओ हम मिलकर हर अँधेरे को रोशन करें सबके दिलों में उजियारा करें और इस तरह ये पर्व मनाये कि कोई भी इसकी खुशियों से वंचित ना रह जाये... तमसो मा ज्योतिर्गमयको साकार कर अमावस की इस काली अंधियारी रात को रोशन कर दे... जो भी दीन-दुखी और निराश नज़र आये उसके जीवन में आशाओं का दीप जलाकर जलाये आओ हम सब मिलकर दीपावली मनाये... सबको दीपोत्सव की सपरिवार अनंत मंगलकामनायें... :) :) :) !!! 
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११ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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