रविवार, 10 जनवरी 2016

सुर-३७५ : "विवेकानंद ज्ञान ज्योति---०६ !!!"

दोस्तों...

___//\\___

यथार्थ
भले ही लगे
कितना भी कठोर
पर, ख्वाब की नाज़ुकी से
बेहतर होता
जो मात्र कल्पना होती
और मन भरमाती
जबकि सच्चाई हमेशा
वही चीज़ दिखाती
जो कि वास्तव में होती
जिससे नजरें चुराकर हम
बेशक सपनों में खो सकते हैं
मगर, हकीकत से तो
सामना कर ही जीत सकते हैं
------------------------------------●●●

शायद, ही कोई ऐसा इंसान हो जिसे सपने देखना पसंद नहीं लेकिन ऐसे कम ही लोग होते जो अवचेतन अवस्था में देखे गये उन दृश्यों को सच में साकार कर पाते क्योंकि स्वप्न एक तरह से हमारे मन की अतृप्त इच्छाओं या जिन्हें हम भविष्य में पूरा करना चाहते उन कामनाओं का दर्पण होता इसलिये तो जब हमारा तन दिन भर की दौड़-धूप थकावट से चूर होकर अपनी आँखें मूंदता वैसे ही मानस पटल पर कुछ चित्र बनने लगते जो कभी तो हमारे साथ घटी किसी घटना का हूबहू चित्रण प्रदर्शित करते जिसने कि हमें आंतरिक रूप से अत्यधिक प्रभावित किया हो तो कभी आने वाले समय में जो कुछ भी हम करना चाहते उसकी झलक दिखलाता तो कभी वो महज़ सच व भ्रम का मिश्रण होता याने कि जब शरीर शिथिल होता तब भी मन सक्रिय रहता और भीतर कुछ न कुछ रचता रहता जिसे हम ‘ख़्वाब’ की संज्ञा देते जो अमूमन हमारी उन तम्मनाओं का प्रदर्शन होता जिसे हम कभी न कभी पूरा करना चाहते मगर, सबमें वो आत्मबल और मेहनत करने का जज्बा नहीं होता कि उनको यथार्थ के रंग में रंग पाये तो खुद को इन कल्पनाओं से ही बहलाते रहते लेकिन जिनके अंदर अपनी उन मनोकामनाओं को सच कर दिखाने का हौंसला होता वे हर तरह की परिस्थिति, हर तरह की कठिनाइयों का सामना कर के भी तब तक उनके पीछे लगे रहते जब तक कि वो फलीभूत नहीं हो जाती जबकि कुछ लोग बैठे-बैठे या सोते-सोते केवल ख्याली पुलाव पकाते रहते या ‘शेखचिल्ली’ की तरह मंसूबे बांधते रहते कि कभी तो वे अपने उन सपनों को हकीकत का जामा पहना पायेंगे पर, उसके लिये किसी तरह का प्रयास करते नजर नहीं आते कि अपनी योजनाओं को कल पर टालते रहते और फिर एक दिन जीवन चक्र पूरा कर कभी तकदीर तो कभी हालात के सर ठीकरा फोड़ जैसे के तैसे चले भी जाते पर, जो दृढ़ निश्चयी होते वो किसी भी अवरोध के आगे सर न झुकाते बल्कि एक के बाद एक अपने सारे के सारे ख्व़ाब पूर्ण कर मिसाल बन जाते

स्वपन जगत भले ही काल्पनिक हो लेकिन वो वास्तविक जगत में भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता क्योंकि उसके माध्यम से ही हम अपनी अमूर्त इच्छाओं का मूर्त स्वरूप देख पाते जो हमें कर्म करने की प्रेरणा देता तो इस तरह ये हमारे जीवन के ‘उत्प्रेरक’ बन हमें सदैव गतिमान बनाये रखते जिससे कि यदि कभी किसी वजह से हम कहीं निष्क्रिय हो या अपने लक्ष्य से भटकने लगे तो फिर से दुगुने उत्साह से जुट जाये अतः सपने देखना कोई बुरी बात नहीं तो इसका कतई ये तात्पर्य नहीं कि हम सोते ही रहे और बस, सपने ही देखते रहे बल्कि अपने जीवन में जो भी प्राप्त करना चाहते हैं उसकी स्पष्ट रुपरेखा बनाये और फिर उसे मन में इस तरह बिठा ले कि वो चित्रमय बन इस तरह से सजीव हो जाये कि हम कर्म के एक्सीलेटर को निरंतर बढ़ाते हुये सपने को सच में बदलने वाले मीटर को आगे ही आगे सरकाते जाये जिससे कि जीवन की गाड़ी मंजिल पर ही जाकर रुके केवल यही एक तरीका होता अपने ध्येय को पूरा करने का पर, इसके लिये जीवन में किसी ऐसे स्वपन का होना निहायत जरूरी हैं जो आँखों की नींदें ही उड़ा दे और भीतर ऊर्जा का ऐसा संचरण करे कि जब तक उसे साकार न कर ले कुछ भी नजर न आये... तो बनाना हो अगर सपने को सच तो उसे सिर्फ़ देखो नहीं जियो हर पल फिर देखो कैसे नहीं वो हकीकत बनता... उसके प्रति जूनून तो दिखाओ यारों... :) :) :) !!!
                               
__________________________________________________
१० जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
●--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: