शनिवार, 2 जनवरी 2016

सु-३६७ : "कलम ने तराशा मुझे...!!!"


दोस्तों...
आपको मेरा
प्यार भरा नमस्कार...

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ऐ कलम...

सब तराशते तुझे
बड़े जतन से बनाते
बारीक़ से बारीक नोंक
कि लिख सके
शब्दों को सुंदर ढंग से
और करते गर्व कि
अक्षर-अक्षर हमने संवारा
हमने लिखा जबकि
वो कमाल तेरा
पर, मुझे तो यकीन हैं
कि जो कुछ भी मैं हूँ
उसका श्रेय तुझे ही जाता
तो क्यों न कहूँ कि
हाँ, मुझे तुमने तराशा हैं ।।
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कलमकारों की किस्मत कलम स्वयं ही लिखती जो शब्द दर शब्द उनकी रगों में नया जोश भरती उनको हर हाल में जीने का हौंसला देती क्योंकि जिस तरह किसी भी कलाकार की जिंदगी उसकी कला में बसती उसी तरह एक लेखन की आत्मा उसकी कलम में रहती जिसके होने भर से ही उसको एक नया विश्वास मिलता कि भले ही कोई साथ हो न हो लेकिन यदि उसकी साथी 'कलम' उसके हाथ में हैं तो फिर सारी दुनिया उसके आस-पास हैं क्योंकि उसकी छोटी-सी कलम में सारा ब्रह्मांड समाया रहता जिसमें उसे त्रैलोक्य के दर्शन होते और ये कलम उसे कागज़ के जरिये तरह-तरह के चित्र दिखाती जिसमें हर तरह के अहसास का स्वाद उसे मिलता भले ही उसने उसे जीया हो या नहीं लेकिन वो अल्फाजों के माध्यम से उसे महसूस कर लेता यही तो एक रचनाकार होने का एक अपना  ही फ़ायदा हैं कि वो अपनी कल्पना के पंख लगाकर हर उस जगह पहुँच जाता जहाँ हकीकत में भी जाना संभव नहीं होता ऐसे में यदि कोई लेखक अपनी 'कलम' को अपने आपको संवारने का श्रेय दे  तो ये अतिश्योक्ति न होगी बल्कि उसकी उसके प्रति अपनी आस्था का सच्चा प्रदर्शन होगा कि वो अपनी 'कलम' को अपना खुदा समझता हैं... उसकी पूजा करता हैं... आखिर ऐसा क्यों न हो... ये ईश्वरीय वरदान ही तो हैं...  :) :) :) !!!   
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०२ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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