शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

सुर-३८७ : "दुआ बन गयी बद्दुआ...!!!"

दोस्तों...

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कभी-कभी बड़ी मन्नतों से मांगी गयी ख्वाहिश हकीकत बन आंचल में आ तो जाती लेकिन यदि हमें उसे संभालना न आये तो फिर या तो वो हमारे दामन से फ़िसल जाती या फिर हमारा दामन ही उसे सहेजने में नाक़ाबिल सिद्ध होता ऐसी परिस्थिति में कुछ ऐसा ही होता---
             
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रात-दिन
लबों पर थी
बस, एक ही दुआ
ऐ खुदा...
वंश को चलाने
घर को रोशन करने
एक चिराग़ अता फ़रमा
बेटियां तो पराया धन
सिर्फ़ बेटा ही तो अपना
बुढ़ापे का सहारा
एक रोज हुई कुबूल
आ गया कुल का दीपक
जो सचमुच ही बन
प्रचंड अग्नि राख कर
नामो निशान तक मिटा गया
उस खानदान का
जिसे आने वाली पुश्तों तक
बरकरार रखने
बड़ी ही मिन्नत कर
मन्नतों से रब से माँगा था
तब न सोचा कि
केवल, हाथ जोड़ कर
मांगना ही काफी नहीं
इतनी शिद्दत से पायी गयी
नेमत को भी तो
सही तालीम, तहजीब सीखा
विरासत को सहेजना
सबको साथ लेकर चलना
संस्कारों की घुट्टी में पिला
इंसानियत का पवित्र धर्म
परोपकार का सहज सबक
प्रेम का मधुर पाठ पढ़ाना होगा
नहीं तो दुआ को बद्दुआ में
बदलते देख आंसू बहाना होगा ।।
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बाद में पछताने से बेहतर कि पहले ही सोच ले कि केवल इच्छा की पूर्ति ही सब कुछ नहीं जब वो हासिल हो तो फिर उतनी ही संजीदगी से उसका ख्याल भी रखना पड़ता नहीं तो जरा-सी लापरवाही से ही दुआ को बद्दुआ बनते देर नहीं लगती... अक्सर ऐसा ही होता हम किसी भी मनोकामना को पूरा करने बेइंतेहा प्रयास करते लेकिन जब वो पूरी होती तो फिर उसकी तरफ से लापरवाह हो जाते और हमारी यही भूल हमारे लिये घातक सिद्ध होती... इसलिये जब भी भगवान् से कोई वरदान माँगना तो फिर उसे पूरे मनोयोग से सहेजना भी... :) :) :) !!!
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२२ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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