मंगलवार, 5 जनवरी 2016

सुर-३७० : "स्वामी विवेकानंद ज्ञान ज्योति - ०१' !!!


दोस्तों...

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भटके युवाओं को
सत्य का मार्ग दिखाने
अधर्मियों को
धर्म की शक्ति बताने
अज्ञानियों को
ज्ञान की ज्योति बाँटने
मनोविकारों को
‘योग बल’ से जिताने   
भारत देश को
फिर ‘विश्व गुरु’ बनाने
आये जगत में ‘विवेकानंद’
अल्पायु में ही बनकर ‘इंद्रजीत’
लिया हर आत्मा को जीत
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अठारहवी सदी जब अपनी समाप्ति की तरफ बढ़ी जा रही थी तो उस समय हमारे देश की स्थितियां विपरीत हो चली थी विशेषकर देश की युवा शक्ति को तो अपने लक्ष्य पर एकाग्रता जमाने की जरूरत थी क्योंकि उस वक्त हम गुलामी की हवा में सांस ले रहे थे अतः आज़ाद होकर जीने के लिये समस्त बिखरे देशवासियों को संगठित होकर एकता की डोर से बाँधने की तीव्र आवश्यकता थी तो ऐसे में किसी ऐसे मार्गदर्शक की कमी महसूस हो रही थी जो कमजोर आत्मविश्वास को आत्मिक बल से मजबूत बना हालात का सामना करने की हिम्मत दे जिसकी प्रेरणा से सुप्त आत्मायें जाग्रत होकर अपने कर्मपथ पर अग्रसर हो ताकि हम फिर एक बार इस विश्व को ये दिखा दे कि सनातन धर्म के अनुयायी भले ही अभी अपनी कमजोरियों की वजह से गुलाम बन गये हो लेकिन जब वे अपने आपको पहचानेंगे तो फिर कोई भी उनके आगे टिक न सकेगा तो ऐसी कठिन परिस्थितियों में १२ जनवरी १८६४ को कलकत्ता की पावन भूमि में एक महापुरुष ‘नरेंद्र नाथ’ का जन्म हुआ जिसने अपने अथक परिश्रम व कठोर योग साधना से स्वविवेक की ज्ञान ज्योति को जलाया फिर उसकी प्रखर ज्वाला से संपूर्ण जगत को आध्यात्मिक प्रकाश से रोशन किया जिससे सारी दुनिया ने हमारे देश के हजारों साल पुराने सनातन धर्म की ताकत और उसकी गहरे तक धंसी हुई जड़ों को पहचाना जिसके दम पर ये ‘भारत’ नामक वृक्ष हर आंधी-तूफ़ान को झेलता अडिग खड़ा हैं और उसे ख़ुद को जिलाये रखने की ये जीवनदायी ऊर्जा अपनी जड़ों से ही मिलती हैं भले ही इस पर कब्ज़ा जमाने अनेक शक्तिशाली दंभी लोग विश्वविजेता का सपना लिये आये लेकिन वो भी सिर्फ उसकी शाखाओं या पत्तियों को ही नुकसान पहुंचा पाये पर, कोई भी उसकी जड़ तक नहीं पहुँच पाया तभी तो भले ही उपरी तौर पर उसका स्वरुप कुछ परिवर्तित नज़र आये लेकिन मूल आत्मा तो अपरिवर्तनीय हैं जिस पर किसी का भी कोई असर नहीं हो सकता और न ही कभी कोई उसे काट ही सकता हैं

जब इस धरा पर ‘स्वामी विवेकानंद’ का आगमन हुआ तो अपनी मातृभूमि की ये दशा देखकर उनका मन विचलित हो गया और उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर लिया कि उन्हें सर्वप्रथम तो इस ब्रम्हांड में ‘धर्म’ की पुनःस्थापना करना हैं क्योंकि केवल अपने स्वदेश में ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी देशों में ‘धर्म’ नामक संस्था की नींव डगमगा रही हैं अतः ऐसे में जरूरी हैं कि न केवल उसकी फिर से ‘श्रद्धा’ व ‘आस्था’ के ईट-गारे से मरम्मत की जाये बल्कि सारी दुनिया के सामने ‘धर्म’ की ऐसी सहज-सरल व्याख्या प्रस्तुत की जाये कि हर कोई उसे आसानी से समझ सके और उसकी मदद से अपना सर्वांगीण विकास करते हुये जितेंद्रिय बनकर अपने जीवन उद्देश्य को प्राप्त कर सके इसके अतिरिक्त देशवासी यूरोपीय संस्कृति के जिस आत्मघाती सम्मोहन के मायाजाल में फंस चुके हैं उससे भी बाहर निकल अपने खोये हुये आत्मविश्वास को पुनः हासिल कर सके जिससे कि विजेता बनकर आसमां का चाँद नज़र आने वाली ‘आज़ादी’ को हाथ बढ़ाकर तोड़ सके तो इस पवित्र काज हेतु उन्होंने अथक अनवरत कर्मयोगी की तरह कर्म किया तभी तो युवावस्था में ही देश ही नहीं विदेश में भी उन्होंने जो कर दिखाया वो अप्रत्याशित था जिसने न केवल अपने देश का नाम विश्वपटल पर सदा-सदा के लिये गहरे अक्षरों में अंकित कर दिया बल्कि देश-दुनिया को ‘धर्म’ व ‘कर्म’ की ताकत से परिचित करवाया जिससे कि नौजवान धर्म के मार्ग पर चलकर कभी कर्म से विमुख न हो और अपनी समस्त ऊर्जा को देशहित, समाज कल्याण एवं स्वयं के आत्म उत्थान में लगा उनकी ही तरह अन्य लोगों के लिये प्रेरक बन सके तो जब देश की युवाशक्ति एकत्रित होगी तो फिर कौन भला जो हमें अपना दास बना हम पर शासन कर सके क्योंकि किसी भी मुल्क की सबसे बड़ी संपत्ति तो उसके ‘नौजवान’ होते जो अपने गर्म खून के उबाल से किसी को भी हरा सकते केवल अपने अंतर में छूपे बेशुमार सद्गुणों के अक्षय भंडार का सदुपयोग करना सीख ले यही शिक्षा देने तो वे इस दुनिया में आये थे ।

आज फिर इस देश का युवा वर्ग दिग्भ्रमित हो रहा हैं और इस बार उसको अदृश्य तरंगों ने अपना बंदी बना लिया हैं जिसके वशीभूत वो अपनी असीम शक्तियों का हनन कर रहा हैं और उसे  व्यर्थ में ही गंवा रहा हैं तो इस समय फिर एक बार ‘स्वामी विवेकानंद’ की ‘ज्ञान-ज्योति’ की जरूरत हैं जिसकी ज्वलंत शिखाओं से बुराईयों को जला अच्छाईयों को प्रज्वलित कर सके तो हर साल की तरह इस बार भी उनके जन्मोत्सव को १२ जनवरी तक मनाने आज से ‘विवेकानंद ज्ञान-ज्योति’ श्रृंखला का शुभारंभ किया जा रहा हैं जिसकी प्रथम कड़ी आप सबके समक्ष प्रस्तुत हैं... :) :) :)
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०५ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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