गुरुवार, 21 जनवरी 2016

सुर-३८६ : "कुछ सवालों के जवाब नहीं होते...!!!"

दोस्तों...

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विरह के पल
सालते न उतना
जब प्रिय दूर होकर भी
जुदा न होते
लेकिन जब फासलें
जान-बुझकर बढ़ाये जाये या
फिर साथी सदा के लिये
रूठकर दूर चला जाये
तो अकेला हमदम किस तरह
विछोह का ये दर्द सह पाये
खुद से ही सवाल करें
और खुद को ही समझाये
फिर भी कोई जवाब न मिले तो
एक दिन आप अपने में ही घुटकर मर जाये
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‘रेवती’ लगातार कई दिनों से ‘दिवाकर’ को कॉल कर रही थी पर, न तो वो उसे रिसीव कर रहा था और न ही किसी भी कॉल का जवाब दे रहा था ऐसे में वो समझ नहीं पा रही थी कि आख़िर इसकी वजह क्या हैं ? वो क्यों उससे बात नहीं कर रहा ?? आजकल उससे दूर रहने के बहाने तलाशता हैं ???

यूँ जब भी मिलता तो पूछने पर काम की व्यस्तता का एकमात्र रटा-रटाया जुमला उछालकर माथे पर शिकन की परतें लाकर उसकी सहानुभूति बटोरकर चला जाता और वो भी उसे परेशां देखकर सामने तो कुछ कह नहीं पाती लेकिन जैसे ही अकेले होती तो प्रश्नों के जाल में खुद को फंसा हुआ पाती जिसका कोई भी सिरा उसकी पकड़ में नहीं आता कि आखिर जो बंदा कुछ दिनों पहले तक उससे बात किये बिना, उससे मिले बिना एक दिन न रह पाता था अचानक ही उससे दूर क्यों भागने लगा हैं जबकि अब तो कुछ ही दिनों बाद उनकी शादी भी होने वाली हैं पर, जिस तरह का व्यवहार अभी पिछले कुछ दिनों से उसने महसूस किया उससे वो बहुत अधिक चिंतित रहने लगी हैं क्योंकि पहले जहाँ वो नखरे दिखाती थी फिर भी वो उसका पीछा न छोड़ता था उसकी एक झलक पाने हर दूरी को पार कर भी दौड़कर चला आता था वही अब हाथ भर के फ़ासले को भी तय नहीं कर पाता बल्कि यूँ कहों कि उसमें किसी तरह का कोई उत्साह ही नहीं नजर आता न ही उसकी नाराज़गी की ही कोई परवाह करता यदि वो उसे दो-तीन दिन कॉल न करें या उससे मिलने की जिद न करें तो उसकी तरफ से किसी भी तरह का कोई प्रयास नहीं किया जाता ‘रेवती’ जितना भी इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करती उतना ही खुद को सवालों के घेरे में घिरा हुआ पाती यहाँ तक कि बात न करने या न मिलने की धमकी भी उस पर कोई असर न डालती

पहले उसे लगा शायद सचमुच काम बढ़ जाने के कारण ही वो अधिक व्यस्त रहने लगा कि उनकी शादी को लेकर उसने कुछ भविष्य की योजनायें बनाई थी जिनको साकार करने ही उसने खुद को पूरी तरह से काम में झोंक डाला था लेकिन उन शुरूआती दिनों में जबकि उसने कुछ नये-नये प्रोजेक्ट हाथ में लिये थे तब भी उसके लिये वक़्त निकालता था पर, अब तो जबकि सब कुछ नियंत्रित हो चुका हैं फिर भी उसका दूर-दूर रहना समझ से परे हैं वो अपने आप से ही प्रश्न पूछती जाती और कहीं से भी उसे कोई उत्तर नहीं मिल पाता तो थक-हारकर बैठ जाती या शांत होकर मौन साध लेती पर, जैसे ही इस चुप्पी से बाहर निकलती खुद को पुनः उन्हीं सवालों के दलदल में धंसती चली जाती आखिर दिल के हाथों मजबूर जो हैं... कुछ भी हो जाये न तो ‘दिवाकर’ को छोड़ सकती हैं और न ही उसकी जुदाई बर्दाश्त कर सकती हैं और न ही ऐसा कुछ उसके मुंह से सुनने को तैयार हैं तो इसी तरह से अपने आपको समझाते-बहलाते रहना हैं जहाँ से चले थे वहीँ वापस आकर ठहरना हैं... :( :( :( !!!           
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२१ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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