सोमवार, 18 जनवरी 2016

सुर-३८२ : "चिंतन : सच्ची ख़ुशी...!!!"



दोस्तों...

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कभी-कभी बहुत सोच-विचार के बाद भी जिन सवालों के जवाब नहीं मिल पाते वो अक्सर अनजाने में इस तरह से सामने आते कि हर संशय को एकदम से दूर कर जाते... बरसों सभी से पूछने पर भी न जान पाई कि ‘सच्ची ख़ुशी’ आखिर किस तरह हासिल होती लेकिन एक मासूम बच्ची ने चंद पलों में ही न सिर्फ इसके मायने बल्कि इसे पाने का सही तरीका भी बता दिया---

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अपनी नौकरानी की
बिटिया के चेहरे पर खिली
ख़ुशी की कलियाँ देख
वे हैरत में थी कि
किस तरह वो
कचरे में फेंके टूटे-फूटे
खिलौनों को पाकर
उन्हें बार-बार
छूकर देख रही थी
चहक रही थी
जबकि उनकी अपनी बेटी
मंहगे से महंगे
खिलौने भी दिला दो तो भी
ख़ुशी की ये झलक
नज़र न आती
सच...
पैसे से सिर्फ़
वस्तु खरीदी जा सकती
लेकिन सच्ची ख़ुशी
वो तो अंदर से ही आती ।।
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हर तरह की सुख-सुविधा से घिरे होने के बाद भी जब दिल में उमंग की लहर और चेहरे पर वो खालिस मुस्कान नहीं आती तो ये प्रश्न और अधिक परेशान करता कि आख़िर... ‘सच्ची ख़ुशी’ क्या हैं’?... पर, अब ये जान गयी कि ये भी ‘कस्तुरी मृग’ की तरह हमारे अंदर ही बसी होती जिसे हम बाहर यहाँ-वहां सामानों में या इंसानों में तलाशते... :) :) :) !!!  
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१७ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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