गुरुवार, 7 जनवरी 2016

सुर-३७२ : "विवेकानंद ज्ञान ज्योति---०३ !!!"


दोस्तों...

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सब गाते
देश की महिमा
पर,
देश हमारा
गाये गाथा उनकी
देश की खातिर
जान समर्पित जिनकी
जिसने भी देश को
मातृभूमि अपनी माना
वक्त पड़ा तो
फिर न पलटना जाना
तो नाम से उसके
सबने देश को पहचाना
ऐसी महान विभूति
‘विवेकानंद’ को भी माना
जिसने स्वदेश को 
‘विश्वगुरु’ बनाने का लक्ष्य ठाना
हर बाधा को पार कर
विदेश में भारत का परचम लहराया     
उसकी गुणगाथा को
हो गर्वित सबने सदा दोहराया
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‘विवेकानंदजी’ की चारित्रिक विशेषताओं पर नज़र डाले तो बचपन से ही उनमें दृढ़ता, निडरता, समर्पण, लगन, बुद्धिमता, सजगता, देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी तभी तो किसी भी तरह की परिस्थिति हो या फिर वातावरण वे कभी भी घबराते नहीं थे बल्कि अपनी वैचारिक शक्ति से उस पर चिंतन कर उसका हल खोजने का प्रयास करते थे ताकि उसे समूल नष्ट कर सके यही वजह कि उस कठिन दौर में भी वे हिम्मत न हार कर आगे ही आगे बढ़ते रहे कि उनके सामने अपना लक्ष्य स्पष्ट था तो फिर कहीं भी किसी भी मोड़ पर रुकना या आराम करना उनको मंज़ूर नहीं था तभी तो उन्होंने समस्त लोगों को भी ये संदेश दिया कि ‘उठो, जागो... जब तक कि लक्ष्य न पा लो... रुको मत’ यदि सभी लोग केवल इसी एक सूत्र को जीवन में आत्मसात कर ले तो फिर उनको विजयी होने से कोई नहीं रोक सकता मगर, सबसे बड़ी समस्या तो अपने ‘लक्ष्य’ को निर्धारित करना हैं जिसका सबको ज्ञान ही नहीं होता तो इस वजह से वो निरुद्देशय भटकते रहते तो कुछ को यदि अपने ‘टारगेट’ का पता भी हैं तो यदि उनमें उसे प्राप्त करने के प्रति बेहद का जुनून नहीं होता तो भी कुछ नहीं होता याने कि भले ही सफ़लता का ये सूत्र बड़ा छोटा हैं मगर, बड़ा गहरा अर्थ उसमें छिपा हुआ हैं जिस पर हर व्यक्ति को दो मुख्य बातों पर अपना ध्यान केंद्रित करना हैं पहला तो उसे अपने जीवन का ‘उद्देश्य’ निश्चित करना होगा तब उसको हासिल करने की रणनीति बना तब तक अथक अनवरत परिश्रम करना होगा जब तक कि वो उस मंजिल तक नहीं पहुंच जाता हैं क्योंकि कहीं भी किसी भी पड़ाव पर किंचित मात्र का भी आराम व्यक्ति को शिथिल कर देता और इस कथन को अपने जीवन में पूर्णरूपेण चरितार्थ कर दिखाया ‘स्वामी जी’ ने कि जिस दिन उनको अपने उद्देश्य तक पहुंचने का मार्ग मिल गया तो फिर वो हर मुश्किल को लांघकर विदेश पहुँच गये जहाँ पर न तो उनको आमंत्रित किया गया था और न ही कोई उनका परिचित ही था लेकिन उनके आत्मविश्वास से भरे सौम्य व्यक्तित्व में सूरज की तरह वो दमक थी कि देखने वाले की ऑंखें चौंधिया गयी तो फिर मंजिल किस तरह न मिलती

‘विवेकानंद जी’ के जीवन में आप जितना भी गहराई में उतरेंगे तो ये महसूस करेंगे कि उनकी ज़िंदगी में कुछ भी नकारात्मक नहीं हैं सब कुछ संपूर्ण रूप से सकारात्मक तो जब हम उनको पढ़ते-गुनते तो उनकी वो तरंगें हमारे भीतर भी प्रेरणा का ऊर्जा स्त्रोत बनकर उतर जाती कि वो कदम-कदम पर हम सबको याद दिलाते रहते कि हम सबके भीतर एक समान ईश्वरीय शक्ति हैं अतः हम सब वो सब कुछ कर सकते जो भी हम सोचते या करना चाहते केवल हम ही अपनी शक्तियों से अनभिज्ञ रहते इसलिये तो किसी-किसी को अपना उद्देश्य पाना असंभव लगता या कोई भी कठिनाई आये तो उससे उबरना भी मुश्किल लगता लेकिन जिसने भी ख़ुद के भीतर छिपी उन अद्भुत अदृश्य शक्तियों को ढूंढ लिया उसे फिर कुछ भी नामुमकिन नहीं लगता यही वजह कि सफ़लता पाने वाले इस तरह के तेजस्वी शख्सियत की जीवन गाथा जरुर पढ़ते क्योंकि उनका व्यक्तित्व ही नहीं कृतित्व भी पाठकों को नवीन उत्साह से भर उनके अंदर क्रियात्मक ऊर्जा का संचरण कर देता जिसके कारण उनका मनोबल बढ़ जाता और वे पुरे जोश से अपने कर्म में जुट जाते शायद, इसलिये ही हम सबको बचपन से महापुरुषों के चरित्र पढ़ने और उनका अनुशरण करने की सलाह दो जाती कि उनके अनमोल वचन के आखरों से निकली किरणें हमारे सर्वांग में संचारित होकर हमें भी एक ज्वलंत क्रियाशील पिंड में परिवर्तित कर देती जो फिर अनवरत हर अवरोध को भस्मीभूत कर आगे ही आगे बढ़ता जाता जब तक कि अपने लक्ष्य रूपी छिद्र में नहीं समा जाता जहाँ से फिर दुगुना तेजोमय होकर अगले लक्ष्य को संधान करने निकल पड़ता याने कि किसी सूर्य समान ज्वालामय विभूति का शाब्दिक स्वरुप भी उसी के समान ऊर्जावान होता क्योंकि कुंदन के समान संघर्षों की भट्टी में तपकर उसमें अपरिमित तेज भर जाता जो फिर अनंत काल तक आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करता रहता तो फिर क्यों न हम सब भी ज्ञान के सागर ‘स्वामी जी’ की लेखनी का पुनर्पाठ करें ताकि हमारी सुप्त हो चुकी कर्मेन्द्रियाँ पुनः जागृत होकर कर्मपथ पर चल पड़े इसी मनोरथ को लेकर ये श्रृंखला प्रारंभ की जिसकी त्तृतीय कड़ी आपके समक्ष हैं... :) :) :) !!!     
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०७ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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