रविवार, 24 जनवरी 2016

सुर-३८९ : "जिंदगी को अपनी ही समझे... पराई नहीं...!!!"

दोस्तों...

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जैसे ही ‘मोनिका’ का मोबाइल बजा उसने तुरंत उसे उठाया तो स्क्रीन पर ‘चैताली’ का एक संदेश नजर आया उसने झट से उसे खोल पढना शुरू कर दिया क्योंकि वो रात को बहुत रो रही रही थी की वो कुछ भी करे पर, उसका मंगेतर उससे कभी ख़ुश नहीं होता ऐसे में उसे समझ नहीं आ रहा कि वो क्या करें ? कैसे उसका दिल जीते ?? किस तरह उसके अनुरूप बने ??? उस समय तो उसने जैसे-तैसे उसे समझा-बुझाकर सोने को मनाया कि वो सुबह जल्दी उससे मिलने आयेगी पर, जो मेसेज उसके सामने था वो तो कुछ और ही कहानी बयां कर रहा था---

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उसने कहा,
तुम सोचती नहीं
कुछ सोचा करो
जब सोचना शुरू किया तो
फिर उसने कहा,
बहुत सोचती हो यार
इतना भी न सोचा करो
तो जो भी किया
वो उसे खुश न कर सका
हर बात में कहीं  
कोई कमी रह ही गयी
और...
इससे बचने का
अब एकमात्र उपाय था
कि जेहन को इस देह के पिंजरे से
मुक्त कर दिया जाये
तो मैंने वही किया
पर...
इस पर भी
कोई शिकायत करें तो...
उस जहाँ में भी रूह बेचैन रहेगी
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‘मोनिका’ ये तो जानती थी कि उसकी सखी बेहद संवेदनशील और भावुक हैं जिसे अपने से ज्यादा दूसरों की परवाह होती हैं लेकिन वो कोई ऐसा कदम भी उठा सकती हैं उसे अहसास नहीं था तो इस संदेश को पढ़कर उसे बड़ा जोर का झटका लगा कि उसकी सहेली ने अपनी ज़िंदगी को कभी अपना न समझ सदा उसे लोगों के कहे अनुसार जिया कभी सोचा ही नहीं कि वो अपनी जान देकर भी किसी को संतुष्ट नहीं कर पायेगी लोग तो अब भी बातें बनायेंगे ही काश, वो समझ पाती कि मरने से भी किसी की जुबान पर ताले न लगेंगे... इतने अनमोल जीवन के पल जो उसने गंवा दिये क्या अब वो वापस मिलेंगे ???

उफ्फ... अगर जिंदगी के सही मायने न पता हो तो ‘चैताली’ जैसे इमोशनल लोग तो जी न सकेंगे कि इस दुनिया में हर तरह के लोग मिलेंगे किस किस की खातिर हम अपने आपको बदलेंगे किसी को दुःख न पहुंचाने का मतलब ये तो नहीं कि खुद ही गम के सागर में डूब जाये बेहतर कि अपनी जिंदगी को सिर्फ अपनी समझे उसे दूसरों को ख़ुशी देने के लिये इस्तेमाल जरुर करें पर, फ़िज़ूल में गंवाये नहीं    
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२४ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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