शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

सुर-३८० : "सानिया-मार्टिना की जोड़ी... कभी न जाये तोड़ी...!!!"


दोस्तों...

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जज्बा ऐसा कि
हर अवरोध को पार किया
ठाना कुछ कर के हैं दिखाना
तो रुख पीछे न किया
‘सानिया मिर्ज़ा’ ने मेहनत-लगन से
टेनिस की दुनिया में
साथ अपने ‘भारत’ का नाम भी
संपूर्ण विश्व में रोशन किया
तो लड़कियों के लिये भी
मुश्किल समझे जाने वाले खेल में
सुगम पथ का निर्माण किया
देख ये अद्भुत सफलता
सबने गर्वित हो सलाम किया
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१५ नवंबर १९८६ को मुंबई में एक सामान्य मुस्लिम परिवार में जन्मी ‘सानिया’ को अपने परिवार सहित ‘हैदराबाद’ जाना पड़ा जहाँ उनके लिये सब कुछ बड़ा आसान नहीं रहने वाला था लेकिन जैसा कि कहते हैं कि ‘पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं’ तो कुछ ऐसा ही उनके साथ भी हुआ और बचपन से उनको ‘टेनिस’ जैसे खेल में जिसे कि अमूमन इतना सहज-सरल नहीं समझा जाता उस पर मुश्किल ये भी कि किसी लड़की का वो भी जिसे अपने मजहब की तरफ़ से पाबंदियों का सामना भी करना पड़ता हो उसके लिये इस क्षेत्र का चुनाव वाकई काँटों भरी डगर था लेकिन जब किसी ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा को उसके परिजनों का विशेषकर माता-पिता का संबल मिल जाता तो फिर दुनिया या समाज उसका कितना ही विरोध करें या उसके सामने कितने भी मुश्किल हालात पैदा करें वो उनके सहारे हर किसी का सामना कर लेता तो यही ‘सानिया’ के संग भी हुआ जिसे महज़ छह साल की नाज़ुक उमर से ही किसी हीरे की तरह तराशा जा रहा था

आर्थिक समस्याओं के बावजूद भी उनके ‘अब्बा’ ने हार न मानी बल्कि उन्हें तो अपनी बेटी पर पूर्ण भरोसा था तो अपने दृढ़ संकल्प के जरिये वो उसके राह में आने वाले अवरोधों को दूर करते हुये उसका आगे बढ़ते जाना सुगम बनाये जा रहे थे जिसके लिये उनको जो भी मदद मिल सकती थी उसके लिये प्रयास किया यही वजह कि उनकी बिटिया के अद्भुत हुनर को पहचानते हुये बड़ी-बड़ी कंपनियों ने उनके लिये स्पांसर करना मंजूर किया और उनकी ख़ुशकिस्मती कि टेनिस के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी ‘महेश भूपति’ के पिता के सरंक्षण में उनका प्रशिक्षण शुरू किया गया जिसके कारण सिर्फ १४ साल की बाली उमरिया में ही वे ‘भारत’ का प्रतिनिधित्व कर सकी जिसने उनके लिये सफ़लता के द्वार ही नहीं ‘टेनिस’ खेलने देश-विदेश के सभी मैदानों में तक पहुँचने के लिये हर तरह का इंतजाम कर दिया कि फिर तो एक के बाद एक सीढियां मिलती गयी जहाँ १९९९ में उन्होंने ‘जूनियर स्तर’ पर पहली बार अपने देश का प्रतिनिधित्व किया तो उतनी ही कम उम्र में पहला ‘आई.टी.एफ.’ जूनियर टूर्नामेंट इस्लामाबाद में खेला और इसी खेलने के दौर में ‘भारत’ के शीर्ष टेनिस खिलाड़ी ‘लिएंडर पेस’ ने ‘सानिया’ को खेलते देखा और तभी ये सोच लिया कि वह ‘सानिया मिर्ज़ा’ के साथ ‘डबल्स’ में उतरेंगे तो दोनों ने अपने देश को कांस्य पदक दिलाया जिसके बाद ‘सानिया’ ने एक बड़ा कमाल किया कि १७ वर्ष की उम्र में ‘विंबलडन’ का ‘जूनियर डबल्स चैंपियनशिप’ खिताब जीता जिसने उनके हौंसलों को बुलंद कर दिया

फिर तो सफलताओं का जो सिलसिला शुरू हुआ उसने छोटी सी उमर में ही ‘सानिया’ को जमीन से आसमान तक पहुंचा दिया और अनेक ‘राष्ट्रीय’ एवं ‘अंतरराष्ट्रीय’ मैचों में अपनी दमदार उपस्थिति से उन्होंने पूरी दुनिया में ‘सानिया मिर्ज़ा’ के नाम के साथ-साथ ‘भारत’ देश का परचम भी लहरा दिया जिसने उनकी झोली में लगातार सम्मानों व पुरस्कारों की बरसात कर सन २००५  के आखिरी तक उनकी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग 42 हो गयी थी जो किसी भी भारतीय टेनिस खिलाड़ी के लिए सबसे ज्यादा थी तो २००५ में अपने शानदार प्रदर्शन के कारण उनको ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया जिसे कम उम्र में जीतने वाली वे पहली महिला खिलाड़ी बनीं तो इसके बाद २००६ में ‘अमेरिका’ में विश्व के अनेक टेनिस खिलाडियों के बीच उनको ‘डब्लूटीए’ का 'मोस्ट इम्प्रेसिव न्यू कमर एवार्ड' प्रदान किया गया था इस तरह केवल १८ वर्ष की आयु में अपने बेहतरीन खेल से समस्त विश्व को चमत्कृत करने वाली इस हस्ती को २००६ में 'पद्मश्री' जैसे बड़े सम्मान से गौरवान्वित किया गया जिसे पाकर वे सबसे कम उम्र में उसे हासिल करने वाली पहली शख्शियत भी बनी और २००९ में तो उन्होंने ‘ग्रैंड स्लैम’ जीत इस ख़िताब को जीतने वाली प्रथम महिला का गौरव प्राप्त किया याने कि अपनी अथक मेहनत से उन्होंने अनवरत जीत और अवार्ड एक साथ हासिल किये ।

लगातार एक दशक तक २००३ से लेकर २०१३ तक ‘सानिया’ ‘महिला टेनिस संघ’ (डब्ल्यू टी ए) के ‘एकल’ और ‘डबल’ में शीर्ष भारतीय टेनिस खिलाड़ी के रूप में अपना स्थान बनाए रखने में सफल रही और फिर उसके बाद उन्होंने एकल प्रतियोगिता से सेवानिवृत्ति लेकर स्विटजरलैंड  की ‘मार्टिना हिंगिस’ के साथ जोड़ी बनाई और दोनों के बीच ‘रेकेट’ व ‘बॉल’ के समान ऐसा तालमेल बना कि उन दोनों ने मिलकर लगातार २८ मैच जीता और कल 29वां ‘वीमेंस डबल्स’ मैच जीतकर दोनों ने 22 साल पुराना वर्ल्ड रि‍कॉर्ड तोड़ दिया है और ‘डब्ल्यूटीए सिडनी इंटरनेशनल’ के ‘वीमेंस डबल्स’ के फाइनल में भी जगह बनाकर कीर्तिमान प्राप्त करने का एक अनोखा इतिहास बनाया जिसके कारण हम सभी देशवासी उन पर नाज़ करते हैं और उन दोनों खिलाडियों को अनेकानेक बधाई देते हुये शुभकामना व्यक्त करते हैं कि ये दोनों इसी तरह अपने विजय रथ को जारी रखते हुये हर रिकॉर्ड को तोड़ शीर्ष स्थान पर बनी रहे... आमीन... :) :) :) !!!  
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१५ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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