सोमवार, 4 जनवरी 2016

सुर-३६९ : "असमय जाने वाले... जाने चले जाते हैं कहाँ...???"

दोस्तों...

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जीवन..
एक सफ़र
पथिक बन आत्मायें
दुनिया में आती
जो अपनी मंजिल आने पर
वापस चली जाती
वो मृत्यु का परिचय कराती   
पर, जो चलते-चलते
बीच यात्रा में ही
किसी और दुनिया में चली जाती   
वो सबको बड़ा तड़पाती
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अभी नये साल की ख़ुमारी उतरी भी न थी और न ही बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ ही खत्म हुई थी तो इस सर्द गुलाबी मौसम का सपरिवार आनंद लेने लोग यहाँ-वहाँ घूम रहे थे ऐसे में किसे खबर थी कि एक परिवार जो बचे हुये अवकाश का लाभ लेने निकला था वो यूँ बीच रास्ते में अचानक ही काल का ग्रास बन जायेगा सच, कल जब ‘फ़ेसबुक’ खोला और सामने वो दर्दनाक हादसे की खबर पढ़ी तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि ये सच हैं यूँ लगा ‘निधि जैन’ कोई मज़ाक कर रही हैं और अगले दिन हंसती हुई इस बात का खंडन करेगी पर, ऐसा न हुआ ये तो कटू सत्य निकला जिस पर न चाहते हुये भी हम सबको यकीन करना पड़ेगा कि बेबाक, बिंदास, जिंदादिल और खुशमिज़ाज ‘निधि’ अब हम सबके बीच नहीं रही अकाल मृत्यु के पाश ने उसे हम सबसे छीन लिया शायद, ये भी एक बहुत बड़ी सच्चाई हैं कि उपरवाले को भी अच्छे लोगों की जरूरत होती तो जिन्हें सब पसंद करते वो उन्हें जल्दी अपने पास बुला लेता ये सोचे बिना कि उनके अकस्मात चले जाने से उनके करीबियों के दिल पर क्या गुजरेगी वो किस तरह से इस असहनीय पीड़ा को सहन कर पायेंगे और यदि बात इस घटना की ही करे तो जो कुछ भी समाचार पत्रों और ‘सोशल मीडिया’ में पढ़ने और देखने में आया वो हर किसी के हृदय को विगलित कर गया कि किस तरह एक खतरनाक रोड एक्सीडेंट की वजह से एक क्षण में ही एक हंसता-खेलता परिवार क्षणिक जीवन की उक्ति को चरितार्थ करता असमय ही लौकिक यात्रा से अलौकिक यात्रा पर निकल गया और वो हृदयविदारक दृश्य हर संवेदनशील मन को आहत कर गया चाहे फिर जान-पहचान वाले हो या अजनबी इस खबर ने तो सबकी आँखों को नम कर दिया कि ये नूतन वर्ष किस तरह का आगाज़ कर गया

‘निधि जैन निंबोरी’ आभासी दुनिया का एक जाना-पहचाना और लोकप्रिय नाम... जिसके दोस्त हो या शत्रु सब ही उसे पसंद करते थे क्योंकि वो अपनी पोस्ट पर एकदम खरी-खरी कहती थी जिसके कारण उसे पढ़ने वालों का एक अलग ही वर्ग तैयार हो गया था जो उसकी पोस्ट का इंतजार करते थे उसकी साफ़गोई को पसंद करते थे कल इस बात का ख़ुलासा भी हो गया जब ‘फ़ेसबुक’ की लगभग हर पोस्ट पर उसकी ही खबर थी हर मित्र दुखी मन से अविश्वास करते हुये उसे श्रद्धांजलि दे रहा था और अधिकांश को मेरी तरह यही लग रहा था कि ये झूठ हैं काश, ऐसा ही होता पर न चाहते हुये भी इस सच को तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि अब इस आभासी मंच पर, ‘निधि जैन’ की मस्ती भरी हल्की-फुल्की मगर, गहरे तंज या बोले तो मखमल में लपेटकर मारती हुई पोस्ट पढ़ने को न मिलेगी जिसमे हद दर्जे की बेख़ौफ़ बातें होती फिर चाहे कोई नाराज़ हो या नापसंद करे लेकिन उसने कभी किसी की चापलूसी करती पोस्ट न डाली हमेशा ही जो कुछ भी वो देखती उसे अपने ही अलहदा नजरिये का तड़का लगाकर पेश करती जिसे पढ़कर दोस्तों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती खासकर जब वो ‘बुन्देलखंडी’ में लिखती तो पढ़कर अपनेपन का स्वाद आ जाता कि हम भी उसी क्षेत्र के रहवासी जहाँ इस बोली का प्रयोग किया जाता तो हम लोग तो बेजा लुत्फ़ लेते थे ‘मध्यप्रदेश जनसंदेश’ में तो उनकी इस आंचलिक बोली की पोस्ट को विशेष स्थान भी दिया गया था जिसे उन्होंने रोचक अंदाज़ में अपने मित्रों से साँझा भी किया था उनको ये पता रहता था कि किसी साधारण सी बात को किस तरह अपने ‘सेंस ऑफ़ ह्यूमर’ से खट्टी-मीठी बनाना हैं कि वो कसैली न लगे तभी तो समसामयिक प्रसंगों पर उनके चुटीले अंदाज़ ने हर किसी को आकर्षित किया तो किसी-किसी को नाराज़ भी किया लेकिन जब पसंदगी का प्रतिशत अधिक हो तो नापसंदगी की परवाह कौन करता हैं तो वो भी खुलकर ही अपनी बेबाक शैली में अपने विचार प्रस्तुत करती ।

कल जहाँ इस खबर ने एक तरफ फिर से एक बार इस वास्तविक दुनिया में पानी के बुलबुले सी क्षणभंगुर जिंदगी की पोल हम पर खोल कर रख दी तो वहीँ दूसरी तरफ ‘आभासी दुनिया’ की वास्तविक मित्रता की भी मिसाल कायम कर दी जब हर एक मित्र की पोस्ट पर सिर्फ और सिर्फ इस अविश्वसनीय घटना पर, दुखद आश्चर्य के साथ अपनी प्यारी साथी के यूँ दर्दनाक तरीके से बिछड़ जाने पर उसके प्रति शोकपूर्ण भावाभिव्यक्ति थी... जिसने ‘फेसबुक’ का पूरा माहौल ही ग़मगीन बना दिया जिसे देखो वो ही रोते हुये श्रद्धांजलि व्यक्त कर रहा था और मन में सोच रहा था कि हे ईश्वर, ऐसा न हो हमारी मित्र सही-सलामत हो उनकी मनोभावनायें उनके शब्दों में स्पष्ट झलक रही थी जिसने ये सिद्ध कर दिया कि भले ही ये दुनिया आभासी हो लेकिन लोग तो सच्चे हैं... उनकी भावनायें भी सच्ची हैं और यहाँ भी सच्चे दोस्त मिलते हैं केवल उनको पहचानना आना चाहिये तो फिर चाहे मिलो न मिलो उनकी दूरी का अहसास नहीं होता और अजनबीयत भी अपने आप ही खत्म हो जाती तो अपने आप ही अपनापन लगने लगता तभी तो जिससे वास्तविकता में कोई नाता नहीं न ही कोई मेल-मुलाकात उसके लिये इतने सारे लोग की शब्दांजलि यही बताती कि दुनिया कोई भी हो रिश्ते-नाते हर जगह उतने ही स्वाभाविक होते जितना कि आप उनसे जुड़ाव महसूस करते नहीं तो सदा साथ-साथ व पास-पास रहने वाले भी दूर लगते जबकि किसी सुदूर बैठे व्यक्ति को आप अंतर के नज़दीक पाते इसलिये तो अब लोग ‘आभासी दुनिया’ में न सिर्फ ताल्लुक बनाते बल्कि उनके लिये वक़्त भी निकालते फिर धीरे-धीरे ये संबंध गहरे होते जाते और जब उनके दूसरे सिरे के एकाएक टूट जाने का पता चलता तो हम भी थोड़ा-सा टूट जाते... कुछ ऐसा ही लगा जब ‘निधि’ के चले जाने का पता चला और जब आज ये मानने को मजबूर होना ही पड़ा कि वो अब यहाँ नहीं हैं तो जो कुछ भी एक आत्मा ने दूसरी आत्मा के लिये महसूस किया उसे यूँ शब्दों में अभिव्यक्त किया---

रिश्ता,
भले ही आभासी था
लेकिन अहसास वास्तविक
कि तुम्हारा यूँ चले जाना
रिक्तता का अहसास करा रहा
और इस खालीपन को
कैसे भरूं समझ न आ रहा ???

‘निधि’ और इस हादसे के शिकार सभी परलोकवासियों को मन से नमन और श्रद्धा सुमन... :( :( :’( !!!                                
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०४ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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