शनिवार, 16 जनवरी 2016

सुर-३८१ : "गुरु गोबिंद सिंह जयंती... हर धर्म को लगती भली...!!!"


दोस्तों...

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इंसानियत ही
एकमात्र सच्चा धर्म
दीन-दुखियों की सेवा
मजहब की रक्षा
बिना किसी भेदभाव 
वीरों का होता यही कर्म
निभाकर जिसे
‘गुरु गोबिंद सिंह’ ने
रखी एक नये धर्म की नींव
उद्देश्य जिसका
जब-जब बढ़े अत्याचार
करना हिम्मत से उसका प्रतिकार
बनकर स्वयं धर्म अवतार
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‘सिख धर्म’ को शुरुआत से ही ‘हिंदू धर्म’ के रक्षक के तौर पर देखा गया हैं जिसने बड़े से बड़े शक्तिशाली दुष्ट अत्याचारी का अपने अपरिमित हौंसलों से सामना किया फिर भले ही अपनी या अपनों की शहादत देनी पड़ी लेकिन किसी भी तरह के हालात के आगे सर न झुकाया और हर तरह की परस्थिति के साथ जूझते हुये, हर एक शत्रु से पूरे दम से पंजा लड़ा अपने मज़हब को विजयी बनाया तभी तो जब-जब भी किसी ऐसे परोपकारी महान संत का जिक्र आया तो हमने कृतज्ञता के साथ भरे दिल से उसके चरणों में शीश नवाया कि उसके त्याग-समर्पण ने ही हम सबको न सिर्फ़ बचाया बल्कि आज़ादी का ये बेख़ौफ़ दिन दिखाया पर, जिसके साये तले जीकर हमें न कोई कर्ज़ चुकाया तो जरूरी हैं कि हमको ये खबर हो कि हमारी जान की खातिर कितने लोगों ने अपने जान की क़ुरबानी दी ताकि जब कभी ऐसा अवसर आये तो हम भी आगे बढ़कर अपनी आन-बान-शान को कायम रखते हुये दूसरों की खुशियों को भी बरक़रार रख सके इसे ही तो ‘मानवीयता’ कहते हैं जो कि बिना किसी भेदभाव के दुनिया के हर मानव को एकसूत्र में जोडती हैं इसी एकमात्र ख़ालिस धर्म का पथ पढ़ाने अनगिनत संत-महात्माओं ने इस धरा पर जनम लिया पर, अफ़सोस कि हमने उसको अंतर में उतनी ही शिद्दत से ग्रहण न किया वरना, जिस तरह का खुदगर्जी भरा माहौल आज हैं वैसा हर्गिज़ न होता हमारे दिलों में वही शुद्धता व पारदर्शिता होती जिसके आईने में हर एक इंसान समान नजर आता क्योंकि तब हम अपने सूक्ष्म नेत्रों से उसके बाहरी नहीं वरन भीतर बसे ज्योति स्वरूप के दर्शन करते

हर एक अवतारी पुरुष की यही समानता कि उसने सदैव हर एक व्यक्ति के उपरी रूप-रंग को नहीं बल्कि उसके अंतर्मन में स्थित आत्मा को देखा इसलिये उसे कोई भी भिन्न न दिखाई दिया इसलिये वो सबको समदृष्टि से देखते हुये उनके लिये बड़े से बड़ा त्याग कर पाया जैसा कि सिखों के दसवें व अंतिम गुरु ‘गोबिंद सिंह’ ने किया जो एक अविस्मरणीय ऐतिहासिक मिसाल बन गया जिसने ये दर्शाया कि बात जब धर्म की हो तो फिर ‘इंसानियत’ से बड़ा कोई नहीं इसलिये तो उसको बचाने उन्होंने जो क़ुरबानी दी उसकी कल्पना करना भी रोंगटे खड़े कर देता हैं पर, उन्होंने तो अपनी आँखों के सामने ही ये सब होने दिया अपने पुत्रों को एक-एक कर धर्म की बलिवेदी पर चढ़ा दिया उन नादान मासूम बालकों के रक्त की आहुति दे दी लेकिन अपना धर्म न खोया और दुनिया को ये दिखा दिया कि बात जब अपने स्वधर्म की हो तो फिर बेगैरत की तरह छुपकर सांसे लेना जिल्लत सहकर भी जिये जाना तो बुजदिलों को काम हैं लेकिन जो वीर-साहसी होते वो उसको बचाने अपने ही नहीं अपनों का भी बलिदान देने में नहीं हिचकते जिसका उदाहरण उन्होंने अपने जिगर के टुकड़ों की धर्म यज्ञ में बलि देकर पेश किया तो आज उसी धर्म-रक्षक धर्म-गुरु खालसा पंथ के संस्थापक और सिखों के दसवें गुरु की की जयंती पर हर एक को ‘गुरु पर्व’ की लख-लख बधाइयाँ... :) :) :) !!! __________________________________________________
१६ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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