शनिवार, 9 जनवरी 2016

सुर-३७४ : "विवेकानंद ज्ञान ज्योति --- ०५ " !!!

दोस्तों...

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जितना भी
हम सोच पाते
उससे अधिक कर सकते
पर, होते अंजान
अपनी ही क्षमताओं से
तो हाथ पर हाथ धर कर
सोचते ही रह जाते
जबकि करने वाले तो
बिना खुद पर संदेह किये
सिर्फ़ करते जाते
तभी तो कभी-कभी
कमजोर आगे निकल जाते
जबकि मजबूत पीछे ही रह जाते
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इस दुनिया में असंख्य लोग जो उपरी तौर पर एक समान कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों से युक्त दिखाई देते जिनमें से कुछ को यदि हम उनकी किसी तरह अक्षमता की वजह से इस सूची में से निकाल भी दे तब भी बाहरी स्वरूप में पूरी तरह से सामान्य नजर आने वाले इन लोगों में सबकी काबिलियत एक समान नहीं होती और न ही सब एक जैसा कार्य कर सकते जिसकी वजह ये नहीं होती कि उनमें उपर वाले ने कोई भेदभाव किया या उनमें ही कोई क्षमता नहीं बल्कि अमूमन हम ही अपने आपको कमतर समझते या अपनी आंतरिक शक्तियों से अंजान रहते जिसके कारण केवल सीमित मात्रा में अपनी सामर्थ्य का उपयोग करते तो फिर मिलने वाली सफलता का स्तर भी उतना ही होता पर, अपनी कमी को पहचानने या स्वीकार करने की जगह हम दूसरों को खुद से श्रेष्ठ समझते या ये सोचते कि वे तो हैं ही प्रतिभाशाली तो उनके लिये तो कुछ भी मुश्किल नहीं पर, एक बार भी ये विचार नहीं करते कि हमारे भीतर अनंत शक्तियों का गुप्त खज़ाना छिपा पड़ा हैं जिसका हम दोहन नहीं कर पा रहे तो फिर वो अनुपयोगी बन सड़ता रहता जिसका हमें पता भी नहीं चलता और अब तो ये सर्वविदित सत्य हैं कि इस दुनिया का बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी केवल अंशतः ही अपनी उस अपरिमित शक्तियों का उपयोग कर पाता ये सब कुछ वैसा ही हैं जैसा कि परम बलशाली रामभक्त ‘हनुमान’ की कथा में हम पढ़ते कि बचपन में मिले अभिशाप की वजह से वो अपने अंदर की शक्तियों से तब तक के लिये अनभिज्ञ हो जाते और जब तक कि उनको याद न दिलाये जाये तो कुछ ऐसा ही हम सबके साथ भी हैं और हम उनको विस्मृत कर अपने दायरे में सिमट कर रह जाते और हमारे साथ तो ऐसा भी नहीं कि किसी के याद दिलाये जाने पर हम उनको पुनः स्मरण कर ले यहाँ तक कि ये ज्ञान होने पर भी मूक बन बैठे रहते जबकि कुछ उन दायरों से बाहर निकाल कुछ असंभव कर जाते कि वे अपने आपको किसी बंधन में नहीं बांधते हर चीज़ को संभव मान काम करते तो फिर सफलता भी पाते

कोई भी मनुष्य कितनी शक्ति संपादन कर सकता हैं इसका कोई अंत नहीं कि जिस तरह समुद्र मंथन करने से उसमें से एक के बाद एक अनमोल रतन निकलते उसी तरह जब हम अपने मन का मंथन करते तो उसमें से भी एक-एक कर बहुमूल्य नगीने निकलते जो हमारे भीतर संभावना का एक नया द्वार खोल देते पर इस स्थिति तक पहुंचना भी तो सबके बस की बात नहीं इसलिये तो हम किसी भी काम को असंभव या मुश्किल समझ छोड़ देते पर, जिसको ये ज्ञान हो गया तो फिर उसने अपना नाम भी बना लिया तो हम भी अपने नन्हे से मन को नन्हा न समझ उसकी अपार क्षमताओं को जानने का प्रयास करें फिर कुछ भी असम्भव न होगा... सच... :) :) :) !!! 
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०९ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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