बुधवार, 6 जनवरी 2016

सुर-३७१ : "विवेकानंद ज्ञान ज्योति – ०२" !!!

दोस्तों...

___//\\___
  
आत्मानुभूति
स्वयं से पहचान कराती
भोग-विलासिता
अपने आप से दूर ले जाती
प्रचंड योगाग्नि
ज्ञान का अखंड दीपक जलाती
परमात्मा भक्ति
समस्त दुर्गुणों को दूर भगाती
'विवेकानंद वाणी'
अज्ञान का गहरा अंधकार मिटाती ।।
-------------------------------------------●●●

'विवेकानंद' बनने से पहले 'नरेंद्रनाथ' भी किसी नवयुवक की भांति उम्र के उस दौर से गुज़रे जबकि जीवन का उद्देश्य तो ज्ञात था मगर, उसको प्राप्त करने किस मार्ग का चुनाव किया जाये या किसके मार्गदर्शन में कदम आगे बढ़ाया जाये कि सफ़लता हासिल हो तो इस विचार ने उनको भी परेशान किया मगर, मन की लगन और लक्ष्य के प्रति आस्था इतनी अधिक थी कि आखिरकार एक दिन उनकी मुलाकात उनके आध्यात्मिक गुरुदेव 'रामकृष्ण परमहंस' से हो जाती हैं जिसके बाद उनकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती हैं और फिर वो छोटी अवधि मे ही बड़े-बड़े कामों को अंजाम देकर अल्पायु मे ही इस दुनिया से चले जाते हैं लेकिन देश की भावी पीढ़ी को जीवन के गहनतम रहस्य, विजेता बनने के गुर सिखाने अपने अनुभवों व गुरु से प्राप्त अनमोल ज्ञान को वो ग्रंथों मे लिख सुरक्षित छोड़ जाते हैं जिसे पढ़ हम हर तरह के क्षेत्र की बारीकियां जान सकते हैं क्योंकि 'विवेकानंद जी' ने वेद, उपनिषद, पुराण जैसे धर्मग्रंथों के अतिरिक्त हर विषय का पूर्ण अध्ययन किया फिर जो निचोड़ उनको मिला उससे अपना पृथक साहित्य लिखा जिन्हें पढ़कर हम न केवल उस विषय को समझ सकते बल्कि उसमें महारत भी पा सकते कि उनके द्वारा लिखित किताबों में आत्मानुभूति की स्याही से उमर के कोरे पन्नों पर कर्म के सिद्धांत को उकेरा गया हैं जिसका सुनियोजित तरीके से पालन कर हम किसी भी असाध्य लक्ष्य का संधान कर सकते हैं ।

जब भी कोई विचार या बात बड़े अनुभव और गहन सोच के बाद निकलती तो उसमें दर्शन के साथ-साथ दूरदर्शिता का भी समावेश होता जिसके कारण वो कालखंड परिवर्तित होने के बाद भी प्रासंगिक बनी रहती यही तथ्य 'विवेकानंद ज्ञान ज्योति' में भी शामिल हैं तभी तो इतने समय बाद भी उनके माध्यम से आज की समस्यायों का हल निकालने का प्रयास किया जाता और यदि उनका अक्षरशः पालन किया जाये तो देश की युवाशक्ति फिर से अपने देश का नाम सारे विश्व में गुंजायमान कर सकती क्योंकि जब 'स्वामी विवेकानंद' अकेले अपने दम पर विदेश जाकर अपनी प्रतिभा एवं ज्ञान की ताकत से अनगिनत लोगों के सामने अपने देश व उसके धर्म का परचम लहरा सकते तो फिर अब तो युवाओं के पास सभी सुविधायें हैं तो वो क्यों नहीं ऐसा कोई काम कर सकते कि एक दिन 'भारतमाता' को अपने सपूतों पर गर्व हो कि उन्होंने अपने जोश, अपनी शक्ति, अपनी बुद्धिमता को व्यर्थ नहीं गंवाया बल्कि सही राह पर चलकर सही प्रेरणा का अनुगमन कर उसका सतकर्म में सदुपयोग किया तो आज का युवा वर्ग जो ये समझ रहा कि देश की समस्यायों को सुलझाने का दायित्व तो सरकार का हैं अतः उसका अपने वतन के प्रति कोई फ़र्ज़ नहीं बनता तो बहुत बड़ी गलती कर रहा कि चंद शातिर लोगों के हाथ में देश की बागडोर सौंप वो अपने जीवन का स्वर्णिम काल तो फ़िज़ूल बर्बाद कर ही रहा साथ अपने भविष्य की नकेल भी उनके हाथों में सौंप रहा ऐसे मे यदि कोई समस्या आये तो फिर सत्तासीन लोगों से शिकवा या शिकायत करने की बजाय स्वयं ही उसका हल खोजे न कि सरकार के सर ठीकरा फोड़ निश्चिंत होकर हाथ पर हाथ धर बैठे रहे ।

'विवेकानंद ज्ञान ज्योति श्रृंखला' के माध्यम से हमारा यही प्रयास हैं कि हम 'स्वामी विवेकानंदजी' के श्रीमुख एवं पावन कलम से निकले उन बेशकीमती ज्ञान रत्नों को आप सबका तक पहुंचाये जिससे कि यदि किसी एक के भी मनोमस्तिष्क में कोई भी विचार या सूत्र या मंत्र इस तरह समा जाये कि वो एकाएक ही बाहर व भीतर से पूर्णरूपेण परिवर्तित हो जाये तो यही इस लेखन की सार्थकता होगी और पूर्ण विश्वास हैं इन शब्दों की तरंगें सभी पढ़ने वालों को छुवेगी जिनसे युवा क्रांति का विस्फोट होगा जो अपनी नई सोच, अपने नये उत्साह से विश्वपटल पर अपने क्रांतिकारी कर्मों से फिर एक बार नई इबारत लिखेंगे जो इस मुल्क की सूरत बदल देगा जहां वापस हम अपनी वास्तविक पहचान के साथ खड़े होंगे तब हम किसी और की नहीं बल्कि दूसरे लोग हमारी नकल करेंगे… :) :) :) !!!
__________________________________________________
०६ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
●--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: