शनिवार, 23 जनवरी 2016

सुर-३८८ : "नेताजी सुभाषचंद्र बोस... करने आये हिंद का जयघोष...!!!"

दोस्तों...

___//\\___   

कृतध्न नहीं
कृतज्ञ बने हम सब
हमें स्वतंत्रता का उपहार
देने वालों को न
कभी भी भूले हम
जिन्होंने हमसे ज्यादा तो नहीं
थोड़ा-सा खून माँगा था
बदले में भरपूर आज़ादी का
जो वादा किया था
उसे अपनी जान देकर निभाया
और हम ‘जय हिंद’ बोल
कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते
‘सुभाषचन्द्र बोस’ के बलिदान को
एक दिन स्मरण कर
खुद को बड़ा देशभक्त कहते
२३ जनवरी केवल एक तारीख़ नहीं
हमारे लिये गौरव दिवस हैं
आओ इसको जन-जन के जेहन में
इस तरह से बसाये कि
लोग सदियों तक उनका गुणगान गाये    
-----------------------------------------------●●●

हम सब बड़े सौभाग्यशाली हैं जिन्होंने इस भारत भूमि में जनम लिया जहाँ के कण-कण में उन देशप्रेमियों का रक्त समाया हैं जिन्होंने अपनी जन्मभूमि को ‘मातृभूमि’ का दर्जा दिया और अपने देश को भी ‘भारतमाता’ मानकर उसका पूजन किया तो जब उसी माँ को फिरंगियों ने गुलामी की जंजीरों में जकड़ लिया तो फिर उसे स्वतंत्र कराने की खातिर अपनी जान तक की परवाह नहीं की ऐसे ही महान सेनानी बहादुर वतनपरस्त थे ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस’ जिन्होंने आज ही के दिन जनम लेकर इस धरा को गौरवान्वित किया जिसके कारण हम सबको आज का ये दिन देखना नसीब हुआ जहाँ हम केवल उन दिनों की दास्ताँ सुनते जबकि हम सबको ये बेफ़िक्र की जिंदगी देने के लिये फिक्रमंदों ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया बिना ये सोचे कि एक दिन हम इसका मोल न लगा पायेंगे या आने वाली पीढ़ी इतनी कृतध्न होगी कि उनके बलिदान को विस्मृत कर अपने आप में खो जायेगी जिसको परहित धर्म का ज्ञान ही नहीं होगा वो तो सिर्फ अपने लिये जीना जानेगी देश के लिये खुद को कुर्बान करने का तो पूछो ही नहीं बल्कि अपने स्वार्थ की खातिर दूसरों की बलि देने में न हिचकेगी उनके सामने तो केवल एक ही लक्ष्य था कि जिस तरह भी हो वो अपने देश को आज़ादी का तोहफ़ा दे सके फिर भले ही इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर ही क्यों न चुकानी पड़े वो उन्हें सस्ती ही पड़ेगी कि जिस देश में जनम लिया जहाँ कि मिटटी में पलकर बड़े हुये जिसकी हवाओं में सांस ली उसका ऋण अदा करने साँसों की अदायगी कोई बड़ी बात नहीं इस जज्बे के साथ उस समय की कौम ने अपने आपको सर उठाकर शहादत की कसौटी पर खरा साबित किया जहाँ हर उम्र का क्रांतिकारी ‘वंदे मातरम’ बोल फांसी के फंदे पर झूलने से भी पीछे नहीं हटा फिर भला उनकी कुर्बानी किस तरह से रंग न लाती तो वो तिरंगे के तीन रंगों में यूँ समा गयी कि जब-जब भी हवाओं में परचम लहराता उन सभी शहीदों का नाम फिजाओं में बिखर जाता जो अदृश्य रूप में हमारे साथ सदा उपस्थित रहते और हमें आशीष देते कि यदि वक्त पड़े तो हम उनसे प्रेरणा ले अपने आप की बजाय अपने देश को तरजीह दे जिस तरह उन्होंने उस मुश्किल समय में किया

हर एक शहीद की कहानी हमें यही तो बताती कि ऐसे नहीं था कि उन्हें अपने आप से या अपनी जान से प्यार नहीं था लेकिन जब बात देश की आई तो फिर उन्होंने उसे ही प्रथम स्थान दिया क्योंकि ‘स्वदेश’ तो हर हाल में अव्वल होता और हम कभी ये न भूले कि हम देश से हैं... देश हमसे नहीं तो जिसने भी इसे अपना माना उसका सदा मान रखा... :) :) :) !!!    
__________________________________________________
२३ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
●--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: