बुधवार, 20 जनवरी 2016

सुर-३८५ : "आलेख : क्यों दिल को बहकने से दिल भी न रोक पाये?”

दोस्तों...

___//\\___   

‘जिंदगी’ चैनल जो अब तक सिर्फ पाकिस्तानी / विदेशी सीरियल्स दिखाता था अब वापस भारतीय कहानियों की तरफ़ लौट रहा हैं जिसके अंतर्गत १४ दिसंबर २०१५ से इस पर एक नया धारावाहिक शुरू हुआ ‘आधे अधूरे’ जिसे पंजाब की पृष्ठभूमि पर तैयार किया गया हैं और इसमें ‘कपूरथला’ में रहने वाले एक सीधे-साधे पारंपरिक परिवार को आधार बनाकर कहानी का ताना-बाना बुना गया हैं जिसमें केंद्रीय पात्र ‘जस्सी’ नामक नायिका का हैं जिसे कि इस घर की धूरी की तरह दिखाया जा रहा हैं जिसके ससुराल में उसके पति ‘नरेंद्र’ (नरिंदर’) के अलावा उसका एक छोटा देवर ‘वीरेंद्र’ (‘वीरेंदर’) उसकी सास भी हैं इस धारावाहिक की ‘टैग लाइन’ हैं “क्यों दिल को बहकने से दिल भी न रोक पाये” जो स्वतः ही इस ड्रामा की थीम को स्पष्ट करती हैं और इस धारावाहिक के प्रारंभ होने पर दिखाये गये प्रोमो से भी ये ज़ाहिर हो गया था कि इसमें देवर-भाभी के मध्य संबंधों को कहानी के मुख्य पात्र के रूप में लिया गया हैं लेकिन इसका स्तर किस तरह का होगा ये समझ नहीं आ रहा था फिर भी जिस तरह से इसका प्रचार-प्रसार किया जा रहा था तो ये तो तय था कि इनके बीच आम नोंक-झोंक वाले या फिर गरिमामय रिश्ते की बजाय एक तरह के नाज़ुक अहसास का तड़का लगाया जायेगा

लेकिन जब ये प्रसारित हुआ तो इसने अब तक प्रचलित सभी मापदंडों को तोड़ दिया यहाँ तक कि सिर्फ ‘देवर-भाभी’ ही नहीं ‘पति-पत्नी’ के रिश्ते पर भी बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया जब बहु बनी ‘जस्सी’ को जहाँ एक तरफ तो बड़ी आदर्श संस्कारवान और अपनी सास की चहेती पूरे घर का ध्यान रखने वाली जिम्मेदार बड़ी बहु के रूप में दिखाया गया जो अपने पति के परिवार की उन्नति के खातिर परदेस जाकर नौकरी करने के निर्णय का सम्मान करते हुये शादी के केवल छेः महीने बाद ही न चाहते हुये भी उसे विदेश जाने की अनुमति देती हैं इस वादे के साथ कि वो उसकी अनुपस्थिति में घर व सभी लोगों का ध्यान रखेगी लेकिन पति के जाने के बाद उसे तन्हाई व अकेलेपन का इतनी शिद्दत से अहसास होता हैं कि वो नवब्याहता अपने सभी कर्तव्यों का निर्वहन करते हुये संपूर्ण घर का नियंत्रण संभालती हैं पर, अपने तन-मन पर नियंत्रण नहीं रख पाती और परिस्थितियों का हवाला देते हुये अपने ‘देवर’ के साथ हर मर्यादा को लांघ अनैतिक रिश्ता कायम कर लेती हैं

फिर तो दिन भर घर में चकरी की तरह घूमते हुये हर किसी का खूब ध्यान रखना सारे काम करते हुये सबके बीच संतुलन बनाये रखती हैं और रात होते ही सास के सोने के बाद अपने देवर के कमरे में रातें बिताना उसकी दिनचर्या का इस तरह से अंग बन जाता कि उसे कुछ भी गलत नहीं लगता बल्कि इस तरह के अमर्यादित व्यवहार के कारण जब वो गलती से गर्भवती हो जाती हैं तब भी उसके चेहरे पर शिकन की एक लकीर नहीं उभरती जबकि देवर ये सुनकर परेशान  हो जाता हैं तो पर, वो तो बड़े आराम से अपने देवर के साथ जाकर गर्भपात करवा आती हैं जिसके पीछे इस धारावाहिक में बड़ा ही लचर सा तर्क दिया गया कि पति के न होने पर आखिर वो किस तरह से अपने आपको संभाले रहे, कब तक अपनी इच्छाओं का गला घोंटती रहे तो बेहतर कि अपने साथ-साथ पति के छोटे भाई को भी बरगला पतित बना दे और अपनी अधूरी ख्वाहिशों को अपने पति व सास को धोखा देते हुये इस तरह से पूरा कर ले जबकि उसके पति में किसी तरह की कोई कमी या बुराई नहीं दिखाई गयी इसके अतिरिक्त उसे अपने पति से भी उतना ही प्यार हैं और उसके आने पर वो उसके प्रति भी पूरा समर्पण दिखाती हैं मतलब कि ये सीरियल बताना चाहता कि इस तरह से संतुलन साध लेने से पाप करने का लायसेंस मिल जाता हैं

उसके इस कदम ने न सिर्फ देवर-भाभी के खुबसूरत रिश्ते को नापाक किया बल्कि पति-पत्नी के पवित्र संबंध को भी ठेस पहुंचाई हैं साथ ही बाहर जाकर नौकरी करने वाले पतियों के सामने ये प्रश्न खड़ा किया कि यदि वो अपनी पत्नी से परदेस जाकर ‘काम’ करने की अनुमति ले तो बदले में उसको अपनी ‘काम’ भावना को किसी भी तरह पूरा करने की अनुमति भी दे क्योंकि वो तन्हां न रह पायेगी माना कि दुनिया के किसी कोने में इस तरह के किस्से हकीकत का रूप ले चुके हैं लेकिन एक पारिवारिक धारावाहिक अंतर्राष्ट्रीय चेनल पर प्राइम-टाइम में वो भी एक प्रतिष्ठित खानदान की बहु का ये रूप स्वीकार नहीं जो सभ्य समाज को भी इस तरह का गलत संदेश दे रहा हो कि दिल की सुनो दुनिया को गोली मारो बस, अपनी मनमानी करो फिर रिश्ते कलंकित हो तो होने दो जब नायिकायें ही इस तरह की हरकतें करेंगी तो उसका अनुशरण करने वाली महिलाओं को तो शह मिलेगी इसलिये इस तरह की कहानियों को प्रसारित करने से पूर्व उसके मूल भाव को देखना जरूरी हैं जिससे कि समाज में कोई गंदगी न फैले ये क्या कि दिल को तरजीह देकर नायिका को एकाकी दुखी साथ ही जिम्मेदार बताकर उसके गलत कामों को प्रोत्साहित किया जाये फिर तो हर एक औरत यही सोचेगी कि यदि हम अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह निभा रहे तो हमें ये हक कि हम जो चाहे सो कर सकते

इसे देखने पर ये सवाल भी जेहन में उभरता कि अपने परिवार के प्रति अपने सभी फ़र्ज़ पूरे करना क्या हमें ये हक देता कि हम अपनी मनमानी कर सकते, जो विश्वास हमने अपने समर्पण अपनी सेवा से हासिल किया उसकी जो चाहे वो कीमत वसूल कर सकते यहां तक कि अनैतिक संबंध बनाने की स्वतन्त्रता भी प्राप्त कर सकते याने कि जो कुछ इतनी बरसों की मेहनत से हासिल किया उसे पल दो पल की खुशियों की खातिर दांव पर लगा अपने त्याग का मनचाहा दाम हासिल कर सकते हैं लेकिन ये भूल जाते कि हमने अपने परिजनों के लिए जो कुछ भी निःस्वार्थ मन से किया आखिरकार कहीं उसकी भारपाई कर ली तो क्या उसके बाद भी हम उतने ही दम से अपने उन कर्तव्यों का गुणगान कर पायेंगे हमारी आत्मा हमें नहीं कचोटेगी या उसका गला घोंटकर ही तो घर के साथ-साथ मर्यादा की दहलीज़ लांघ पाये थे ।

इसके अतिरिक्त इस धारवाहिक ने एक अन्य बेहद संवेदनशील मुद्दे को भी हवा दी हैं जिसमें एक लड़की के जीवन के साथ खेलने को उसी तरह से दिखाया जैसा कि अधिकांशतः इस तरह के अनैतिक रिश्तों में होता कि वो किसी के सामने न आने पाये तो उसको छिपाने के लिये किसी अन्य से प्रेमी की शादी करा दी जाये इस तर्क के साथ कि वो उनके नाजायज रिश्ते का पर्दा बनेगी मतलब कि एक लड़की जो इस बात से अनजान हैं, अपनी शादी के ख्यालों में खोई हैं उसे अपने मतलब के लिये ब्याह के नाम पर घर ले आया जाये ताकि उसकी आड़ में ये गंदा खेल बदस्तूर चलता रहे वाकई ऐसा ही होता पर, कोई ये नहीं सोचता कि वो जो विवाह कर के आ रही उसकी अपनी भी तो कोई ख्वाहिशें, अरमान या सपनें होंगे और जब वो ये जानेगी तो उसके दिल पर क्या गुजरेगी पर, जिन्हें अपनी वासनाओं से फुर्सत नहीं वो भला किसी की भावनाओं की क्या कद्र या फ़िक्र करेंगे तभी तो ‘जस्सी’ का किरदार जिस तरह की बातें करता या अपने पाप को अनवरत जारी रखने जो तर्क देता वो हर एपिसोड के साथ कुछ प्रश्न छोड़ जाते उस पर ‘जस्सी’ ने तो हद ही कर दी अपनी ही छोटी बहन को अपनी देवरानी बनाने का फैसला किया और जब उनकी पहली रात का ख्याल आया तो बीमारी के नाम पर उसे सारी रात अपने पास बिठा अपनी विकृत मानसिकता का एक और पहलू सामने रखा                                          

इस तरह की फिल्मों / सीरियल के माध्यम से औरतों को ‘विमेन लिबरेशन’ के नाम पर इस तरह के संबंध बनाने के लिये उकसाना या नायिका का इस तरह से उसकी पैरवी करते दिखाना एक तरह से पुरुषों के वर्चस्व को ही फिर से स्थापित करना हैं या आदमी अपनी इच्छा पूरी करने अब उसे ही हथियार बना रहा जहाँ वो उसे आधुनिक बता अपने से अधिक साहसी बताता तो वो खुद ही आगे बढ़कर उसके बोले बिना उसकी ख्वाहिश पूरी कर देती याने कि औरत फिर आदमी के द्वारा मुर्ख बनाई जा रही हैं आजकल पुरुष निर्देशक इस तरह के धारावाहिक/फिल्म बनाकर उसे बोल्ड होने का अहसास दिलाता जिससे काम तो उसी का सधता और नारी समझती कि उसने उसे मुर्ख बना दिया जबकि हकीकत केवल वही जानता कि किस तरह से उसने उसको चने के झाड़ पर चढ़ाकर अपना उल्लू सीधा किया इस तरह सांप भी मर गया लाठी भी न टूटी मतलब आदमी ने अपनी हवस भी पूरी कर ली और उसे जबरदस्ती भी न करनी पड़ी औरतों को इस बड़ी गहरी साज़िश को समझना होगा कि फ्रीडम का तात्पर्य केवल शारीरिक संबंधो में अगुवाई करना नहीं हैं बल्कि खुद को दिलों-दिमाग से इतना अधिक मजबूत बनाना हैं कि भावनाओं में बहे बिना निर्णय ले सके नहीं तो घर हो या बाहर उसका स्थान तो बिस्तर पर ही सीमति रहेगा वो भी उसकी मर्जी से क्योंकि उसे तो पता ही नहीं न कि आदमी उसे सर पर चढ़ाकर किस तरह से अपना काम निकल रहा पहले दबाता था अब जब लगा वो मुमकिन नहीं तो खुद दबकर उसे श्रेष्ठ बता वही हासिल कर रहा जो चाह रहा था और वो पहले भी उसकी वासना पूर्ति का साधन थी आज भी हैं   

हो सकता हैं कि आगे इस धारावाहिक में कोई नया मोड़ देकर इस अनैतिक रिश्ते को लगाम लगा दी जाये और ‘जस्सी’ को पश्चाताप करते दिखाया जाये लेकिन जो हुआ वो तो मिट न जायेगा जो सवाल उठे वो तो वैसे ही अनुत्तरित रह जायेंगे और वो तो अपनी सफाई में यही कहेंगे ‘अनैतिक या नैतिक तर्क से ही बनता हैं, किसी की नज़र में जो नैतिक हो दूसरे को वही अनैतिक भी नज़र आता हैं’ और अपने स्त्री पात्र को दिल के बहकने के नाम पर ऐसे ही न सिर्फ गिराते रहेगे बल्कि अकेली सहानुभूति की पात्र बता उसके नाजायज़ कदमों को जायज ठहराते रहेंगे जिसमें हर हाल में नुकसान सिर्फ स्त्री का ही हैं और उस पर विडंबना ये कि अब उसके ही द्वारा पुरुषों की अपनी मनमर्जी पूरी की जायेगी और उसे खबर भी न होगी... इस भौतिकवादी युग में देह को सर्वोपरि बताने की मंशा यही हैं तभी तो चंद सेकेंड्स के विज्ञापनों में भी औरत के शरीर का ही इस्तेमाल किया जाता जिसमें उसे मर्दों के प्रति आकर्षित होते, आगे बढ़कर गले लगाते या उसके साथ समय बिताने को आतुर दिखाया जाता जिस पर यदि आने वाले समय में अंकुश न लगाया गया तो जल्द ही उसके भीतर इस तरह की मानसिकता का प्रवेश हो जायेगा फिर वो ‘जस्सी’ की तरह अपने देवर या किसी भी रिश्तेदार से न तो संबंध बनाने में चूकेगी न ही गलत तरीके से अपनी दैहिक भूख मिटाने किसी तरह का अपराधबोध महसूस करेगी क्योंकि उसके पास अपनी सड़ी-गली दलीलों, अपने बेशर्मी भरे कुतर्कों के तीरों से भरा तरकश जो होगा जिससे वो समाज, परिवार, सभ्यता, संस्कृति, संस्कार, परिवार, रिश्तों को बुरी तरह से बेंध डालेगी... इससे पहले कि ये दिन आये आओ अभी से चेत जाये... रिश्तों की गरिमा को शर्मिंदा होने से बचाये... :) :) :) !!!  
__________________________________________________
२० जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
●--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: