बुधवार, 27 जनवरी 2016

सुर-३९२ : "भारत भूषण सा कलाकार... आता नहीं बार-बार...!!!"

दोस्तों...

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सादगी की मूर्ति
सहज अभिनय संग
दिल में उतरती
देख उसके विविध रूप
हर आँख भरती
‘भारत भूषण’ की
नैसर्गिक कला प्रतिभा
झरने सी कल-कल बहती
हर मन को छूती
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हिंदी सिने युग का स्वर्णिम काल जबकि रजत परदे पर ‘दिलीप-देव-राज’ की तिकड़ी ने दर्शकों को अपने बेजोड़ अभिनय और अदाओं से सम्मोहित कर रखा था ऐसे में ‘भारत भूषण’ जैसे सहज-सरल सादगी से भरे अभिनेता का फिल्मों में आना और अपना स्थान बनाना एक अजूबा ही लगता कि उस समय उन्होंने न सिर्फ बड़े-बड़े निर्देशकों को अपनी अद्भुत अदाकारी से प्रभावित किया बल्कि अपने खाते में एक के बाद एक शानदार भूमिकाओं को भी जोड़ते चले गये जिसके बलबूते पर उनको उस तरह के धार्मिक या ऐतिहासिक किरदारों के लिये एकदम मुफीद समझा जाता क्योंकि वे जब भी किसी जग-प्रसिद्ध हस्ती के जीवन चरित्र को सिनेमाई कथा में तब्दील कर उसमें अपने अभिनय के रंग भरते तो वो एकाएक ही यूँ फ़िल्मी केनवास पर सजीव हो उठता कि सहज ही विश्वास नहीं होता कि जिसे हम देख रहे वो कोई नाटकीय रूपांतरण हैं जिसके लिये एक समर्पित कलाकार ने अपने आपको उस किरदार के खोल में इस तरह से उतार दिया हैं कि वो इनके रूप में परदे पर उतर आया हैं शायद, यही वजह हैं कि उन्होंने लगातार इस तरह के महान व्यक्तित्वों की भूमिका निभाई जिसने उनको सदा-सदा के लिये अमर बना दिया और उस दौर के उनसे पहले ही इस दुनिया में अपने काम से सभी स्थापित अभिनेताओं के बीच अपना एक अलग मुकाम बनाया जो अब तक वैसा का वैसा ही बरकरार हैं

‘मन तडपत हरि दर्शन को आज...’

सिनेमा के परदे पर जब ‘भारत भूषण’ आत्मलीन होकर ये भजन गाते दिखाई देते हैं तो नहीं लगता कि कोई पार्श्व गायक उनको आवाज़ दे रहा हैं बल्कि यही प्रतीत होता कि वे स्वयं ही गा रहे हैं और उनकी भाव-भंगिमा से दर्शक भी इस तरह सम्मोहित होते कि उनके अंतर से भी यही स्वर गूंजने लगते और जब उन्होंने गाया ‘ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले...’ तो पीछे से आती आवाज़ ही नहीं सामने उसके बोलों पर लब हिलाता नजर आता वो फ़नकार भी अपनी पीड़ा से हर किसी की आँख को नम कर देता कि उसने चेहरे पर उभरते दर्द के चिन्हों में अभिनय नहीं सहज अंतर से निकलती कोई वेदना झलकती दिखाई देती तभी तो जब ‘बैजू बावरा’ फिल्म आई तो उसके गीत-संगीत ही नहीं कहानी और कलाकारों ने भी कमाल कर दिया नये प्रतिमान गढ़े जिसने इस तरह की कहानियों एवं फिल्मों के लिये ‘भारत भूषण’ की किस्मत के द्वार खोल दिये फिर तो एक के बाद एक इस तरह के चरित्र उनकी झोली में अपने आप ही आते चले गये तो इसके बाद आई ‘चैतन्य महाप्रभु’ ने उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेता’ का ख़िताब भी दिलवा दिया जिससे अब बड़े-बड़े निर्देशकों का ध्यान भी उनकी तरफ गया तो उन्होंने ने भी ‘भारत भूषण’ को अपनी फिल्मों के लिये अनुबंधित कर लिया जिसकी वजह से वो अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हो सके ।    

“ये इश्क... इश्क़ हैं....”

‘बरसात की रात’ फिल्म की कव्वाली कोई भूल नहीं सकता इसी फिल्म में उन पर फिल्माया ‘जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात...’ गीत का भी अपना ही एक अलग अंदाज़ हैं जो आज भी उसी तरह से देखने वालों को अपनी गिरफ़्त में लेता हैं उन्होंने उस समय की सबसे खुबसूरत कहलाई जाने वाली अभिनेत्री ‘मधुबाला’ के साथ इस फिल्म के अतिरिक्त ‘गेटवे ऑफ़ इंडिया’ एवं ‘फागुन’ में भी काम किया और ये सभी फ़िल्में सुपर-डुपर हिट रही इसके अलावा उन्होंने अपने समय की लगभग सभी शीर्ष अभिनेत्रियों के साथ काम किया ‘मीना कुमारी’ ने तो उनके साथ ही अपना सफ़र शुरू किया था ‘तू गंगा की मौज मैं जमुना की धारा...’ बनकर तो ‘गीता बाली’ के साथ भी उनकी जोड़ी बनी तो ‘माला सिन्हा’ के साथ भी उनको पसंद किया गया  और ‘सुरैया’ हो या ‘निम्मी’ सबने ही उनके साथ काम किया भले ही उन्होंने कितनी भी नायिकाओं के साथ परदे पर अपनी जोड़ी जमाई हो लेकिन कभी भी किसी के संग उनका कोई स्कैंडल नहीं बना जितने शिष्ट सादगीपूर्ण वे परदे पर दीखते उतने ही असल जीवन में भी थे जिसके कारण हर कोई उनके साथ काम करना चाहता था तभी तो अपने फ़िल्मी जीवन में उन्होंने लगभग १४३ फिल्मों में न सिर्फ अभिनय बल्कि विविध भूमिकाओं के झंडे गाड़े जिन्हें अब तक कोई उखाड़ नहीं पाया हैं न ही कभी उखाड़ सकेगा कि ये तो महज़ अभिनय नहीं बल्कि अभिनीत किरदारों की जीती-जागती मिसाल हैं

इतने तरह के रोल करने के बावजूद भी उनका अंत समय बेहद कष्टमय रहा कि उन्होंने जो फ़िल्में बनाई वो सफल न रही और उन्हें अभाव के दिन देखने पड़े उस समय के कलाकार आज के अभिनेता-अभिनत्रियों की तरह व्यवसायिक बुद्धि वाले नहीं थे अतः अक्सर अधिकांशतः को अपने अंतकाल में दुर्दिनों का सामना करना पपड़ा तो ‘भारत भूषण’ ने भी चरित्र भूमिकाओं व टी.वी’ सीरियल के माध्यम से कुछ दिन गुज़ारे पर, संकट काम न हुआ तो इस तरह की विपरीत परिस्थितिओं का सामना करते हुये वो आज ही के दिन २७ जनवरी १९९२ को इस दुनिया को अलविदा कर गये... आज उनकी पुण्यतिथि पर उनका स्मरण करते हुये ये शब्द सुमन समर्पित करते हैं... :) :) :) !!!        
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२७ जनवरी २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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