शनिवार, 7 जनवरी 2017

पोस्ट-२०१७-०७ : विवेकानंद अमृत वाणी : क़िस्त-०१

साथियों... नमस्कार...

१२ जनवरी मेरे लिए हमेशा से बेहद महत्वपूर्ण रही हैं क्योंकि इस दिन हम सबके प्रेरणास्त्रोत और संपूर्ण विश्व में भारत का परचम लहराकर उसे विश्वगुरु का दर्जा दिलाने वाले चिरयुवा ‘नरेंद्र नाथ दत्त’ का जन्म हुआ जिसने अपने कर्म से अपनी एक अलग पहचान और अलग नाम बनाया तभी तो आज भी हम सब उसे ‘स्वामी विवेकानंद’ नाम से जानते हैं और उसके जन्मदिवस को ‘युवा दिवस’ के रूप में मानते हैं...

ऐसा इसलिये क्योंकि उन्होंने बहुत छोटी आयु में ही अपने निर्धारित लक्ष्य का संधान कर सबके सामने एक ऐसी मिसाल रखी जिसे भूलाया जाना मुमकिन नहीं और न ही उस तक कोई पहुंच ही पाया शायद, इसकी वजह ये हैं कि उन्हें एक ऐसे गुरु का आशीष व सानिध्य मिला जिसने अपने तपस्वी जीवन से अर्जित समस्त शक्तियाँ अपने इस शिष्य को दे दी तो उसने भी फिर अपने साथ-साथ अपने उस मार्गदर्शक का नाम भी सदा-सदा के लिये अमर कर दिया इस तरह ये दोनों गुरु-शिष्य के ऐसे उदाहरण बने जिन्होंने निःस्वार्थ देशहित व जनहित में काम करते हुये अपने जीवन का अंत कर दिया और तभी तो यदि किसी एक का भी स्मरण करे तो दूसरा स्वतः ही मस्तिष्क में उभर आता हैं...

‘स्वामी विवेकानंद’ ने अपने ज्वलंत विचारो की अग्नि से संपूर्ण जगत में ऐसी रौशनी फैलाई कि उनके दर्शन और ज्ञान को पूरी दुनिया ने स्वीकार किया जिसे उन्होंने अपने तक सीमित न रखकर ग्रंथो में संग्रहित कर आने वाली पीढ़ी के लिये रख छोड़ा ताकि वो भी उनके इन शब्दों में समाई ऊर्जा को अपने भीतर समाहित कर अपनी जन्मभूमि के प्रति अपने फर्ज को निभा सके और यही वजह कि हमारी भी कोशिश रहती कि हर साल उनके जन्मदिवस के पूर्व हम उनके अनमोल वचनों को किस्तों के रूप में आप सब तक पहुंचा सके यदि इससे किसी एक की भी कुंडलिनी जागृत हो गयी तो ये लेखन सार्थक हो जायेगा तो आज से लेकर १२ जनवरी तक ‘विवेकानंद अमृत वाणी’ श्रृंखला के अंतर्गत आपको पढ़ने मिलेगी उनके क्रांतिकारी विचारों की वही आग जो अनवरत जल रही हैं... कि किसी दिन फिर किसी के अंतर्मन को प्रकाशित कर सके और वो विदेशी भूमि में जाकर उन्ही की तरह अपने वतन, अपनी संस्कृति की खोई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित कर सके जो पूरी तरह खोई भले न हो पर, पाश्चात्य की चमकीली रौशनी में धुंधली अवश्य हो गयी हैं लेकिन जब हमारी चौंधियाई आँखों के सामने से ये तेज लाइट हट जायेगी तो हम वास्तविक स्वरुप को पूर्ववत देख सकेंगे... यही तो ‘विवेकानंद साहित्य’ के प्रचार-प्रसार की मूल भावना हैं... जिसे ध्यान में रखकर हम हर बरस इस तरह की एक नूतन श्रृंखला लिखते... :) :) :) !!!                      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०७ जनवरी २०१७ 

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