गुरुवार, 19 जनवरी 2017

सु-२०१७-१९ : ख़्वाब हुआ चोरी... पर, गुनाहगार न कोई...!!!

साथियों... नमस्कार...


कोई कितना भी कहे कि हकीकत में जियो लेकिन फिर भी जीवन में ‘सपनों’ का भी महत्व हैं क्योंकि ये वो शय हैं जहाँ हम वो भी पा सकते हैं जो सच में नामुमकिन हो लेकिन कभी-कभी यूँ भी होता कि कोई एक स्वप्न जिसे देखते तो हम हैं लेकिन वो साकार किसी दुसरे का होता हैं और उसे जीता कोई तीसरा हैं जबकि वो जिसे हम मन ही मन देखकर जी रहे थे उस ‘ख़्वाब’ की आँखों में कोई चौथा ही ख़्वाब पलता हैं... पढ़ने में ये भले ही थोड़ा गडबडझाला या घालमेल सा किस्सा लगे लेकिन ये जलेबी की तरह उतना जटिल मामला नहीं बल्कि “तू प्यार हैं किसी और का, तुझे चाहता कोई और हैं, तू पसंद हैं किसी और की, तुझे मांगता कोई और हैं...” की तरह का एक रूमानी ख्याल हैं जो अमूमन हमारी जिंदगी में न सही कहीं न कहीं देखने मिल जाता हैं...

इस दुनिया में किसी की कोई कीमती या मामूली-सी भी चीज़ खो जाये तो वो उसकी शिकायत दर्ज कर सकता इस तरह के सरकारी थाने या अदालतें यहाँ मौज़ूद लेकिन इस अनमोल ‘ख़्वाब’ की चोरी की प्राथमिकी दर्ज करना तो दूर बल्कि ये बात भी जुबान पर नहीं लाई जा सकती जबकि बहुत-से लोग तो ऐसे भी होते जो इसके बगैर जी भी नहीं पाते याने कि उनकी जान पर बन जाती जब उन्हें ये खबर हो कि जिस आस पर उनकी साँस चल रही थी वो अब किसी भी तरह पूरी नहीं हो सकती तो उसी पल उनकी जीवन यात्रा अपनी मंजिल पर, पहुँचने से पहले ही थम जाती गोया कि वो साँस नहीं ख़्वाब से जीवित थे फिर भी इस तरह की घटनाओं का कुछ नहीं किया जा सकता न कोई सावधानी ही बरती जा सकती न इसे घटने से ही रोका जा सकता क्योंकि जब तक इंसान सपने न देखेगा वो अपने मन की इच्छाओ को किस तरह जानेगा और फिर उन्हें पूरा करने प्रयत्न करेगा और यही तो जो कठिनाईयों को सहन करने की ऊर्जा देते...
वैसे भी तकनीक कितनी भी विकसित हो जाये लेकिन ये तो कोई भी नहीं जान सकता कि जो भी सपना उसने बुना वो सच होगा या अधूरा ही रह जायेगा या फिर उसे अपनी आँखों के सामने से ही उसे किसी अन्य को उसे जीवंत करते देखना होगा... भले ही ये असहनीय हो पर, जब वश में कुछ भी न हो तो दिल पर पत्थर रखकर ही उसे सहे या मरे या नया बुने या फिर सपने देखना ही बंद कर दे... कि इसका कोई गुनाहगार नहीं होता ये सब तो ऊपरवाला ही निर्धारित करता कि ‘ख़्वाब’ किस आँख में सजे, किस हाथ में जा गिरे, किस की जिंदगी बन जाये... हम तो बस, उसमें कोई एक किरदार ही हो सकते जो हमेशा जरूरी नहीं कि वही हो जिसका ख्वाब कोई चुरा ले... कभी हम भी तो ‘चोर’ हो सकते... क्या नहीं... ;) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१९ जनवरी २०१७

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