साथियों... नमस्कार...
हमारे यहाँ के हर पर्व के पीछे यदि तलाश की जाये
तो वैज्ञानिक कारण निकलेंगे क्योंकि हमारे बुजुर्गो ने कोई भी परंपरा या कोई भी
उत्सव की यदि शुरुआत की तो वो बेवजह नहीं हैं बल्कि गहरे से उसके बारे में चिन्तन
किया जाये तो अहसास होता कि इस कारण से इसे मनाने की रवायत प्रारंभ की गयी कुछ ऐसी
ही आज के इस ‘लोहड़ी’ उत्सव के साथ भी हैं जी भले ही किसी प्रान्त विशेष से जुडा हो
लेकिन हैं तो इस देश का ही हिस्सा ही तो फिर हम उससे अलहदा किस तरह से रह सकते
क्योंकि कहीं न कहीं तो हम एक-दुसरे से जुड़े ही हैं तो हमारे रीति-रिवाज़ भी सबके
साँझा ही हैं और इस त्योहार के साथ तो कुछ यूँ हैं कि सब लोग इसे अलग-अलग नाम से
मनाते पर, इससे जुड़ी कुछ बातें या चीजें ऐसी हैं जो सभी में समान हैं चाहे फिर वो
आग जलाकर उसमें धान डालना हो या गुड़-तिल से बने मिष्ठान्न बनाना हो या फिर पतंग
उड़ाना हो या मस्ती में नाचना सबका मूल उद्देश्य खुशियाँ बांटना हैं...
हमारे यहाँ के सब तीज-त्यौहार के पीछे
आध्यात्मिक दर्शन के अलावा उसका पर्यावरण और मौसम से जुड़ा होना भी हैं इसलिये वे
अधिक तार्किक हो जाते हैं और इतने वर्षों के बाद भी बदस्तूर कायम हैं जबकि वे
रिवाज़ जो कि खोखले होते वे समय के साथ स्वयं मिट जाते लेकिन जिनका ठोस आधार हैं वो
और मजबूत होते जाते तो इस दिवस की सबको हार्दिक शुभकामनायें... लख-लख बधाइयाँ...
:) :) :) !!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१३ जनवरी २०१७
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