रविवार, 29 जनवरी 2017

सुर-२०१७-२९ : ख्वाहिश जो मरती नहीं... फूल बनकर वो खिलती...!!!

साथियों... नमस्कार...


जब हमें कोई पसंदीदा फूल या फसल चाहिये होती तो हम उसके बीज को बोते फिर उसे रोज नियम से पानी ही नहीं धूप-छाया के साथ-साथ खाद भी देते ताकि उससे वो पा सके जिसकी खातिर हमने उसे लगाया लेकिन ‘ख्वाहिश’ को हम इस तरह से रोपना और पालना-पोसना भूल जाते तभी तो हम इस दरम्यान सीखे हुए उस अनमोल सबक को भूल जाते जो कभी-कभी देखने में आता कि सारे बीज भले, एक साथ न पनपे लेकिन जरूरी नहीं कि जो बीज आज अंकुरित न हुआ वो आगे भी कभी न फलेगा-फूलेगा क्योंकि कुछ-कुछ बीज ऐसे होते जो अनुकूल मौसम आने पर ही फूटते बिलकुल उसी तरह से कुछ ‘ख्वाहिशें भी होती जो समय आने पर ही पूरी होती हैं इसलिये जरूरी कि हम उनके लिये उसी तरह से माकूल परिस्थितियों का इंतजार करें जब वे पल्लवित-पुष्पित होकर हमें मनचाहे पुष्प का उपहार दे...

नहीं तो तन्हाई में वही हमारा मजाक उड़ायेगी, हमें मुंह चिढ़ायेगी कि अपनी कमियों की वजह से हमने उसे खिलने का मौका नहीं दिया... नहीं तो एक दिन वो ही नहीं खिलती न जाने उसके साथ कितनी और उम्मीदों की कलियाँ भी मुस्कुराकर एक बगिया ही खिला देती... केवल हममें सब्र की कमी होने से वो भीतर ही कसमसा कर रह जाती तो अब याद रखना कि दबे बीज की तरह दबी हुई ख्वाहिशें भी पनपने की क्षमता रखती बस, धैर्य के साथ उस मौके का इंतजार करना पड़ता जबकि वो पूर्ण हो सके... तो एक अच्छे बागबान की तरह अब ये याद रखना...

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घडा ऋतू आये फल होय...

तो अब से निराश न होकर ऋतू का इंतजार करे... :) :) :) !!!          
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ जनवरी २०१

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