सोमवार, 9 जनवरी 2017

पोस्ट-२०१७-०९ : "विवेकानंद अमृत वाणी : क़िस्त-०३"

साथियों... नमस्कार...

‘नरेंद्र नाथ दत्त’ की जीवन गाथा का अध्ययन करे तो हम पाते हैं कि प्रारंभिक अवस्था में वो भी अन्य नौजवानों की भांति अपने ध्येय से अनजान और दिग्भ्रमित थे लेकिन जब उनके गुरु ‘रामकृष्ण परमहंस’ से उनका मिलना हुआ तो मानो चमत्कार हो गया और अपने विवेक पर पड़े पर्दे के कारण ज्ञान के जिस ख़जाने को वे देख नहीं पा रहे थे यूँ लगा जैसे उसका ताला एकाएक खुल गया अर्थात जिस कुंजी की उन्हें तलाश थी वो मिल गयी तभी तो उन्होंने स्वीकार किया कि ब्रम्हांड की समस्त शक्तियाँ हमारे भीतर निहित हैं लेकिन अपनी अज्ञानतावश हम उसे देख नहीं पाते बल्कि हम तो अपनी आँखों पर हाथ रख कहते हैं कि उफ्फ्फ, कितना अन्धकार हैं... अर्थात हम सबको विधाता ने अनंत ऊर्जा का भंडार दिया हैं ये तो हमारे उपर हैं कि हम इसका इस्तेमाल किस तरह करते हैं चाहे तो सारा जीवन सोते हुये ही गुजार दे और चाहे तो पल-पल का इस तरह से सार्थक उपयोग करे कि एक क्षण को विराट बना दे फिर भले अल्प काल ही जीवित रहे लेकिन इतने सारे काम कर जायेंगे कि सौ जनम लेकर भी उतने न कर पायेंगे...

कुछ ऐसा ही तो उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन दर्शन से हम सबको सिखाया कि जीवन छोटा-हो तो कोई गम नहीं यदि उसको सही मायनों में सार्थक कर्म करते हुये जिया जाये लेकिन कर्महीन हो तो कितना भी बड़ा हो वो निरर्थक ही कहा जायेगा इसका जीवंत उदाहरण बनकर वे हमें बहुत कुछ बता गये जिसे समझने के लिये एक जन्म भी कम हैं उसके बावजूद भी हम उतना जीवन तो बेवजह ही जीते जितनी उमर में जीकर सारे काम कर ज्ञान-दर्शन का बेशुमार साहित्य हमें देकर वो इस दुनिया से चले भी गये कभी इस तरह से सोचा हमने कि वो भी हमारी तरह एक साधारण मानव थे जिन्होंने २० साल की नाज़ुक आयु में सन्यास लेकर ३९ तक आते-आते तक अपने लक्ष्य का संधान कर लिया और जब उन्हें लगा कि अब उनके करने को कुछ शेष नहीं हैं तो उस जीवन को त्याग वापस उस परमलोक को चले गये और हम ४० तो क्या ५० के होकर भी अपने इस दुनिया में आने के उद्देश्य को नहीं जान पाते तो क्यों न अपने अंतर में गोता लगाकर उस सीपी को खोजे जिसके अंदर वो मोती छिपा हैं... जिसके प्रकाश में हम अपने जीवन के लक्ष्य को देख सकते हैं... :) :) :) !!!               
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०९ जनवरी २०१७

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