सोमवार, 23 जनवरी 2017

सुर-२०१७-२३ : “नेताजी तो बस, एक... ‘सुभाषचंद्र बोस’...!!!”

साथियों... नमस्कार...

आज इस देश के उस वीर सपूत की जयंती जिसने जन्म तो गुलाम भारत में लिया लेकिन सपना ‘आज़ादी’ पाने का देखा और सिर्फ देखा ही नहीं बल्कि उसे सच करने ‘आज़ाद हिंद सेना’ का निर्माण भी किया और इसके लिये उन्होंने पहले तो अपनी ‘सिविल सर्विस’ को त्यागा फिर देश की बिखरी जनता को एक करने व उनमें जोश भरने का काम शुरू किया आखिर गरम दल के समर्थक भी थे तो इस तरह से वो प्रयास करते कि जनता अपनी भारत माँ को स्वतंत्र कराने खुद आगे आये क्योंकि उनका मानना था कि एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की जरूरत इसलिये वो दोनों ही तरह का ज्ञान उनको देते थे...

किस तरह एक ऊर्जावान जोशीला व्यक्तित्व अपने आभामंडल व ओजपूर्ण भाषण से जनमानस को न केवल प्रभावित कर सकता बल्कि उनसे अपने मन का काम भी ले सकता ये उनके जीवन चरित से पता चलता कि किस तरह लोग उनको सुनने लालयित रहते एवं उनके कहने से वतन की खातिर अपने प्राण गंवाने भी तैयार रहते जो उनकी नेतृत्व करने की क्षमता को दर्शाता...

इसके अतिरिक्त भी उनमें अनेक ख़ासियत थी जिसकी वजह से उन्हें ‘नेताजी’ की उपाधि दी गयी जो उनके संपूर्ण व्यक्तित्व को इस शब्द में समेटने का एक प्रयास भर हैं लेकिन जब उनको पढ़े तप लगता भले आज ‘नेता’ शब्द के मायने बड़े सस्ते हो गये लेकिन जब उन्होंने बड़ी-बड़ी सभाओं में लाखों लोगों को संबोधित करते हुये कहा होगा कि- “अन्याय सहना और समझौता करना भी अपराध हैं” और “आज हमारे अंदर सिर्फ एक ही इच्छा होनी चाहिए मरने कि ताकि भारत जी सके” या “ये हमारा कर्तव्य कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपनी जान देकर चुकाये” या फिर “आज़ादी मिलती नहीं उसे छीनना पड़ता हैं” तो किस तरह न लोगों के मन-मस्तिष्क भी परिवर्तित हो गये होंगे...

उन्होंने सच ही कहा था कि, “व्यक्ति मर सकता हैं लेकिन उसके विचार नहीं, वो तो उसके मरने के बाद भी लोगों को प्रभावित करते रहेंगे” और इसे हम देख ही रहे कि उनके न होने पर भी उनकी बातें हमारे साथ हैं जो उनके होने का अहसास कराती और देश पर बलिदान होने की भावना का संचार हमारी रगों में भरती... आज जयंती पर शत-शत नमन... प्रणाम बारम्बार उस महँ आत्मा को... :) !!!      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२३ जनवरी २०१७

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