रविवार, 8 जनवरी 2017

पोस्ट-२०१७-०८ : विवेकानंद अमृत वाणी : क़िस्त-०२ !!!

साथियों... नमस्कार...


उठो, जागो और तब तक नहीं रुको
जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये...!!!

ये महज़ एक वाक्य नहीं बल्कि सफ़लता का मूलमंत्र हैं और केवल यही नहीं उन्होंने तो अनगिनत सद्वचनों से सोये हुये लोगों को जगाने के साथ-साथ उन्हें उनके लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग भी बताया क्योंकि दुनिया में कोई भी व्यक्ति नहीं जिसका कोई सपना न हो, कोई ऐसा नवजवान नहीं जिसकी कोई मंजिल न हो लेकिन केवल स्वप्न देखने या किसी टारगेट को निर्धारित करने मात्र से वो हासिल नहीं होता जब तक कि उसे पाने के लिये प्रयत्न न किया और प्रयास भी तब तक सफल नहीं होते जब तक कि उन्हें बिना रुके, बिना थके अनवरत न किया जाये पर, मानव स्वाभाव अक्सर अपने उस ध्येय के प्रति उतना गंभीर नहीं होता इसलिये एक या दो बार असफ़ल हो जाये तो अपने कदमों को पीछे मोड़ लेता हैं लेकिन ऐसे समय में यदि वो इस वेद-वाक्य को अपने मस्तिष्क पटल पर गहरे रंग से अंकित कर ले तो फिर जब भी उसके पांव या संकल्प शिथिल हो ये उसे पुनः–पुनः कोशिश करने को प्रेरित करेंगे यही वजह कि इतने बरसों बाद भी ये एक वाक्य आज तक ध्रुव तारे की तरह अमर, अटल भूले-भटके और दिग्भ्रमित लोगों को उस रास्ते का पता बताता हैं जिस पर चलकर वे अपने उस लक्ष्य तक पहुंच सकते जिसे पाने की ललक उसके मन में कभी जागी थी

इस वाक्य का हर एक शब्द अपने आप में अनंत प्रेरणा का स्त्रोत हैं जो सामने वाले को पहले तो अपने स्थान से उठने और फिर जागृत होकर आगे बढ़ने का संदेश देता और फिर हौले से उसके कानों में फुसफुसता कि अब चलना शुरू कर ही दिया हैं तो देखो, मंजिल आने से पहले किसी भी पड़ाव रुकना मत क्योंकि एक बार भी रुक गये तो फिर खरगोश की तरह झपकी लगने में देर न लगेगी और कोई कछुआ धीरे-धीरे इस वाक्य पर पूर्णतया अमल करता तुमसे पहले उस जगह पहुंच जायेगा जहाँ तक तुम जाना चाहते थे और वास्तव में देखे तो यही हो रहा हैं एक जरा सा आलस्य या प्रमाद का क्षण इतना लंबा हो जाता कि फिर कुछ भी कर लो वो समय लौटकर नहीं आता और हम अपनी उस मनोवांछित मंजिल से सदा के लिये दूर हो जाते... तो बस, इतना याद रखो कि चलो तो मंजिल आने से पहले रुकना मत... :) :) :) !!!              
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०८ जनवरी २०१७

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