मंगलवार, 10 जनवरी 2017

पोस्ट-२०१७-१० : विवेकानंद अमृत वाणी : क़िस्त-०४ !!!

साथियों... नमस्कार...

एक नौजवान महज़ २० साल की उमर जिसे हमारे यहाँ लड़कपन की वय माना जाता हैं में इतना गंभीर और मननशील कि न सिर्फ सन्यास का निर्णय लेता हैं बल्कि अपनी जन्मभूमि, मातृभूमि को संपूर्ण विश्व के पटल पर शीर्ष स्थान पर विराजमान करने का संकल्प भी लेता हैं और फिर उसे पूरा करने एक ऐसी यात्रा को निकल पड़ता हैं जो असंभव भले न हो लेकिन उतनी भी आसान नहीं जबकि आपके पास उसे पूरा करने के साधन हो लेकिन जैसा कि हमारे यहाँ मान्यता हैं कि यदि संकल्प पवित्र और दृढ हो तो फिर सारी कायनात ही सहायता को आगे बढ़कर मार्ग प्रशस्त करती जाती हैं तो वहीँ हुआ क्योंकि उनके समक्ष तो केवल एक ही लक्ष्य था कि अपनी सभ्यता, संस्कृति और आचरण से ये साबित करना कि हर धर्म का मूल केवल एक ‘आत्मा’ हैं जिसे हम अनेक नाम से पुकारते हैं वास्तव में वो एक दिव्य ज्योति हैं जो सबके भीतर विद्यमान हैं लेकिन अपनी आँखों पर बंधी अज्ञानता की पट्टी की वजह से हम उसे देख नहीं पाते ऐसे में जो भी हमें जैसा कहता हम उसे ही सत्य मानकर उसका अंधानुकरण करते जबकि यदि हम स्वयं ही अपने नेत्रों को मूंद अपनी दृष्टि को अंतर में स्थित कर दे तो उस गूढ़ दिव्य ज्ञान को सहज ही प्राप्त कर सकते जिसे पाने कई जन्म भी कम पड़ते पर, हम तो जगत की भूलभुलैया में ऐसे खो जाते कि अपने आप से ही दूर हो जाते तो जिस खजाने को हम महज़ हाथ बढ़ाकर छू सकते थे उसे जन्मों-जन्मों तक भी नहीं खोज पाते कि घर में उसे ढूँढने की जगह यहां-वहां जो तलाशते रह जाते

उन्होंने इस रहस्य को बहुत कम उम्र में जान लिया तभी तो करोड़ो नवयुवक में एक ‘नरेंद्र’ ही ‘स्वामी विवेकानंद’ बन सका जिसने अपने अर्जित अनंत ज्ञान को अपनी संयत सधी वाणी से इस तरह सबके सामने उजागर किया कि हर कोई मंत्रमुग्ध-सा बस, देखता-सुनता ही रह गया और जहाँ कुछ मिनटों का समय दिया गया था वहां लोग घटों उसे सुनने तत्पर दिखाई दिये जो स्वतः ही सिद्ध करता कि आत्मज्ञान, आत्मविश्वास और आत्मदर्शन ने पत्थर को तराशकर कोहिनूर बना दिया था... एक ऐसे दर्पण में बदल दिया था जिसमें हर कोई अपना अक्स देखना चाहता था और यह किसी एक पल या एक दिन में हुआ कोई आश्चर्य नहीं था बल्कि इसके पीछे बड़ी लंबी संघर्ष की कहानी छिपी हुई हैं जो एक नौजवान की ‘स्व’ से शुरू होकर ‘स्वामी’ तक पहुंचने वाली दास्तान हैं जिसे पढ़ते-पढ़ते युग बीत गये लेकिन आब भी उतनी ही रहस्यमय और आकर्षक हैं जिसे हर कोई पढ़ना-जानना चाहता हैं... तभी तो उसे बार-बार दोहराया जाता हैं... शायद, कभी किसी दिन किसी की कुंडलिनी जाग्रत हो जाये और उसी पल वो घट जाये जो विधाता ने लिख रखा हो... यही उद्देश्य लेकर प्रतिवर्ष हम ये लेखन करते... :) :) :) !!!            
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१० जनवरी २०१७

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