बुधवार, 25 जनवरी 2017

सुर-२०१७-२५ : ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’... जागरूक होकर देना ‘मत’...!!!

साथियों... नमस्कार...

विश्व में हमारा ही देश जहाँ युवाशक्ति का प्रतिशत बहुत ज्यादा हैं और इस वक़्त लगभग देश की अस्सी प्रतिशत आबादी ‘युवा’ हैं लेकिन वो अपनी शक्ति से अनभिज्ञ हैं तभी तो अपनी ऊर्जा ‘मोबाइल’ और ‘इंटरनेट’ जैसी फ़िज़ूल की बातों में जाया कर रही और फिर एक बार हम देख रहे हैं कि हमारे देश की जनता मानसिक रूप से विदेशियों के शिकंजे में फंसती रही हैं और मन-मस्तिष्क से शून्य होकर केवल उंगिलयां स्क्रीन पर घूमा रही हैं जिसका हासिल क्या होता हैं ये तो वही जाने लेकिन अधिकांशतः तो अपने धन-समय का अपव्यय ही करते दिखाई दे रहे क्योंकि यदि ये सब इस यंत्र और तकनीक का सदुपयोग करे रहे होते तो कहीं न कहीं न केवल देश में अपराध का बढ़ता हुआ ग्राफ कम होता बल्कि बेरोजगारों को रोज़गार का जरिया भी मिलता जिससे कि हमारा देश तरक्की की राह पर तेज गति से आगे बढ़ता हुआ दिखाई देता लेकिन यहाँ तो देश की बागडोर जिन हाथों को संभालनी वे ‘मोबाइल’ थामे हुये अपने ही भविष्य से खेल रहे हैं तिस पर मुफ्त का ‘इंटरनेट’ उनको दिमागी रूप से खोखला करता जा रहा हैं पर, इस बात से अनजान वे तो ‘एंटरटेनमेंट’ को ही जिंदगी समझ रहे और ये भूल गये कि यदि वे चाहे तो इसे ही हथियार बनाकर अपना जीवन बदल भी सकते जिसने ये जान लिया वो इन गेजेट्स को उस तरह से इस्तेमाल भी कर रहे लेकिन उनका प्रतिशत एकदम नगण्य हैं

‘गुलामी’ केवल जंजीरों से कैद कर किसी को अपनी कैद में रखने का नाम ही नहीं बल्कि अब जो अदृश्य तरंगों के माध्यम से लोगों को अपनी गिरफ्त में लिया जा रहा ये अधिक खतरनाक हैं क्योंकि इससे आपका तन-मन-धन सब एक साथ ही जर्जर होता जा रहा और सबसे बड़े बात कि हम खुद अपने ही हाथों अपने जीवन को खत्म कर रहे लेकिन हमें ही खबर नहीं । जिसकी वजह यह कि इसका नशा सबके सर चढ़कर बोल रहा फिर इससे बढ़कर परतंत्रता क्या होगी कि आप हर बात के लिये ‘मोबाइल’ पर निर्भर अपने सोचने-समझने की शक्ति तो छोड़िये अपने अपने खेलने-कूदने की क्षमताओं का भी सर्वनाश आकर दिया जबकि आप चाहते तो इसके द्वारा अपने शौक को न केवल सीख सकते थे बल्कि एक बेहतरीन खिलाड़ी भी बन सकते थे पर, जब तक होश में आये तब तक अस्पताल में भर्ती हो चुके थे कि इस लत ने आपको कहीं का न छोड़ा हो सकता अभी ये सब पढ़ना ‘अति’ लग रहा हो लेकिन ‘इति’ नहीं कि इससे भी बढ़कर खबरें हम रोजाना अख़बारों में पढ़ रहे कि किस तरह कहीं ‘सेल्फी’ के चक्कर में युवा वर्ग अपनी जान गंवा रहा तो कहीं ‘पोर्न’ में धंसकर ‘अपराधी’ बन रहा तो कहीं ‘फिल्मे’ देख-देखकर अपनी आँखें खराब कर रहा तो कहीं दिन-रात से ‘चैटिंग’ में व्यस्त होकर अपने हाथों का बुरा हाल कर लिया याने कि यंत्र एक, बीमारी अनेक कुछ तो लाइलाज भी तो क्या ये ‘गुलामी’ नहीं ??

इन सबको लिखने का तात्पर्य केवल इतना कि भारत का कोई भी नागरिक जिसने १८ वर्ष की आयु पूर्ण कर ली उसे ‘वोट’ देने का अधिकार हासिल हो जाता जिससे वो ‘मतदाता’ बन जाता भले एक जिम्मेदार ‘वोटर’ बनना जुदा बात हैं तो ऐसे में उसे इस बात की जानकारी भी होनी चाहिये कि अपने इस मताधिकार का प्रयोग वो कहाँ और किस तरह करे क्योंकि ये कह देने मात्र से कि मुझे तो ‘राजनीति’ में कोई रूचि नहीं और न ही मुझे किसी को वोट देना सब लोग भ्रष्ट हैं कोई सही नहीं आदि... आदि... इस तरह की कई बातें जिन्हें आजकल युवा अपना फैशन स्टेट्स मानते लेकिन ये भूल जाते कि कबूतर के आँख मुंदने से बिल्ली उसे छोड़ नहीं देती याने कि नुकसान उसी का होना तो ऐसे में यही सही कि इसे समझे और जाने कि इसमें हम किस तरह बदलाव ला सकते और किस तरह से एक जागरूक जिम्मेदार मतदाता बनकर अपने अधिकार का सही प्रयोग कर सकते इसी उद्देश्य से २५ जनवरी २०११ से ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ मनाने की घोषणा की क्योंकि २५ जनवरी १९५० को ही ‘भारतीय निर्वाचन आयोग’ की स्थापना हुई थी पर, हम इसे भी शासन का एक अधिकारिक दिवस समझ उसी तरह से खानापूर्ति कर मना लेते लेकिन इसके मूल उद्देश्य को जानने-समझने की कोई कोशिश नहीं करते तभी इस तरह के दिवस महज़ औपचारिकता बनकर रह जाते पर, यदि हम इसे समझने की कोशिश करे तो पायेंगे कि हमारे फायदे के लिये ही इसे आयोजित करने का निर्णय लिया गया तो हमें कंधे उचकाकर इससे अनभिज्ञ रहने की आवश्यकता नहीं बल्कि ये समय की मांग कि हम राजनीति को समझे, संविधान को जाने और अपने देश के लिये एक मतदाता के रूप में हम क्या कर सकते हैं उसे करने के लिये कदम बढ़ाये नहीं तो जिस तरह की व्यवस्था झेल रहे बिना शिकायत किये उसमें ही दलदल की तरह धंसते जाये फिर एक दिन हममें ताकत ही नहीं रहेगी किसी प्रतिरोध की क्योंकि हम उसके आदि बन चुके होंगे

हम जो ये सोचते कि हमने तो ‘वोट’ दे दिया, ‘टैक्स’ दे दिया अब बाकि काम ‘सरकार’ का तो इसी तरह की मानसिकता को भी बदलने का प्रयास करें या फिर जो हो रहा उसके प्रति कोई विरोध न दर्शाये क्योंकि हम परिवर्तन का हिस्सा नहीं तो तो फिर शिकायत के हकदार भी नहीं केवल चाहने से तो देश नहीं बदलेगा कुछ तो हमें भी करना होगा क्या नहीं :) :) :) ???
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२५ जनवरी २०१७

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