शनिवार, 14 जनवरी 2017

सुर-२०१७-१४ : सूरज की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’... मकर संक्रांति लाई...!!!

साथियों... नमस्कार...


जब ‘सूर्य’ जैसा तेजस्वी और दमदार ग्रह ‘मकर राशि’ में घुसकर...‘सर्जिकल स्ट्राइक’... करता हैं तो जो प्राकृतिक परिवर्तन घटित होता हैं वही हैं ‘मकर सक्रांति’... जिसके बाद सूरज अधिक आक्रामक होकर अपने किरण रूपी सैनिकों के माध्यम से चहुंओर से घेराबंदी कर अपनी तपिश की तडातड़ गोलाबारी करता हैं तो फिर जहाँ उसके शुरुआती हल्के-फुल्के अटेक बढ़ती शीतलता के प्रहार को कम करते सुखद प्रतीत होते हैं वही उसके उग्र होने पर वही किरणें जब अधिक ताकतवर होकर हम पर हमला करती हैं तो फिर उनसे बचने के लिये हमें अपने बंकरों में छिप जाना पड़ता हैं या फिर अपने हथियारों से लेस होकर उससे मुकाबला करते हुये अपने काम करने पड़ते हैं क्योंकि भले वो आग बरसाये या उसकी लपटें हमें जलाये कर्म करना तो बंद नहीं किया जा सकता लेकिन कुछ सावधानियां जरुर बरती जा सकती हैं कुछ ऐसा ही संदेश प्रकृति अपने परिवर्तनों के द्वारा हम सबको देती हैं इसलिये तो मन में उत्साह का संचार करते किसी उत्सव के माध्यम से हमको जोड़ती हैं...

सूर्य की उपासना का यह पर्व ‘मकर संक्रांति’ जिसमें ‘क्रांति’ शब्द सकारात्मक भाव लिये हुए हैं क्यूंकि इसके बाद तेज ठंड से कंपकंपाती सर्द रातें छोटी होने लगती हैं और सौर ऊर्जा की गर्माहट लिये दिन एकाएक बढ़ने लगते हैं जो शुरुआत में तो बड़े अच्छे लगते हैं लेकिन जैसे-जैसे इस गर्मी में तपन का जोर बढ़ने लगता हैं वैसे-वैसे वही सूरज कभी जिसके नीचे चादर बिछा लेट जाते थे और उसे अलाव समझकर तन-मन को सेंकते थे अब उसी से नजर चुराने लगते हैं और चाँद की शीतलता में सुकूं पाते हैं याने कि उसी से ठंडा, उसी से गरम वाला फंडा यहाँ भी काम करता हैं और हम कभी सूरज को तरसते तो कभी उससे बचते अपने दिन काटते हैं पर, ये भी अकाट्य सत्य हैं कि भले हम उससे घबराये या उसे अपनाये पर, उसके बिना जी नहीं सकते वही एकमात्र साक्षात् देवता हैं जिनसे हमारा ही नहीं सबकी जीवन डोर बंधी हैं क्योंकि सभी पंचतत्वों में वही प्रधान हैं अतः सब उस पर निर्भर करते हैं...           

हमारे धर्मशास्त्रों में ‘मकर संक्रांति’ का बड़ा महत्व हैं क्योंकि इस दिन से सूर्य ‘उत्तरायण’ हो जाता हैं अर्थात उसकी अब तक कि जो घूर्णन गति थी उसमें दिशा परिवर्तन होता हैं जिसे हमारे लिये अधिक शुभ फल देने वाला माना जाता हैं तभी तो शर-शैयाँ पर लेटे असंख्य तीरों की नुकीली चुभन को सहते हुये भी ‘भीष्म पितामह’ ने इस दिन की प्रतीक्षा में अपने प्राणों को रोक के रखा जबकि उनको ‘इच्छामृत्यु’ का वरदान हासिल था जो स्वतः ही इसकी महत्ता को सिद्ध करता हैं तो आज उस प्रत्यक्ष जीवनदायी देवता को अर्ध्य देकर हम उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करें जिसकी वजह से चर-अचर सभी जीवंतता का बोध करते हैं, उसकी प्राणशक्ति से ही गतिमान होकर अपने संकल्पों को पूर्ण कर अपने लक्ष्य का संधान करते हैं... तो इस पावन पर्व पर यही मंगलकामना करती हूँ कि... जीवन में लाये सुखद क्रांति... शुभ हो ‘मकर संक्रांति’... :) :) :) !!!!
       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१४ जनवरी २०१७


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