मंगलवार, 31 जनवरी 2017

पोस्ट-२०१७-३१ : दिल में दर्द बसा लाई.. पर, सबको बांटती खुशियाँ...‘सुरैया’ !!!

साथियों... नमस्कार...



मैं दिल में, मैं दिल में
दर्द बसा लाई
नैनों से नैन मिला आई
उनको अपने मन की बातें
बिना कहे समझा आई
मैं दिल में...

‘अनमोल घड़ी’ फिल्म में सुर सम्राज्ञी ‘नूरजहाँ’ के सामने पियानो पर उँगलियाँ चला इठलाती-इतराती और अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को तरह-तरह से मटकाती अदाकारा ‘सुरैया’ जब ये गीत गाती हैं तो चेहरे की भाव-भंगिमायें उनके भीतर के दर्द को भले ही बयान न करती हो लेकिन फिर भी ये फ़िल्मी दुनिया का एक बहुत बड़ा सच था कि उपर से मुस्काराहट बिखेर अपनी अदाकारी से सबके दिलों पर बिजली गिराने वाली बला की हसीन ये नायिका जितनी बेहतरीन अभिनेत्री थी उतनी ही शानदार गायिका भी जिसके अभिनय और आवाज़ की दिलकशी की वजह शायद, उसका संवेदनशील हृदय था जो जितना कोमल और भावुक था उतनी ही संजीदगी उनके अभिनय और आवाज़ में थी जिसके कारण उनको सुनना व देखना एक अलग ही अनुभव देता था...

जिसकी वजह से रजत परदे पर उनको देखने वाले समझ नहीं पाता था कि उनकी उस बाहरी खुबसूरती को ही निहारे जो सामने दिखाई दे रही या फिर भीतर से आती उनके सुरीले कंठ की खनकदार ध्वनि को सुने या फिर उनके सहज-सरल लुभावने अभिनय को देखे क्योंकि वे हिंदी सिनेमा जगत की एक ऐसी बहुआयामी व्यक्तित्व की मलिका जो एक साथ आला दर्जे की सिने तारिका होने के साथ-साथ ही उतने ही ऊँचे स्तर की नायिका भी थी जिसे कुदरत ने हर फन से नवाज़ा था बस, कोई कमी की तो वो किस्मत में ही थी जहाँ कहने को ‘प्रेम’ का स्थान भरा था लेकिन उसके सूनेपन का अहसास केवल वही समझ सकती जिसने सच्चे प्यार को पाकर भी नहीं पाया फिर भी आजीवन उसको जिया और किसी दूसरे को वो जगह नहीं दी जिस पर उन्होंने किसी की तस्वीर सजा ली थी जबकि वो जिसके दीवाने सिर्फ़ देश ही नहीं विदेश में भी बसे थे और उनकी एक झलक का दीदार करने सात समन्दर पारकर भी आये थे...

लेकिन, जब एक बार उन्होंने अपने हिस्से की मुहब्बत कर ली तो फिर भले उसकी कमी महसूस की हो लेकिन उसे भरने की कोई कोशिश उनकी तरफ से नहीं की गयी क्योंकि जिसे वे चाहती थी उससे मिलन नामुमकिन था फिर ऐसे में उसकी यादों को ही अपने जीवन का सहारा बना एकाकी जीवन गुज़ारती वो प्रेम दीवानी जिसके ख़ुद लाखों-करोड़ों दिवाने थे अपने मन की बात मन में ही रख खामोश आज के दिन ही इस दुनिया से चुपचाप चली गयी... जिस पीड़ा को हम उनके गाये इस नगमे में सुन सकते हैं...

.....
तेरी कुदरत तेरी तदबीर मुझे क्या मालूम
बनती होगी कहीं तक़दीर मुझे क्या मालूम

, मेरा दिलदार न मिलाया
मैं क्या जानूँ तेरी खुदाई

होगा तेरे बस में जहाँ
अपने तो दिल मिल न सके
मुझ को तो है इतना पता
बिछड़े हुए मिल न सके
ओ मेरा दिलदार न मिलाया
मैं क्या जानूँ तेरी खुदाई...
.....

अब केवल उनके गाये नगमे, उनकी अदाकारी से सज्जित फ़िल्में ही उनकी धरोहर जिनको सुन-देखकर हम उनके होने की अनुभूति कर सकते हैं... उनकी पुण्यतिथि पर उनके दर्दीले नगमों को याद कर उनको ये गीतांजलि अर्पित करती हूँ... :) :) :) !!!         
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३१ जनवरी २०१७

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