साथियों... नमस्कार...
कटते नहीं हैं लम्हें इंतजार के...
उफ़, खुदा मौत ही दे दे पर, किसी को इस कदर न
तड़फाये कि वो इसके आगे उस ज़ालिम की शरण में जाये...
फिर भी कहीं न कहीं दिल में उम्मीद की एक
नन्ही-सी किरण जगमगाती और आशा हौले-से कानों के करीब आकर फुसफुसाती कि भले, ये
असहनीय लेकिन, फिर भी कहीं न कहीं इसमें ये आस तो हैं कि शायद, वो घड़ी आ ही जाये
जब ये खत्म हो...
पर, सांस ही बंद हो गयी तो फिर किसी भी तरह से
वो ख्वाहिश पूरी न होगी जिसे दिल में लिये ही दुनिया से रुखसत कर जायेंगे इसलिये
जीते-जी ही उस दर्द को सहने तैयार हो जाते वो भी जो काँटों की सेज पर सो रहे होते...
‘इंतजार’ जितना तकलीफदायक और कष्टप्रद लफ्ज़ हैं उतना
कोई दूसरा नहीं लेकिन इसके साथ एक अच्छी बात ये जुडी कि इसका एक छोर जाकर ‘ऊम्मीद’
से जुड़ता और पीड़ा की इस अँधेरी खोह से गुजरने वाला यही सोचता कि कभी न कभी तो ये
खत्म होगी उस मोड़ पर जहाँ से रौशनी की किरणें आकर हर उस वेदना को हर लेगी जो इसके
दरम्यान तन-मन पर गुजरी...
शायद, यही वजह कि सज़ा लगे या ज़हर जैसा ही क्यों
न महसूस हो फिर भी इस पथ का राही हिम्मत नहीं हारता अगर, उसके भीतर इससे लड़ने का
हौंसला होता... ये उनका काम नहीं जो मुसीबतों से घबरा कर मुक्ति या पलायन का
विकल्प चुनते ये तो उन जिगर वालों का फ़ैसला होता जिसने हर हाल में इंसाफ पाने की
ठान ली...
कठिन तो बहुत हैं रहगुज़र इंतजार की...
लेकिन, विसाले यार की तमन्ना में सरल लगती हैं....
:) :) :) !!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१८ जनवरी २०१७
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