रविवार, 22 जनवरी 2017

सुर-२०१७-२२ : “कौतूहल और जिज्ञासा से भरी... बच्चों की दुनिया नन्ही...!!!”

साथियों... नमस्कार...

बच्चों के साथ रहना, उनको ध्यान से देखना एक तरह से अपने बचपन को दुबारा जीने का अहसास ही नहीं देता वरन हमें भी उनकी तरह ही नूतन ऊर्जा और उमंग से भर देता हैं और जैसा कि कहते हैं अपने दिल के किसी कोने में हमें किसी मासूम बच्चे को बचाकर रखना होता हैं तो इसका मतलब यही हैं कि हम उस निर्दोष उत्सुकता को सरंक्षित रखे जो नन्हे-नन्हे बच्चों में जन्म से होती फिर पता नहीं किस तरह दुनिया के मायाजाल में फंसकर कहीं खो जाती पर, जब हम उन नन्हे-नन्हे बाल-गोपालों के साथ उनके जैसे ही बन जाते तो उस खोये हुये बालपन को फिर से पा जाते...

आँख खोलते ही जैसे बच्चा खुद को एक नई दुनिया में पाता उसके लिये मानो किसी दूसरी दुनिया का द्वार खुल जाता जहाँ पग-पग पर उसे आश्चर्य के नये-नये विषय मिलते रहते और उस पर उनकी वो प्राकृतिक मुखमुद्रा तरह-तरह की भाव-भंगिमायें उनकी जिज्ञासा के स्तर को दर्शाती कि वो किस तरह से हर चीज़ को करीब से जानने को उत्सुक रहते जिसके लिये वो कभी-कभी वो खतरे से भरी हुई चीज़ को भी पकड़ लेते और जैसा कि हम देखते कि शुरुआती दौर में तो उनका हर एक वस्तु को जानने का तरीका मुंह से होकर गुज़रता तभी तो जो हाथ आता उसे सीधे मुंह में डाल लेते...

धीरे-धीरे वो जब पैंया-पैंया चलने लगते तो फिर उनकी नजरों का दायरा भी बढ़ने लगता और दिन-प्रतिदिन पल-पल दिखने वाले आश्चर्यों से उत्सुकता भी चरम पर पहुंचने लगती जिसके माध्यम से वो इस दुनिया और इसकी चीजों से परिचित होने लगते लेकिन इस दरम्यान क्रिया की  प्रतिक्रिया स्वरुप होने वाली उनकी अचरज भरी मुखमुद्रा देखते ही बनती जो हमें अहसास कराती कि किस तरह हम एक अनजान की भांति इस दुनिया में आते लेकिन फिर किस तरह सब कुछ जानकर इतने बड़े ज्ञानी या बोले तो चालाक हो जाते कि उन छोटी-छोटी बातों में ख़ुशी हासिल करना ही भूल जाते कभी जिनके आगे कीमती से कीमती सौगात भी मामूली नजर आती थी... बड़े से बड़े नोट को छोडकर किस तरह सिक्के को चुन लेते थे... और बड़े हुये तो उन बातों में ही बचपना नजर आने लगा कभी जिनसे हमारी दुनिया आबाद थी... कुछ ऐसे ही अनुभवों को फिर से जीने ही तो ईश्वर इन देवदूतों को हमारे बीच भेजता हैं और ये भी बताता कि वो अभी हमसे निराश नहीं हुआ उम्मीद की कोई कड़ी बाकी हैं तो उसे टूटने न देना कि उसे सृष्टि को ही मिटाने का निर्णय लेना पड़े... हर शिशु उस परमपिता का प्रतिनिधि, एक पवित्र आत्मा जिसकी मासूमियत हमें ही बचाना हैं... :) :) :) !!!          
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२२ जनवरी २०१७

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