मंगलवार, 24 जनवरी 2017

सुर-२०१७-२४ - ‘राष्ट्रगान अंगीकरण दिवस’... जन-गण-मन गाओ सब...!!!

साथियों... नमस्कार...


जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिंध गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष माँगे 
गाहे तव जयगाथा
जन-गण-मंगलदायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे।।

ये सिर्फ एक गीत नहीं बल्कि हमारी भारत भूमि की आन-बान-शान हैं भले ही इससे कितने भी विवाद जुड़े हो या कुछ लोग इसमें वर्णित ‘अधिनायक’ के रूप में अपने देश को नहीं बल्कि किसी अन्य शख्सियत को रखकर इस पर तर्क-वितर्क करते हो लेकिन कुछ भी कहे या सोचे ये तो तय हैं कि २४ जनवरी १९५० को याने कि आज के दिन ही हमारी भारतीय संविधान सभा ने इसे ‘राष्ट्रगान’ के रूप में अपनाया और २७ जनवरी को पहली बार सामूहिक रूप से इसका गान किया गया तो फिर उसी क्षण से ये हमारे लिये हमारा ‘देशराग’ बन गया जिसका सम्मान करना हमारा नैतिक कर्तव्य ही नही बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारी ये जवाबदारी हैं कि न सिर्फ हम ही इसको मान दे बल्कि दूसरों को भी इसके लिये प्रेरित करें कि वो इन शब्दों में छिपे अधिनायक के रूप में अपने वतन के दर्शन करे और इस तरह दृष्टि बदलते ही सृष्टि बदल जाएगी अर्थात इसमें हमारा भारत देश साक्षात् दिखाई देगा...

‘देशभक्ति’ का केवल एक ही मतलब नहीं कि हम सीमा पर जाकर दुश्मनों से लड़कर अपने प्राण निछावर करे तभी ‘राष्ट्रभक्त’ कहलायेंगे बल्कि बहुत-सी छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर भी हम ये काम कर सकते जिसमें अपने राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय खेल, राष्ट्रीय चिन्ह आदि कई रक्षा और सम्मान भी जुड़ा हैं जिसके माध्यम से हम देश की छोटी-मोटी सेवा कर ही सकते और जहाँ कहीं भी हमें कोई भी इसका संविधान के विरुद्ध दुरुपयोग या इसका असम्मान करता दिखाई दे तुरंत एक्शन ले क्योंकि ये चुप्पी ही एक दिन हमारे लिये मुसीबत बन जाती जिस तरह अभी कुछ दिन पहले हमने देखा कि ‘अमेजॉन’ ने अपनी केनेडियन वेबसाइट पर हमारे भारतीय तिरंगे छापे वाले ‘डोरमेट्स’, ‘जूते’, ‘चप्पल’ जैसे प्रोडक्ट्स लगाये हुये थे जिसे देखते ही हमारी ‘विदेश मंत्री’ श्रीमती सुषमा स्वराजजी ने तुरंत ही उनको चेतवानी दी कि वो इसे तत्काल हटाये वरना उन्हें वीज़ा नहीं दिया जायेगा तो उन्होंने उसे हटाया जो ये दर्शाता कि उन्हें भारत से व्यापर करना तो उन्होंने इस बात को गंभीरता से लिया याने कि यदि उन्हें हमसे कोई सरोकार नहीं होता तो शायद, वो ये कदम न उठाते इसलिये ये संदेह कि उन्होंने उसे बेचना बंद किया या नहीं जिससे हम वाकिफ़ नहीं तो ये घटना हमें ये बताती कि हमें कभी भी अपने देश का अपमान नहीं सहना हैं चाहे करने वाला कोई हो उसे अधिकारों सहित उसके कर्तव्य भी याद दिलाना ये भी देशसेवा का अपना ही तरीका बस, दिल में अपने देश के प्रति भी प्रेम की भावना होनी चाहिये...

इस तरह से दिवस को याद करने का केवल यही उद्देश्य कि हम थोड़ा अपने इतिहास को भी दोहराते चले जिससे हमारी अतीत की जड़ें जुडी नहीं तो एक दिन कटी पतंग की तरह आकाश में इधर-उधर मंडराते फिरेंगे जिसे फिर कोई फिरंगी पकड़ कर अपना बना सकता हैं तो यदि आज़ाद भारतीय परिंदे ही बने रहने चाहते हो तो अपने देश की हवा के साथ ही उसकी संस्कृति को भी अपनी सांसों में भर लो और उसके जल-भोजन के साथ अपनी परंपराओं को रगों में लहू की तरह बहने दो फिर गर्व से कहो... मेरा जूता हैं जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पर लाल टोपी रुसी... फिर भी दिल हैं हिंदुस्तानी... <3 !!!  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ जनवरी २०१७

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