सोमवार, 2 जनवरी 2017

पोस्ट -२०१७ -०२ : “शब्दों से बने रिश्ते... अधिक गहरे होते...”!!!

नमस्कार,

साथियों... 

अदृश्य तरंगों के जाल पर खड़ा ‘सोशल मीडिया’ का ये आभासी संसार कहने को भले ही काल्पनिक या नजरों का धोखा हैं... ठीक उसी तरह जिस तरह इस चराचर जगत को भी छलावा और माया कहा जाता मगर, फिर भी इसके मोह से बचना कहाँ संभव होता और आकर्षण क्यों न हो भला ???

जो नयनों को लुभाते वो दृश्य यहाँ हैं तो वहां भी हैं, जो मन को छू जाते वो इंसान यहाँ हैं तो वहां भी तो हैं फिर उनसे बना ‘मित्रता का रिश्ता’ जो धीरे-धीरे अपनेपन के रंग में रंगकर जीवन का हिस्सा बन जाता किस तरह से महज़ भ्रम कहा जाये कि भले ही सबसे मिलना न हुआ हो और सिर्फ बातों या संदेशो से ही राब्ता कायम हुआ हो पर, शब्दों के जरिये भी तो पहचान हो ही जाती तभी तो हम जितना इस हक़ीकी दुनिया में एक-दुसरे को नहीं समझ पाते उतना उस शाब्दिक संसार में करीबी रिश्ता बन जाता कि नजदीक रहते हुये हम अपनों को पढ़ना छोड़ देते हैं जबकि सुदूर अंचल में बसे लोगों को पढकर ही जानते हैं तो ये जान-पहचान अधिक गहरी होती हैं और कभी-कभी आवाज़ या विडियो के माध्यम से सुनने व देखने का भी अनुभव हो जाता तो विश्वास की डोर मजबूत होती कि जिसे हम अपना मित्र चुना वो एक सही व्यक्ति हैं....
  
ऐसे में जब हमारे नेह के धागे समय की चकरी में घूमकर बंधने लगते, बढ़ने लगते तो फिर संवादों में आने वाला अंतराल भी उसे तोड़ नहीं पाता कि भरोसे का किरचों का मांजा उसे मजबूती जो दे जाता हैं तभी तो जब कोई ऐसा दोस्त जो अपनी पोस्ट के जरिये लगातार संपर्क में रहते हैं यदि कुछ अरसा दिखाई न दे या किसी वजह से दूरी बना ले तो भी दोस्ती टूटती नहीं कुछ ऐसा ही अहसास हुआ जब एक लंबे समय अंतराल के बाद कल पुनः इस ‘आभासी दुनिया’ में पुनरागमन हुआ तो लगा नहीं कि लगभग १०० से आधिक दिनों का एक बहुत बड़ा गैप आ गया हैं बल्कि वो सब साथी जो पहले भी तवज्जो देते थे उसी तरह उतनी ही गर्मजोशी से मिले तो लगा कि सिग्नल केवल को ही कोड नहीं बल्कि भावनाओं को भी अपने साथ बहाकर ले जाते जो सामने वाले को भी उतनी ही शिद्दत से महसूस होती जितने कोमल अहसासों के साथ अगले के द्वारा बुनकर भेजी गयी थी...

इसलिये सोचा आज अपने उन सभी दोस्तों को तहे दिल से शुक्रिया कह दूँ जिन्होंने मुझ पर स्नहे बनाये रखा, दोस्ती का रिश्ता तोडा नहीं और मुझसे शिकवा-शिकायत भी नहीं किया क्योंकि इन दिनों न सिर्फ मैंने अपनी तरफ से कोई पोस्ट डाली और न ही दोस्तों की ही पढ़ सकी जबकि ५ अगस्त से ३१ दिसंबर तक के बीच की ये अवधि जिसे आप सब रिक्त देख रहे हकीकत में वो भरी हुई हैं पर, फ़िलहाल दिखाई नहीं दे रही कि सभी पोस्ट्स ‘only me’ रखी गयी हैं जिसकी एक ठोस वजह हैं और अनुकूल समय आने पर उसे सार्वजनिक किया जायेगा फिर भी मुझे इस बात की सर्वाधिक ख़ुशी हैं कि इन दिनों मेरे दोस्तों ने मेरा साथ छोड़ा नहीं और मेरी वापिसी पर मुझे वही मान-स्नेह दिया जो शुरू से देते आये हैं...

अब मेरा ये प्रयास रहेगा कि तमाम जिम्मेदारियों को निभाते हुये मैं पूर्व की भांति सबको समय दे सकूं, सबकी पोस्ट पढूं और अपनी नियमितता को भी बरकरार रख सकूँ तो मेरी आज की ये पोस्ट आप सबको समर्पित हैं मेरे साथियों....
      
अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करने का एक छोटा-सा प्रयास किया हैं---

∙∙∙∙∙
'शुक्रिया'...
लफ्ज़ भले छोटा हैं
और दोस्तों
जो आप सबने दिया
वो बहुत बड़ा हैं
पर, मनोभावों को दर्शाने
आपके लिये लिखा तो फिर
इसका वज़न खुद-ब-खुद बढ़ गया ।।
∙∙∙∙∙

आखिरी में मुझे ‘अहसान मेरे दिल पे तुम्हारा हैं दोस्तों, ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा हैं दोस्तों...’ गीत याद आया रहा हैं... वाकई ‘दोस्ती का नाम जिंदगी... जिंदगी का नाम दोस्ती’ महज़ गीत नहीं वास्तविकता हैं और इसके प्रत्यक्ष दर्शन हम यहाँ इस जगह रोज करते तभी तो अपनी व्यस्ततम जिंदगी से भी दो पल चुराकर यहाँ आ ही जाते... तो कल फिर मिलते किसी नये टॉपिक के साथ.... तब तक बाय... बाय... :) :) :) !!!
          
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०२ जनवरी २०१७ 

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