मंगलवार, 17 जनवरी 2017

पोस्ट-२०१७-१७ : बंगाल का जादू... न रहे दिल पर काबू...!!!

साथियों... नमस्कार...



बंगाल के ‘दिलीप कुमार’ कहे जाने वाले ‘उत्तम कुमार’ के साथ लगातार लगभग बीस बरसों तक नायिका बनी सौंदर्य सम्राज्ञी ‘सुचित्रा सेन’ ने कई किरदार निभाये और इस जोड़ी ने लम्बे समय तक पर्दे पर नायक-नायिका के रूप में दर्शकों को अपने अभिनय से बांधकर रखा लेकिन खुद एक-दूसरे के इश्क में नहीं बंधे जबकि अब तो किसी भी फिल्म को हिट बनाने उसके हीरो-हीरोइन के बीच अफेयर के झूठे किस्से उड़ा प्रमोशन किया जाता तब भी वो बमुश्किल ही चल पाती लेकिन इन दोनों का साथ में आना ही फिल्म के सुपर-हित होने की गारंटी होता था फिर भी दोनों अपने व्यक्तिगत जीवन में अपने वास्तविक जीवन-साथी के प्रति इतने इमानदार थे कि फिल्म के रोल को सिर्फ शूटिंग तक ही सीमित रखते और जैसे ही घर आते हकीकत से जुड़ जाते ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि इसी दौर के फ़िल्मी कलाकारों की सच्चाई हैं जिन्होंने फिल्मों में काम करते हुए भी अपने व्यक्तित्व को इतना सशक्त बनाया कि कोई भी इन्हें कभी हल्के में ने ले पाया न कभी पर्दे के बाहर इनको लेकर किसी तरह की गलत खबरें या अफवाहें उड़ी जिसने ये सिद्ध कर दिया कि चरित्र को बचाकर भी ग्लेमर की दुनिया में काम किया जा सकता बशर्तें आपको अपने आप पर इतना भरोसा हो तभी तो ‘सुचित्रा सेन’ ने आजीवन अपनी शर्तों पर अपने तरीके से काम किया और शिखर पर रहते हुए सन्यास लेकर इस चमक-दमक भरे माहौल से दूर एकाकी अपना अंतिम समय बिताया जहाँ लोग उनकी एक झलक देखने को टीआरएस गये लेकिन जब वे इस फ़िल्मी जगत को बाय-बाय कहकर चली गयी तो फिर पलटकर यहाँ न आई और हिंदी फिल्मों में तो उन्होंने केवल सात फिल्मों में ही काम किया लेकिन उन्हें भूल पाना मुश्किल नहीं हालाँकि सभी फ़िल्में उतनी सफल नहीं रही लेकिन ‘देवदास’, ‘आंधी’, ‘बंबई का बाबू’ और ‘ममता’ जिसने भी एक बार देखी वो उनके अभिनय और खुबसूरती के प्रभाव से बाख नहीं सकता क्योंकि उन्होंने अपने निभाये किरदारों को यूँ जीवंत किया कि वो महज़ कल्पना के पात्र नहीं बल्कि कहानी के साकार चरित्र बनकर दिलों-दिमाग में बस गये... ‘देवदास’ की ‘पारो’ हो या ‘आंधी’ की ‘आरती देवी’ इन रूपों को भूलाया जा सकता हैं जहाँ देखने वाले सांसें रोककर उसमें यूँ खो जाते जैसे वो उनके ही जीवन की घटना हो आखिर इतनी शिद्दत से काम करने वाले कलाकार हैं ही कितने उनमें एक नाम हैं बंगालन ‘सुचित्रा सेना’ का जो २०१४ में आज ही के दिन हम सबको छोडकर चली गयी लेकिन उनकी स्मृति हमारे जेहन में सदैव सजीव रहेगी कि पर्दे पर अभिनीत उनके वो रोल हमेशा उसी तरह सरंक्षित रहेंगे जो हमें उकी कमी महसूस न होने देंगे... आज उनको यही हैं मेरी शब्दिक श्रद्धांजलि... शब्द-सुमन... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१७ जनवरी २०१७

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