मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

सुर-२०१७-२७४ : ‘कादम्बिनी गांगुली’ : पहली महिला स्नातक यूरोपीय चिकित्सा प्रणाली में प्रशिक्षित पहली महिला चिकत्सक !!!



आज मैं स्मरण करती हूँ देश की उस महानतम नारी का जिसने उस दौर में ‘महिला सशक्तिकरण’ जैसे शब्द को सार्थकता प्रदान की जबकि महिलाओं के लिये खुद के बारे में सोचना या अपने आपको एक पृथक अस्तित्व समझना भी गुनाह समझा जाता था कि उस समय में सभी कार्यक्षेत्र पर पुरुषों का एकाधिकार था और यही माना जाता था कि लडकियाँ सिर्फ घर की चारदीवारी में काम करने के लिये ही बनी हैं उनका घर के बाहर निकलना या अपने दम पर अपनी पहचान बनाना नामुमकिन ही नहीं असंभव ही हैं क्योंकि तब नारी को महज़ गृहलक्ष्मी का ही दर्जा दिया जाता था और पुरुष पर बाहरी कामों का दायित्व था तो इस मानसिकता के कारण हर एक कर्म-क्षेत्र में पुरुषों का ही वर्चस्व समझा जाता था परंतु महिलाओं की सामर्थ्य या काबिलियत को केवल वही समझ सकती हैं दूसरा उसका आंकलन नहीं कर सकता तो जब भी वो कुछ कर दिखाने की ठान लेती या कुछ भी बनने का संकल्प मन में कर लेती तो फिर उसे उसके लक्ष्य से डिगाना या उसके पथ से च्युत कर पाना किसी के भी वश की बात नहीं होती तो कुछ ऐसे ही असंभव दिखने वाले कार्य को अंजाम दिया देश के बेटी ‘कादम्बिनी गांगुली’ ने जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में जहाँ केवल पुरुषों की ही दावेदारी समझी जाती थी अपनी जगह बनाने की ख्वाहिश जो एक बार मन में पैदा की तो फिर हर मुश्किल हालात का सामना करने के बाद भी अपना वो स्वप्न साकार कर ही राहत की साँस ली और इतिहास में हमेशा हमेशा के लिये भारत की प्रथम स्नातक महिला तथा पहली महिला फ़िजीशियन होने का गौरव हासिल किया और इस तरह वे देश की प्रथम महिला डॉक्टर के रूप में दर्ज हो गयी इसके साथ ही उन्हें ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ के अधिवेशन में सबसे पहले भाषण देने वाली महिला होने का ख़िताब भी हासिल हैं।

ये उस समय की बात हैं जब हमारा देश परतंत्रता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था ऐसे समय में जबकि लोगों के लिए जीना कठिन था कोई पढने के बारे में सोच भी नहीं सकता था वो भी महिलाएं, पर ये गौरवशाली भारत की भूमि हैं जहाँ यदि कोई मन में कुछ ठान ले तो फिर कितनी भी मुश्किलें आयें अपने लक्ष्य को प्राप्त कर के ही रहता हैं ऐसा ही किया असीम इच्छाशक्ति की हार न मानने वाली ‘कादम्बिनी गांगुली’ ने और अपने इस कारनामे के कारण वे बन गयी परतंत्र भारत के प्रथम स्नातक और यूरोपीय चिकित्सा प्रणाली में प्रशिक्षित पहली महिला चिकित्सक। वे चंद्रमुखी बसुके साथ ब्रिटिश साम्राज्य की पहली महिला स्नातकों में से एक थी इसके अतिरिक्त वे दक्षिण एशिया की पहली महिला चिकित्सकों में से एक एवं भारत की पहली महिला चिकत्सक थी जो यूरोपीय चिकित्सा प्रणाली में प्रशिक्षित थी।
कादम्बिनी ने बंगा महिला विद्यालय में अपनी शिक्षा शुरू की और 1878 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा पास करने वाली पहली महिला बन गयी। आंशिक रूप से उनके प्रयासों की वजह से ही बेथुने कॉलेज ने पहली बार एफए (प्रथम कला) शुरू की और फिर 1883 में स्नातक पाठ्यक्रम शुरू किये। वह और चंद्रमुखी बसु बेथुने कॉलेज से पहले स्नातक बन गयी, और इस प्रक्रिया में देश में और पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में पहली महिला स्नातक बनी जबकि आठ बच्चों की माँ के रूप में उन्हें घर के कामो में काफी समय समर्पित करना पड़ता था और सिलाई-कढ़ाई जैसे कामों में भी निपुण थी तो वे भी करने पड़ते थे लेकिन उन्होंने सबके साथ सामंजस्य बिठा लिया था

उस समय के विख्यात अमेरिकी इतिहासकार डेविड ने लिखा है कि ,"अपने समय की सबसे अधिक निपुण और मुक्त ख़याल वाली औरत थी। उनके हिसाब से रिश्ते आपसी प्रेम, संवेदनशीलता और समझ-बूझ पर बनते है जो कि उस वक्त के लिए सबसे असामान्य बात थी।

आज के समय में जब हम आज़ाद हो चुके हैं और सभी प्रकार की सुविधाओं से संपन्न हैं लोगों का पढ़ाई  के प्रति उतना रुझान नहीं है। जबकि उन कठिन परिस्थितियों में हर अभावों के साथ जूझते हुए अपने आत्मबल और विवेक के बल पर इन महिलाओ ने शिक्षा के महत्त्व को न सिर्फ समझा बल्कि अन्य महिलाओ की लिए आगे बढ़ने के लिए राह भी बनाई।         

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०३ अक्टूबर २०१७

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