मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

सुर-२०१७-२९५ : फर्जी नारीवादी नहीं... जमीनी सशक्तिकरण की जिसने की पहल... वो हैं... ‘कैप्टेन लक्ष्मी सहगल’ !!!



24 अक्टूबर 1914,

भारत देश गुलाम था तो उस परिदृश्य की कल्पना हम कर सकते हैं ऐसे समय में एक परंपरावादी तमिल परिवार में एक लड़की का जनम लेना भी किस तरह का प्रभाव पैदा करता था कहने की आवश्यकता नहीं लेकिन उसके बाद भी उस घुटन भरे माहौल में एक लड़की एम.बी.बी.एस. की पढाई कर न केवल डॉक्टर बनती हैं बल्कि अपनी मातृभूमि की जकड़न को भी समझती हैं जो उसकी ही तरह गुलामी की उन हवाओं में खुद को विवश तो समझ रही थी लेकिन, बेबस नहीं कि उसे ये अहसास था कि केवल व्यक्ति के कदमों को जंजीरों में कैद किया जा सकता हैं पर, उसके विचारों को गिरफ्त में ले सके ऐसी कोई भी जंजीर अब तक बनी नहीं तो इस तरह के ख्यालात ने उनको हिम्मत दी जिसके दम पर उन्होंने पहले तो शिक्षा से खुद को सशक्त बनाया फिर उसके बाद अगले कदमों के बारे में सोचना शुरू किया कि शिक्षा के पंख अगर मिल जाए तो फिर कोइ भी पिंजरा बांधकर नहीं रख सकता

इस तरह से उन्होंने ‘मद्रास मेडिकल कॉलेज’ से मेडिकल की शिक्षा ली जिसके बाद उनका सिंगापुर जाना हुआ और उसी दौरान दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो ‘लक्ष्मी सहगल’ ने अपने जीवन ककी दिशा को मोड़ते हुये ‘सुभाष चंद्र बोस’ की ‘आज़ाद हिंद फ़ौज’ में शामिल होने का फैसला लिया जिसने उनके जीवन को वो दिशा दिखाई जिसके लिये वो पैदा हुई थी कि ‘आज़ाद हिंद फ़ौज’ में उनको वो जिम्मेदारी दी गयी जो अंत तक उनकी पहचान बनी उन्हें ‘रानी झाँसी रेजिमेंट’ में पहले तो कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन, बाद में लोगों ने उन्हें ‘कैप्टन लक्ष्मी’ के रूप में ही याद रखा क्योंकि ये ओहदा उनके नाम का अटूट हिस्सा बन गया और आज भी उन्हें इसी तरह से याद किया जाता हैं उन्होंने ताउम्र देश और मानव सेवा की जिसे अपने जीवन का ध्येय समझा था कि वंचितों को भी उनका हक मिले तो आजीवन वे उनका साथ देती रही जिसने बाद में उनकी समाज सेविका के रूप में एक नई पहचान स्थापित की और ये भी दर्शाया कि वास्तविक स्त्रीवाद केवल कोरी मुंहजबानी नहीं और न ही कलम से बयान करने वाला विषय बल्कि ये तो व्यवहारिक ज्ञान जिसे जमीन पर इस तरह से प्रयोग में लाने की आवश्यकता कि वो उस शब्द को मायने दे दे जिस तरह से उन्होंने जमीनी कामों से अपने आपको एक रियल फेमिना साबित किया न कि सिर्फ कागज रंगकर या कोरी लफ्फाजी कर ये तमगा हासिल किया आज की फेक फेमिनाओं को उनके जीवन से ये सीखना चाहिए कि किस तरह से अंग्रजों के शासनकाल में परतन्त्रता की बेड़ियों में उन्होंने इतने कठिन काम को अंजाम दिया... आज जन्मतिथि पर उनको ये शब्दांजलि और श्रद्धांजलि... नमन... जय हिन्द... जय भारत... :) :) :) !!!       
       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ अक्टूबर २०१७

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