रविवार, 29 अक्तूबर 2017

सुर-२०१७-३०० : ‘मन’ या ‘ग्लोब’...!!!



टेबल पर रखे ‘ग्लोब’ को
वो यूँ ही घुमा रही थी
शायद, कुछ न था करने को तो
यूँ ही समय बिता रही थी
कि तभी अचानक
घुमते-घुमते वो थम गया
साथ उसके उसकी नजरें भी
बस, वो जो सामने था
वहीँ उसका ‘मन’ भी पहुंच चुका था
सोचती थी अब तक वो यही कि,
सब कुछ बिसरा दिया हैं
मगर, लग रहा था
मानचित्र की तरह सबकुछ
वहीँ का वहीँ हैं
कुछ भी तो नहीं बदला भीतर
सब जस का तस हैं
पता नहीं था कि,
दिल के नक्शे में भी
सबकुछ यथावत रहता हैं
जैसा एक बार बना दिया जाये
बिल्कुल वैसा ही
कभी-कभी विभाजन हो जाता हैं
मगर, हर एक हिस्सा
अपनी ही जगह पर ज्यों का त्यों
स्थिर और अपरिवर्तित
               
_______________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ अक्टूबर २०१७

कोई टिप्पणी नहीं: