चार महीने के प्रतीकात्मक शयन के बाद आज 'देव
प्रबोधिनी एकादशी' पर
देवों को शंख बजाकर जगाया जाता हैं जिससे कि मंगल कार्यों का श्रीगणेश किया जा सके
जो पिछले चार महीनों से बंद थे और आज इस ग्यारस को बड़े धूम-धाम से दीपावली की तरह
मनाया जाता जिसमें तुलसी-शालिग्राम विवाह का भी आयोजन किया जाता जिससे कि वैवाहिक
कार्यक्रमों की भी शुभ शुरुआत हो जाती हैं । वैसे तो साल में 24 एकादशी आती लेकिन
इसे सबमें सर्वश्रेष्ठ माना जाता क्योंकि इसके साथ ही अन्तरिक्ष में सूर्य एवम अन्य
ग्रहों की स्थिति में भी बड़ा परिवर्तन होता हैं जो मनुष्य की इन्द्रियों पर विशेष
प्रभाव डालता हैं और इन प्रभावों को नियंत्रित करने तथा प्रकृति के साथ संतुलन
स्थापित करने के लिए इस दिन व्रत का सहारा लिया जाता हैं क्योंकि 'व्रत' एवम
'ध्यान' से
साधक के देह में स्थित समस्त चक्रों में जागृति उत्पन्न होती जिससे ऊर्जा का
निर्माण होता जो उसके अंतर में संयम, धैर्य जैसे गुणों को विकसित
कर उसे ज्ञानी बनाती हैं ।
हर तीज-त्यौहार का अपना अलग ही महत्व होता हैं
जो हमें उसके बारे में जानने से ज्ञात होता हैं कि को भी उत्सव हम मनाते हैं उनके
पीछे कोई न कोई आध्यात्मिक ही नहीं सामाजिक चिंतन भी शामिल होती हैं जिससे कि
धर्मपथ के मार्ग पर चलकर कोई अपने व्यक्तित्व के साथ-साथ अपने आस-पास के परिवेश में
भी सार्थक सकारात्मक परिवर्तन ला सके जिनसे की दीन-दुखी लोगों की जिंदगियो ही नहीं
संपूर्ण धरा को ही इस तरह से बदला जा सके कि उसमें हर एक जीव को उसका अधिकार मिल
सके न कि केवल ताकतवर या सामर्थ्यवान ही सबका भरपूर लाभ ले तो इस तरह एकादशी हमें
प्रकृति से भी जोड़ती हैं और सामाजिक कायदों से भी जिसके पार्श्व में धार्मिक
कथानकों का ताना-बाना इसलिये बुना गया कि उसी वजह से हो चाहे लेकिन व्यक्ति इन
परम्पराओं से सदैव जुड़ा रहे नहीं तो बंधनहीन न होने या गैर-जरूरी का ठप्पा लगे
होने से इंसान उस रवायत को छोड़ने में जरा-भी संकोच नहीं करता ऐसा ही कुछ हम इस पर्व
में भी पाते हैं जिसमें हमें इन सभी तत्वों का अंश दिखाई देता हैं तभी तो ये सभी
के द्वारा बड़े उत्साहपूर्वक मनाया जाता हैं कि ये उसे ऊर्जावान बनाकर उसको भावी
जीवन हेतु तैयार करता हैं जिसकी वजह से वो आने वाली मुश्किलों का सामना हिम्मत से
कर पाता हैं तो हम सब भी इसी भावना के साथ इसे मनाये दे सबको शुभकामनायें... :) :)
:) !!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३१ अक्टूबर २०१७
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