सोमवार, 2 अक्तूबर 2017

सुर-२०१७-२७३ : गाँधी-शास्त्री जयंती आती एक साथ... दोनों के त्याग-बलिदान की दिलाती याद...!!!



जब ब्रम्हांड में जिस तरह का माहौल होता हैं उसी तरह की आत्मायें एक साथ सक्रिय हो जाती हैं जिसकी वजह से वो विकासखंड उस तरह के लोगों के एक साथ जन्म लेने से एक विशेष काल के रूप में इतिहास में हमेशा के लिये दर्ज हो जाता यही वजह कि हम देखते हैं कि चाहे वो ‘भक्तिकाल’ हो या परतंत्रता का ‘दुखद हाल’ सबमें हमें ऐसे लोगों की भरमार दिखाई देती जिनके भीतर समान विचारधारा का प्रवाह होता जिसके विस्फोट से ऐसा धमाका उत्पन्न होता जो युगों-युगों तक अपने कंपन से धरा पर अपनी उपस्थिति का अहसास कराता रहता इसलिये तो आज भी हम ऐसे दो लोगों का जन्मदिन एक साथ मना रहे जिनके जन्म में कहने को ३५ बरस का ही अंतराल था लेकिन यूँ देखें तो एक शताब्दी बीच में खड़ी थी फिर भी पृष्ठभूमि में भारत की जो दशा थी उसका सामना दोनों को ही करना पड़ा जिसमें ‘गाँधी जी’ का संघर्ष अधिक था कि वो उनसे पहले ही इस धरा पर आ गये थे लेकिन, ‘शास्त्री जी’ पर गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव था तो उन्होंने भी उनकी ही तरह सादगी एवं संयम से ही अपना पूरा जीवन व्यतीत करते हुये अपने सभी कर्म देश को समर्पित किये और अंतिम सांसों तक वो देश सेवा में ही लगे रहे बिलकुल उसी तरह जिस तरह गाँधी जी ने भी मरते दम तक सिर्फ देश का हित सोचा और अपनी आखिरी सांस भी देश की खातिर ही त्यागी जिसमें दुखद पहलू यह जुड़ गया कि उनकी मौत स्वाभाविक नहीं हुई जहाँ गाँधी जी को अपने ही देश के एक भटके नौजवान ने गोली मार दी जिसकी वजहों की पड़ताल करने पर उसे न्यायसंगत ठहराने वाले लोगों की भी कमी नहीं कि एक जमात तो गाँधी जी के निर्णयों को ही उनकी निर्मम हत्या का दोषी ठहराती वो भी उन हालातों में जबकि देश की आज़ादी में उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया तो स्वाधीनता अपने साथ उनकी मौत का फरमान भी लेकर आई जिससे कि ताउम्र गुलाम देश को देने वाला अंतिम समय में आज़ादी की खुली हवा में उतनी सांसे नहीं ले पाया जितनी उसे स्वतंत्र कराने की खातिर लुटा दी थी इसी तरह ‘शास्त्री जी’ की मौत आज तक रहस्य बनी हुई और उन्हें तो अपने जन्मभूमि की माटी भी नसीब न हुई वे तो पराई धरती पर पराये लोगों के बीच साज़िश का शिकार बने जिस गुत्थी को सुलझाना अब संभव भी नहीं कि राजनीती ऐसी शय बोल तो काली कोठरी जिसमें साफ़-सुथरे लोगों का पाक दामन भी कहीं न कहीं दागदार हो जाता तो यही हुआ दो लोग जिन्होंने केवल देशहित को ही अपने जीवन का लक्ष्य माना उन्हें ही इस तरह से अपनी जान गंवानी पड़ी हालाँकि उस दौर में बहुत से क्रांतिकारियों व देशभक्तों ने भी ख़ुशी-ख़ुशी अपने प्राण भारतमाता के चरणों में अर्पित कर दिये पर, इस तरह आज़ाद भारत में दो सच्चे राष्ट्र सेवकों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी और आज की खुदगर्ज कौम को देखो जिसे हर महान व्यक्तित्व में जिसके कद की वो बराबरी नहीं कर सकता उसके जीवन में से गलतियाँ या कमिय ढूंढकर निकालता फिर अपने आपको उससे उच्च साबित करता कि जिस तरह वो दौर देशभक्तों का था तो उस तरह की पुण्यात्माओं की बहुलता थी और आज कलयुग का चरम तो उस तरह की दुष्टात्मायें प्रबल जिसका प्रमाण आये दिन उनकी हरकतों से मिल ही रहा इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी उनकी गंदगी बिखरी ही पड़ी तो जब-जब भी कोई ऐसा दिवस आता ये सब बड़ी संख्या में देखने आता चारों तरफ ऐसे ही लोगों की भरमार होती जा रही जो अपने ही पूर्वजों, अपने ही इतिहास, अपने ही महापुरुषों पर कीचड़ उछालते और कुतर्को से गलत बातों का प्रकाशित करते और जिसको जानकारी नहीं वो इनका प्रचार करते तो हर तरफ वही सब दिखाई देता जो इतनी अधिकता में कि सच्चाई का प्रतिशत इंसानियत की तरह एकदम कम हो गया जिसके आने वाले दिनों में डायनासौर की तरह विलुप्त होने की भी संभावना कि हर किसी में सच के प्रति उतनी ललक या जिज्ञासा भी नहीं बची तो लगता एक दिन झूठ ही बाकी रहेगा ‘सत्य’ खुद को ही प्रमाणित करने सर पटकेगा पर, न तो किसी में देखने या सुनने की भावना शेष रह पायेगी तो ऐसे में इन देशभक्तों को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम लोगों को सच बताये न कि मिथ्या तथ्यों के वाहक बने... जय जवान जय किसान... वंदे मातरम... जय हिंद... :) :) :) !!!                
       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०२ अक्टूबर २०१७

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