सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

सुर-२०१७-३०१ : स्मरण करते आज के दिन... देश की महान विभूतियाँ तीन...!!!


विविधताओं से भरा अपना देश जितना अपनी बहुरंगी छवि और उसके बावजूद भी उनमें सामंजस्य के लिये जाना जाता हैं उतना ही उसका ये रूप और उसकी अनेकता में एकता वाली छवि को कायम रखने में उन लोगों का भी योगदान माना जाता हैं जिन्होंने इस धरती पर जन्म लेकर उसके प्रति अपने मानवीय व नैतिक कर्तव्यों का पालन किया इसलिये इनके नाम देश के इतिहास ही नहीं उसके हृदय में भी सदा-सदा के लिए अंकित हो गये कि किस तरह इन्होंने अपने-अपने अलग-अलग कार्यक्षेत्रों में अपनी भूमिका का जिम्मेदारी से न केवल निर्वहन किया बल्कि हम सबको धरोहर के रूप में ऐसी विरासत सौंप गये जिन पर हम नाज़ करते हैं एक तरफ हम जीवन भर सोचकर भी अपना कर्मस्थल और लक्ष्य का निर्धारण नहीं कर पाते वहीं दूसरी तरफ यहां ऐसे लोगों ने आंखें खोली जिनके सामने उनका स्पष्ट ध्येय और जीवन उद्देश्य था जिसके निर्धारण के पश्चात् उन्होंने अपने आपको पूर्णरूपेण उसके प्रति समर्पित कर दिया कि उस क्षेत्र में वो एक मिसाल बन गये आज ऐसा ही एक सौभाग्यशाली दिवस जिससे  तीन ऐसी महान हस्तियों का जुड़ाव जिन्होंने सर्वथा पृथक कार्यक्षेत्रों को अपने निर्दिष्ट संकल्प प्राप्ति के लिये चुना और उसे हासिल कर शीर्ष पंक्ति में अपनी जोरदार उपस्थिति से सबक ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया और उनके अद्भुत कार्यों ने उन्हें दूसरों के समक्ष एक आदर्श के रूप में स्थापित कर दिया ।

सर्वप्रथम पुण्य स्मरण उस दिव्यात्मा का जिसने वेदों में वर्णित सूत्रों के वास्तविक अर्थ को ग्रहण करते हुये धर्म की एक नवीनतम धारा का विकास किया जिसे 'आर्य समाज' के नाम से जाना जाता हैं । उन्होंने उस समय के समाज में व्याप्त सभी तरह की कुरूतियों एवं अंधविश्वासों का पुरजोर विरोध ही नहीं उसे समाप्त करने के लिये हरसंभव जमीनी प्रयास भी किया ताकि धार्मिक आडम्बरों में फंसे लोग इनसे मुक्त होकर अपनी ऊर्जा व समय को सार्थक कामों में लगाकर भारतवर्ष को उन्नति के पथ पर ले जा सके और ये काम आसान नहीं था लेकिन उनका संकल्प इतना दृढ़ था कि कोई भी बाधा उन्हें अपने मार्ग से विचलित न कर सकी । महज़ 21 साल की आयु में इन्होंने सन्यासी जीवन का वरण किया क्योंकि उनको जो प्राप्त करना था उसके लिये यही एकमात्र मार्ग था जिससे कि वे किसी भी दूसरी जिम्मेदारी में बंधकर मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति कमजोर न पड़ जाये तो पारिवारिक रिश्तों की जगह सांसारिक रिश्तों को अपना लिया सबको अपना मान लिया और जगह-जगह घूम-फिरकर सबको ये संदेश दिया कि उनके भीतर अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने की सामर्थ्य हैं जरूरत केवल उसे पहचानने और उसका उपयोग करने की हैं जिससे कि सभी का भला हो सके उन्हें जागरूक बनाकर स्वामीजी ने एक करने का बीड़ा उठाया कि उसके बिना ये जंग जीत पाना संभव नहीं और वर्ण-व्यवस्था की सामाजिक विसंगति को नए तरह से परिभाषित किया कि इसका तात्पर्य ये नहीं कि कोई किसी से ऊंचा या नीचा हैं बल्कि उनमें जो अंतर हैं वो प्राकृतिक जिसके आधार पर किसी को कम समझना गलत हैं इस तरह की कई गलत धारणाओं को तोडने का उन्होंने प्रयास किया जिसका नतीजा कि उनके साथ जुड़ने वालों की संख्या बढ़ने लगी और उनके प्रयासों की वजह से बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा पुनर्विवाह, नारी शिक्षा और वर्णभेद के प्रति लोगों में जागृति आई ।

सिनेमा के माध्यम से 70mm के रजत परदे पर भी न केवल उत्तम सामाजिक संदेश दिया जा सकता हैं बल्कि देशसेवा भी की जा सकती हैं और ये कारनामा कर दिखाया निर्देशक, अभिनेता  वी. शांताराम ने जिन्होंने क़रीब छह दशक लंबे अपने फ़िल्मी सफर में हिन्दी व मराठी भाषा में कई सामाजिक एवं उद्देश्यपरक फ़िल्में बनाई जिन्होंने समाज में चली आ रही कुरीतियों पर गहरी चोट करते हुए उनके लिये अपनी तरफ से एक समाधान भी प्रस्तुत किया । अपने पूरे फिल्मी कॅरियर में उन्होंने सतत ये प्रयास किया कि वे सिर्फ मनोरंजन के लिये ही फिल्मों का निर्माण न करें बल्कि इस सशक्त माध्यम को जागरूकता फैलाने के लिए प्रयोग में लाये तो इस कारण से उन्होंने जब भी किसी कहानी को फिल्माने के बारे में सोचा उसके संदेशात्मक पक्ष को कभी अनदेखा नहीं किया जिसने उनकी फिल्मों को एक अलग श्रेणी में स्थान दिलवाया जहां पर वे आज भी शीर्ष में विराजमान हैं उन्होंने कभी भी कोई ऐसी फिल्म नहीं बनाई जो समाज को कुछ भी न देती हो तो उस दौर की सभी दुष्प्रथाओं को आप उनकी अलग-अलग फिल्मों में देख सकते हैं । उन्होंने अपनी फिल्मों में अनेक प्रयोग भी किये जिन्हें देखकर लोग चकित रह गये कि जिसकी कल्पना कर पाना भी मुमकिन नहीं उसे उन्होंने पर्दे पर साकार कर दिखाया जिसका जीता-जागता प्रमाण उनकी बनाई दो आंखें बारह हाथ, डॉ कोटनिस की अमर कहानी, पड़ोसी, दहेज, सेहरा, नवरंग, झनक-झनक पायल बाजेपिंजरा जैसी  अनेक फिल्में हैं और अपनी अभूतपूर्व काबिलियत से उन्होंने ऐसे शाहकार रचे जो उनकी पहचान बन गये और उनकी प्रयोगधर्मिता की वजह से उन्होंने उस कालखंड में रंगीन फ़िल्म बनाने के साथ-साथ मूविंग शॉट हेतु ट्रॉली तथा एनीमेशन का उपयोग भी पहली बार अपनी फ़िल्म के लिए किया जिसकी बदौलत हर तरह का सम्मान, पुरस्कार और देश-विदेश में ख्याति प्राप्त की और आज भी उनकी अमर कृतियाँ उनका प्रतिनिधित्व कर रही हैं ।

'डॉ होमी जहांगीर भाभा' कहने को वैज्ञानिक और परमाणुशास्त्री लेकिन, यदि उनका देश के प्रति योगदान देखें तो ज्ञात होता कि निजहित की जगह उन्होंने देशहित को ही सर्वोपरि समझा और किस तरह से वे अपनी असाधारण प्रतिभा का सदुपयोग कर अपने वतन को अपनी आहुति समर्पित कर सके जिससे कि भारत देश आज़ादी के बाद जो विश्व के समक्ष विज्ञान के क्षेत्र में कमजोर नजर आ रहा अपनी मजबूत पहचान बना सके तो इस हेतु उन्होंने पूरी तरह से खुद को भारत के नवनिर्माण हेतु झोंक दिया जिसका नतीजा कि आज देश में जिस परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना उन्होंने की थी आज हम उसको साकार देख पा रहे हैं । उनके मन में अपने देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक क्रांति लाने का जो जुनून था उसी का प्रतिफल है कि आज विश्व के सभी विकसित देशों भारत के नाभिकीय वैज्ञानिकों की प्रतिभा एवं क्षमता का लोहा माना जाता है जो हमारे लिए गर्व का विषय हैं । डॉ. भाभा ने नाभिकीय विज्ञान के क्षेत्र में विशिष्ट अनुसंधान के लिए एक अलग संस्थान बनाने का विचार बनाया जो सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए वैज्ञानिक चेतना एवं विकास का निर्णायक मोड़ था क्योंकि केवल यही वो क्षेत्र था जहाँ भारत अन्य देशों के मुकाबले कमजोर था उनकी इस चिंता ने उन्हें ऐसा संस्थान बनाने प्रेरित किया जहां भारत के नवयुवक अपनी प्रतिभा का तराशकर ऐसे अविष्कार करे जिनसे इस देश का नाम विश्व मानचित्र पर उभर सके और इसके लिए कार्य का शुभारंभ तो कर दिया पर उसे अंत तक न पहुंचा पाये और बीच सफर में हमें छोड़कर चले गए पर, उनका वो स्वप्न 'भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र' के रूप में हमारे साथ हैं जो हमारे लिये गौरव का विषय हैं क्योंकि इसके दम पर ही हम परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व को टक्कर दे रहे हैं ।
       
आज इन तीनों के पुण्य स्मरण का दिन जिसने अलग-अलग समय में जन्म लेने के बाद भी कहीं न कहीं इन्हें एक कर दिया... कोटि-कोटि नमन इन पुण्यात्माओं को... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

३० अक्टूबर २०१७

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