शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

सुर-२०१७-२९८ : नौजवानों को देशभक्ति सिखाती... ‘जतीन्द्रनाथ दास’ की क़ुरबानी...!!!



गुलामी में बीते बरसों की तुलना में आज़ादी के साल कम हैं लेकिन, इतने ही अल्प समय में जिस तरह से नौजवानों की सोच और जिंदगी जीने का रवैया बदला वो विचारणीय हैं कभी इस देश में ऐसे भी लोग हुये जिन्हें जन्म के साथ ही जन्मभूमि के प्रति अपने फर्ज़ का भी अहसास हो गया कि जिस वातावरण में उन्होंने जनम लिया हैं वो कतई फ़िज़ूल में जाया करने के लिए नहीं हैं तो एक-एक पल का इस तरह से सदुपयोग किया कि जिस उम्र में अभी हमारे यहाँ जवानों को अपने लक्ष्य तक का अहसास नहीं होता उस उम्र में तो वे मातृभूमि के चरणों में अपने प्राणों की क़ुरबानी देकर दुबारा इस भूमि में आने का संकल्प लिये अपने जीवन का सफ़र खत्म करके चले भी गये और उनकी जीवन गाथा को पढ़ा तो ज्ञात होता कि उनका लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा इस तरह से हुई कि उनके मन में देशभक्ति की भावना स्वतः ही उत्पन्न हुई न कि उन्हें इस तरह का स्वछंद माहौल मिला कि वो अपने सिवाय किसी के बारे में सोचे ही न तो ऐसे शहीदों की फेहरिश्त बहुत लम्बी जिन्होंने बहुत छोटा जीवन जिया लेकिन काम बहुत बड़े किये जिनमें एक बड़ा नाम ‘शहीद जतीन्द्रनाथ दास’ का हैं जिन्होंने आज ही के दिन 27 अक्टूबर, 1904 को इस भारत देश की बंगभूमि में एक अत्यंत साधारण परिवार में जनम लिया लेकिन, बचपन से ही देश के हालातों व स्वतंत्रता संग्राम ने उनको इस तरह अपनी तरफ आकर्षित किया कि फिर मन किसी दूसरी तरफ न रमा और जब ‘महात्मा गाँधी’ ने ‘असहयोग आन्दोलन’ की शुरुआत की तो उन्होंने अपनी नाज़ुक उम्र नहीं बल्कि वक्त की नजाकत को समझा जिसे उनकी जरूरत थी और वे इसमें शामिल हो गये इस तरह से उनकी क्रांतिकारी यात्रा का शुभारंभ हुआ जिसमें आगे बेहद खतरनाक मोड़ आये लेकिन उन्होंने तो अपने सर पर कफ़न बांधकर इस राह को चुना था तो फिर पीछे न मुड़े यहाँ तक कि वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने बड़ी कम उम्र में बम बनाना भी सीख लिया था जो उनकी सबसे बड़ी विशेषता मानी जाती हैं कि उनके बनाये बमों का ही प्रयोग ‘भगत सिंह’ और ‘बटुकेश्वर दत्त’ ने 8 अप्रैल, 1929 को ‘केन्द्रीय असेम्बली’ को उड़ाने के लिये किया था

उनकी इस कला ने उनको क्रांतिकारियों के मध्य तेजी से लोकप्रिय बनाया क्योंकि सबको ये हुनर नहीं आता था और उनकी काबिलियत ने उन्हें ‘सुभाषचंद बोस’ का सहयोगी ही नहीं ‘भगत सिंह’ का मित्र भी बनाया और उनकी इन विध्वंशक गतिविधियों ने 14 जून, 1929 को को उनको फिरंगी सरकार का कैदी बना दिया और उन पर 'लाहौर षड़यंत्र केस' में मुकदमा चला और जेल में क्रान्तिकारियों के साथ राजबन्दियों के समान व्यवहार न होने के कारण जब क्रान्तिकारियों ने 13 जुलाई, 1929 से अनशन आरम्भ कर दिया तो जतीन्द्र भी इसमें शामिल हो गये जो उनकी मौत की वजह बना और वे छोटी उम्र में ही चले गये लेकिन उनकी इस शहादत को हम भूल नहीं सकते उनको कोटि-कोटि नमन... :) :) :) !!!
    
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२७ अक्टूबर २०१७

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