रविवार, 22 अक्तूबर 2017

सुर-२०१७-२९३ : “वसीयतनामा” !!!



देखकर...
टूटता हुआ तारा
सोचती हूँ अक्सर कि,
लोग उसे देखकर
क्यों दुआ मांगते हैं ?
किसी के पतन पर
क्यों वो खुश हो जाते हैं ??
जो खुद नाउम्मीद होकर
फ़लक से गिर गया हो
वो किसी की कोई मुराद
किस तरह पूरी करेगा भला ???

मगर,
फिर भी न जाने कब से ?
ये रवायत ज़ारी हैं
हमने भी बचपने में
ये नादानी की थी कई दफ़ा
पर, अब हंसी आती हैं सोचकर
कि नासमझी की वो उम्र तो थी ही
अनगिनत हसरतों का पुलिंदा
तो कहाँ बच पाते इससे
लेकिन, आज जब खुद को
उस जगह पर पाया तो
मन में ये ख्याल चला आया कि
जाते वक़्त सबको दुआ देना
सबकी ख़ुशी की कामना करना
ये तो हर बुजुर्ग की ख्वाहिश होती हैं

शायद,
इसलिये वो ‘सितारा’ भी
सबको आशीष देकर जाता हैं
मरते हुए भी वो सबके होंठो पर
मुस्कान सजाना चाहता हैं
अपने बच्चों को हर हाल में
खुश देखना चाहता हैं
सबके अधूरे ख़्वाब पूरे करना
उसका भी अरमां होता हैं

मैं भी जब,
उसकी ही तरह
मिटने की कगार पर
पहुँच जाउंगी
एक दिन ख़ाक में
मिल जाउंगी
तो बनकर तारा जगमगाउंगी
और फिर टूटकर गिरूंगी जिस पल भी
सबकी झोली भर जाउंगी
सबके उम्मीदें पूरी कर जाउंगी
जीते-जी न सही
मरकर तो किसी की
कोई दिली ख्वाहिश पूरी कर जाउंगी

अस्तु... एवमस्तु...!!!
            
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२२ अक्टूबर २०१७

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