सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

सुर-२०१७-२८० : आओ इक पाती लिखें... बातें कुछ रूहानी लिखें...!!!



‘विश्व डाक दिवस’ का आज मनाया जाना डिजिटल युग में अब बेमानी हो चुका हैं कि सिर्फ़ अलग-अलग देशों या शहरों में ही नहीं अब तो गाँव में भी इंटरनेट की पैठ हो चुकी हैं तो ऐसे में कागजों पर हाले दिल भला कौन बयान करना चाहेगा जबकि उसे पता कि मोबाइल की स्क्रीन पर कुछ भी टाइप करके सिर्फ एक बटन दबाने मात्र से वो सरहदों ही नहीं समंदरों की भी दूरियां पार कर लेगा तो ऐसे में कागज़-कलम लेकर कुछ लिखना और फिर उसे पोस्ट कर उसके जवाब की राह तकना आज के बेसब्रों के बस की बात नहीं ऐसे में इन खतों की खुशबू का इल्म अब सिर्फ पिछली पीढ़ियों में ही सिमट कर रह जायेगा और आने वाली पीढियां केवल इतिहास में दर्ज इस विधा के बारे में पढ़ेंगी और जानेंगी लेकिन कभी भी उस शिद्दत को अंतर से महसूस नहीं कर पायेंगी जिसे हमने कभी जिया हैं इस मामले में हम खुशनसीब हैं कि हमारी पीढ़ी ने अपनों के पत्रों को सहेजकर रखा हैं तो अपनों को भी अपने ख्यालों से रूबरू करवाया हैं वो अहसास ही शब्दों से परे हैं जिसे शब्दों के ही जरिये सफों पर उतारा जाता था तो सामने वाला पढ़कर उसमें छिपे हुये भावों को भी पढ़ लेता था कि उसे अनलिखे को पढ़ना आता था और अब तो लिखने की जेहमत भी सब नहीं उठाते बस, लिखे-लिखाये संदेशों को यहाँ से वहाँ फारवर्ड करता रहता जिनके अंदर कोई भी जज्बात नहीं महज़ कोरी बात होती जिसे अब तो पढ़ना भी गंवारा नहीं करते लोग कि एक ही सन्देश इतनी बार उनके पास आ चुका होता कि उसकी रूचि ही खत्म हो चुकी होती तो इस तरह से इस तकनीकी युग ने तरगों के माध्यम से इंसान की भावनाओं को सोखकर उसे संवेदनहीन बनाना शुरू कर दिया हैं तभी तो कितनी भी दर्दनाक खबर हो या कोई भी खुशखबर उसके चेहरे की रंगत मशीनी अंदाज़ में एक समान ही बनी रहती कि जिस तरह एक ही जोक पर आदमी बार-बार नहीं हंस सकता उसी तरह एक ही संदेश पर भला हर बार एक समान प्रतिक्रिया किस तरह से व्यक्त करे तो इन संदेशों ने उससे उसकी भावाभिव्यक्ति भी चीन ली हैं यही नहीं उसका लेखन भी प्रभावित हुआ हैं कि शोर्ट मेसेंजिंग में लम्बा लिखना और कीबोर्ड से धडाधड टाइप करना जिसका शगल हो उसे पन्नों पर पेन से लिखना किसी कवायद से कम नहीं लगता तो इसने उससे ये सुख भी छीन लिया जबकि पत्र-व्यवहार केवल कुशलता का आदान-प्रदान ही नहीं करता था बल्कि व्यक्ति को भाषा, व्याकरण और शब्दों से भी परिचित करवाता था जिसके प्रति रुझान गूगल ने खत्म कर दिया कि अब कोई बात या कोई स्पेलिंग या किसी अल्फाज़ के मायने यदि याद नहीं हैं तो उसे झट से ढूंढ लिया जाता तो ऐसे में जरूरी कि अपने नौनिहालों को इस विधा का परिचय ही नहीं दिया जाये बल्कि व्यावहारिक ज्ञान देने हेतु कभी-कभी एकाध चिट्ठी लिखने भी प्रेरित किया जाए जिससे कि विलुप्तप्राय इस संस्कृति के चंद अवशेष हम बचा सके... इसी आशा के साथ सभी को ‘विश्व डाक दिवस’ की अनंत शुभकामनायें... :) :) :) !!!
       
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०९ अक्टूबर २०१७

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